Wednesday, 18 December 2019
*नवग्रह स्तोत्र*
Thursday, 12 December 2019
दत्ताचा पाळणा
दत्ताचा पाळणा
कमलासन विष्णू त्रिपुरारी । अत्रिमुनीचे घरी ।
सत्त्व हरु आले नवल परी । भ्रम दवडिला दुरी ॥१॥
प्रसन्न त्रिमूर्ति होऊनी । पुत्रत्वा पावुनि ।
हर्ष झालासे त्रिभुवनी । राहे ॠषिचे सदनी ॥२॥
पालख बांधविला सायासी । निर्गुण ऋषिचे वंशी ।
पुत्र जन्माला अविनाशी । अनसूयेचे कुशी ॥३॥
षट्दश नामासी आधार । दत्तात्रय अवतार ।
कृष्णदासासी सुख थोर । आनंद होतो फार ॥४॥
Sunday, 10 November 2019
मंगलाष्टके
विश्वकर्मा आरती
जय श्री विश्वकर्मा ।
सकल सृष्टि के करता,
रक्षक स्तुति धर्मा ॥
आदि सृष्टि मे विधि को,
श्रुति उपदेश दिया ।
जीव मात्र का जग मे,
ज्ञान विकास किया ॥
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु,
जय श्री विश्वकर्मा ।
ध्यान किया जब प्रभु का,
सकल सिद्धि आई ।
ऋषि अंगीरा तप से,
शांति नहीं पाई ॥
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु,
जय श्री विश्वकर्मा ।
रोग ग्रस्त राजा ने,
जब आश्रय लीना ।
संकट मोचन बनकर,
दूर दुःखा कीना ॥
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु,
जय श्री विश्वकर्मा ।
जब रथकार दंपति,
तुम्हारी टेर करी ।
सुनकर दीन प्रार्थना,
विपत हरी सगरी ॥
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु,
जय श्री विश्वकर्मा ।
एकानन चतुरानन,
पंचानन राजे।
त्रिभुज चतुर्भुज दशभुज,
सकल रूप साजे ॥
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु,
जय श्री विश्वकर्मा ।
ध्यान धरे तब पद का,
सकल सिद्धि आवे ।
मन द्विविधा मिट जावे,
अटल शक्ति पावे ॥
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु,
जय श्री विश्वकर्मा ।
श्री विश्वकर्मा की आरती,
जो कोई गावे ।
भजत गजानांद स्वामी,
सुख संपाति पावे ॥
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु,
जय श्री विश्वकर्मा ।
सकल सृष्टि के करता,
रक्षक स्तुति धर्मा॥
Saturday, 9 November 2019
वर्तुळ
वर्तुळ –
- त्रिज्या(R)- वर्तुळाच्या केंद्रबिंदूतून निघून परिघाला जाऊन मिळणार्या रेषाखंडाला वर्तुळाची त्रिज्या म्हणतात.
- वर्तुळाच्या व्यास (D) – केंद्रबिंदूतून निघून जाणार्या व वर्तुळाच्या परिघावरील दोन बिंदुना जोडणार्याह रेषाखंडास वर्तुळाचा व्यास म्हणतात.
- वर्तुळाचा व्यास हा त्या वर्तुळाचा त्रिज्येचा (R च्या) दुप्पट असतो.
- जीवा – वर्तुळाच्या परिघावरील कोणत्याही दोन बिंदूंना जोडणार्या रेषाखंडाला वर्तुळाची जीवा म्हणतात.
- व्यास म्हणजे वर्तुळाची सर्वात मोठी जीवा होय.
- वर्तुळाचा व्यास हा त्रिजेच्या दुप्पट व परीघाच्या 7/12 पट असतो.
- वर्तुळाचा परीघ हा त्रिजेच्या 44/7 पट व व्यासाच्या 22/7 पट असतो.
- वर्तुळाचा परीघ व व्यासातील फरक = 22/7 D-D = 15/7 D
- अर्धवर्तुळाची परिमिती = 11/7 D+D (D=व्यास) किंवा D = वर्तुळाचा व्यास, त्रिज्या (r) × 36/7
- अर्धवर्तुळाची त्रिज्या = परिमिती × 7/36
- वर्तुळाचे क्षेत्रफळ = π × (त्रिज्या)2 = πr2 (π=22/7 अथवा 3.14)
- वर्तुळाची त्रिज्या = √क्षेत्रफळ×7/22
- वर्तुळाची त्रिज्या = (परीघ-व्यास) × 7/30
- अर्धवर्तुळाचे क्षेत्रफळ = π×r2/2 किंवा 11/7 × r2
- अर्धवर्तुळाची त्रिज्या = √(अर्धवर्तुळाचे ×7/11) किंवा परिमिती × 7/36
- दोन वर्तुळांच्या त्रिज्यांचे गुणोत्तर = त्या वर्तुळांच्या परिघांचे गुणोत्तर.
- दोन वर्तुळांच्या क्षेत्रफळांचे गुणोत्तर हे त्या वर्तुळांच्या त्रिज्यांच्या गुणोत्तराच्या किंवा त्या वर्तुळांच्या परिघांच्या गुणोत्तराच्या वर्गाच्या पटीत असते. वर्तुळाची त्रिज्या दुप्पट केल्यास क्षेत्रफळ चौपट येते.
चांग भल रे देवा चांगभल
चांग भलं र देवा चांग भलं र
जोतिबाच्या नावान चांग भलं र
हे...नाव तुझ मोठ देवा कीर्ती तुझी भारी...
डंका तुझा ऐकुनी गा आलो तुझ्या दारी...
किरपा करी.माझ्या वरी.हाकेला तू धाव र
चांग भलं...
जोतिबाच्या नावान...चांग भलं र
देवा चांग भलं र
जोतिबाच्या नावान
चांग भलं र
(1)----------
हे भल्या उंच डोंगरात देवा तुझा वास र...
मर्जी तुझ्या भक्तावरी देवा तुझी खास र...
चांग भलं
चांग भलं...
हे...
आलो देवा घेऊन मनी भोळा भाव र
देवा कोड माझी हि मानुनिया घे
नाही मोठ मागण
नाही कुडी हाव र
बापा वाणी माया तू
लेकराला दे
डोई तुझ्या पायावर मुखी तुझ नाव र
चांग भलं ...जोतिबाच्या नावान...
चांग भलं र देवा चांग भलं र
जोतिबाच्या नवान
चांग भलं र .
Thursday, 7 November 2019
🌹सुखाचे १७ मंत्र*🌹
Wednesday, 6 November 2019
श्री स्वामी समर्थ १०८ नामावली
Thursday, 31 October 2019
ऊठ ऊठ पंढरीनाथा ऊठ बा मुकुंदा
Tuesday, 29 October 2019
श्री दत्त अथर्वशीर्ष
Monday, 28 October 2019
राम अष्टक
हे रामा पुरुषोत्तमा नरहरे नारायणा केशव ।
गोविन्दा गरुड़ध्वजा गुणनिधे दामोदरा माधवा ।।
हे कृष्ण कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते ।
बैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहिमाम् ।।
आदौ रामतपोवनादि गमनं हत्वा मृगं कांचनम् ।
वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीव सम्भाषणम् ।।
बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं लंकापुरीदाहनम् ।
पश्चाद्रावण कुम्भकर्णहननं एतद्घि रामायणम् ।।
जय धन्वंतरि देवा आरती
जय धन्वंतरि देवा, जय धन्वंतरि जी देवा।
जरा-रोग से पीड़ित, जन-जन सुख देवा।।जय धन्वं.।।
देवासुर के संकट आकर दूर किए।।जय धन्वं.।।
आयुर्वेद बनाया, जग में फैलाया।
सदा स्वस्थ रहने का, साधन बतलाया।।जय धन्वं.।।
भुजा चार अति सुंदर, शंख सुधा धारी।
आयुर्वेद वनस्पति से शोभा भारी।।जय धन्वं.।।
तुम को जो नित ध्यावे, रोग नहीं आवे।
असाध्य रोग भी उसका, निश्चय मिट जावे।।जय धन्वं.।।
हाथ जोड़कर प्रभुजी, दास खड़ा तेरा।
वैद्य-समाज तुम्हारे चरणों का घेरा।।जय धन्वं.।।
धन्वंतरिजी की आरती जो कोई नर गावे।
रोग-शोक न आए, सुख-समृद्धि पावे।।जय धन्वं.।।
जिस भजन में राम का नाम ना हो, उस भजन को गाना ना चाहिए।
चाहे बेटा कितना प्यारा हो, उसे सर पे चढ़ाना ना चाहिए।
चाहे बेटी कितनी लाडली हो, घर घर ने घुमाना ना चाहिए॥
जिस माँ ने हम को जनम दिया, दिल उसका दुखाना ना चाहिए।
जिस पिता ने हम को पाला है, उसे कभी रुलाना चाहिए॥
चाहे पत्नी कितनी प्यारी हो, उसे भेद बताना ना चाहिए।
चाहे मैया कितनी बैरी हो, उसे राज़ छुपाना ना चाहिए
गुरुदेव दया करके मुझको अपना लेना॥
गुरुदेव दया करके मुझको अपना लेना।
करूणानिधि नाम तेरा, करुन दिखलाओ तुम,
सोये हुए भाग्यो को, हे नाथ जगाओ तुम।
मेरी नाव भवर डोले इसे पार लगा देना,
गुरुदेव दया करके मुझको अपना लेना॥
जय गुरुदेवा, जय गुरुदेवा।
जय गुरुदेवा, जय गुरुदेवा॥
तुम सुख के सागर हो, निर्धन के सहारे हो,
इस तन में समाये हो, मुझे प्राणों से प्यारे हो।
नित्त माला जपूँ तेरी, नहीं दिल से भुला देना,
गुरुदेव दया करके मुझको अपना लेना॥
पापी हूँ या कपटी हूँ, जैसा भी हूँ तेरा हूँ,
घर बार छोड़ कर मैं जीवन से खेला हूँ।
दुःख का मार हूँ मैं, मेरा दुखड़ा मिटा देना,
गुरुदेव दया करके मुझको अपना लेना॥
मैं सब का सेवक हूँ, तेरे चरणों का चेरा हूँ,
नहीं नाथ भुलाना मुझे, इसे जग में अकेला हूँ।
तेरे दर का भिखारी हूँ, मेरे दोष मिटा देना,
गुरुदेव दया करके मुझको अपना लेना॥
इन चरनन की पाऊं सेवा,
जय गुरुदेवा, जय गुरुदेवा।
Saturday, 26 October 2019
श्री कुबेर आरती
स्वामी जै यक्ष जै यक्ष कुबेर हरे।
शरण पड़े भगतों के,
भण्डार कुबेर भरे।
॥ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे...॥
शिव भक्तों में भक्त कुबेर बड़े,
स्वामी भक्त कुबेर बड़े।
दैत्य दानव मानव से,
कई-कई युद्ध लड़े ॥
॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे...॥
स्वर्ण सिंहासन बैठे,
सिर पर छत्र फिरे,
स्वामी सिर पर छत्र फिरे।
योगिनी मंगल गावैं,
सब जय जय कार करैं॥
॥ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे...॥
गदा त्रिशूल हाथ में,
शस्त्र बहुत धरे,
स्वामी शस्त्र बहुत धरे।
दुख भय संकट मोचन,
धनुष टंकार करें॥
॥ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे...॥
भांति भांति के व्यंजन बहुत बने,
स्वामी व्यंजन बहुत बने।
मोहन भोग लगावैं,
साथ में उड़द चने॥
॥ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे...॥
बल बुद्धि विद्या दाता,
हम तेरी शरण पड़े,
स्वामी हम तेरी शरण पड़े
अपने भक्त जनों के ,
सारे काम संवारे॥
॥ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे...॥
मुकुट मणी की शोभा,
मोतियन हार गले,
स्वामी मोतियन हार गले।
अगर कपूर की बाती,
घी की जोत जले॥
॥ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे...॥
यक्ष कुबेर जी की आरती ,
जो कोई नर गावे,
स्वामी जो कोई नर गावे ।
कहत प्रेमपाल स्वामी,
मनवांछित फल पावे।
॥ इति श्री कुबेर आरती ॥
Saturday, 19 October 2019
दुनिया बनाने वाले महिमा तेरी निराली।
चन्दा बनाया शीतल सूरज में आग डाली।
ऊचे शिखर गिरी के आकाश चूमते हैं।
वृक्षों के झुरमुटे भी वायु में झूमते हैं।
सरिताएं बहती कल कल शीतल से नीर वाली।
चन्दा बनाया शीतल सूरज में आग डाली।
॥ दुनिया बनाने वाले...॥
कही वृक्ष है रसीले कही झाड है कटीले।
कही रेत के है टीले सरोवर कही है नीले।
ये आसमान देखो कैसी सजी दिवाली।
चन्दा बनाया शीतल सूरज में आग डाली।
॥ दुनिया बनाने वाले...॥
सब प्राणियों के जग में तूने बनाए जोड़े।
दुर्जन अधीक बनाए सज्जन बनाए थोड़े।
घोड़े बनाए तूने सिंह हाथी शक्तिशाली।
चन्दा बनाया शीतल सूरज में आग डाली।
॥ दुनिया बनाने वाले...॥
जुगनू की दूम में तूने कैसा बल्ब लगाया।
बरसात की निशाँ में जंगल है जगमगाया।
बिजली चमक है कैसी घन की घटा है काली।
चन्दा बनाया शीतल सूरज में आग डाली।
॥ दुनिया बनाने वाले...॥
संसार की नदी सब सागर में जा रही हैं।
सागर की तरंगें भी गुण तेरे ही गा रही हैं।
इस विश्व वाटिका का केवल प्रभु है माली।
चन्दा बनाया शीतल सूरज में आग डाली।
॥ दुनिया बनाने वाले...॥
बच्चे किसी पे दर्जन टुकडो के भी हैं लाले।
संतान बिन किसी के घर पे लगे हैं ताले।
यूनान का सिकंदर गया करके हाथ खाली।
॥ दुनिया बनाने वाले...॥
आवागमन का देखो कैसा ये सिलसिला है।
थे कर्म जिसके जैसे वैसा ही फल मिला है।
अंगूर कैसे मिलते बोई थी जब निम्बोली।
चन्दा बनाया शीतल सूरज में आग डाली।
॥ दुनिया बनाने वाले...॥
फूलो का चूस के रस कैसा मधु बनाए।
मधुमक्खी में तूने क्या यंत्र हैं लगाए।
मधु सबके मन को है भाय चाहे लाला हो या लाली।
चन्दा बनाया शीतल सूरज में आग डाली।
॥ दुनिया बनाने वाले...॥
पत्तो को खाके कीड़ा रेशम बना रहा है।
है कौन जो उदर में चरखा चला रहा है।
बुन बुन के आ रहा है रेशम का लच्छा जाली।
चन्दा बनाया शीतल सूरज में आग डाली।
॥ दुनिया बनाने वाले...॥
बरसात के दिनों में लेंटर टपकते देखा।
बैये के घोसले में पाई ना जल की रेखा।
क्या तकनिकी सिखाई तूने हे शिल्प शाली।
चन्दा बनाया शीतल सूरज में आग डाली।
॥ दुनिया बनाने वाले...॥
दुनिया बनाने वाले महिमा तेरी निराली।
चन्दा बनाया शीतल सूरज में आग डाली।
Monday, 14 October 2019
रेणुका मातेची आरती
रेणुका मातेची आरती
जय देवी श्री देवी, रेणुका माते।
आरती ओवाळीतो तुजला शुभचरिते॥
मंदस्मित मधुलोचन, सुंदर ही मूर्ती।
वज्रचुडेमंडित तव, गिरिशिखरे वसती॥१॥
जय देवी श्री देवी, रेणुका माते।
आरती ओवाळीतो तुजला शुभचरिते॥
भाग्यवती तूं जननी, परशुरामाची।
तेहतीस कोटी देवांवरि, तव सत्ता साची॥२॥
जय देवी श्री देवी, रेणुका माते।
आरती ओवाळीतो तुजला शुभचरिते॥
सीता, लक्षी, पार्वती, यल्लम्मा सारी।
तुझीच नाना नावें नाना अवतारी॥३॥
जय देवी श्री देवी, रेणुका माते।
आरती ओवाळीतो तुजला शुभचरिते॥
जगदेश्वरी जगदंबे, व्यापिसी विश्वाला।
मिलिंद माधव भावे वंदितसे तुजला॥४॥
जय देवी श्री देवी, रेणुका माते।
आरती ओवाळीतो तुजला शुभचरिते॥
भला किसी का कर ना सको तो, बुरा किसी का ना करना
भला किसी का कर ना सको तो,
बुरा किसी का ना करना ।
पुष्प नहीं बन सकते तो तुम, कांटे बन कर मत रहना ॥
बन ना सको भगवान् अगर, कम से कम इंसान बनो ।
नहीं कभी शैतान बनो, नहीं कभी हैवान बनो ॥
सदाचार अपना न सको तो, पापों में पग ना धरना ।
पुष्प नहीं बन सकते तो तुम, कांटे बन कर मत रहना ॥
सत्य वचन ना बोल सको तो, झूठ कभी भी मत बोलो ।
मौन रहो तो ही अच्छा, कम से कम विष ना घोलो ॥
बोलो यदि पहले तुम तोलो, फिर मुंह को खोला करना ।
पुष्प नहीं बन सकते तो तुम, कांटे बन कर मत रहना ॥
घर ना किसी का बसा सको तो, झोपड़ियां ना जला देना
मरहम पट्टी कर ना सको तो, खार नमक ना लगा देना ॥
दीपक बन कर जल ना सकोतो, अंधियारा ना फैला देना
पुष्प नहीं बन सकते तो तुम, कांटे बन कर मत रहना ॥
अमृत पिला ना सके किसी को, ज़हर पिलाते भी डरना
धीरज बंधा नहीं सको तो घाव किसी के मत करना ॥
राम नाम की माला ले क,र सुबह श्याम भजन करना ।
पुष्प नहीं बन सकते तो तुम, कांटे बन कर मत रहना
Monday, 30 September 2019
रेणुका सहस्त्र नाम
रेणुकासहस्त्रनाम संकल्प
स्वस्तिः श्रीरेणुकासहस्त्रनाम स्तोत्र । त्र्यंबक ऋषी रेणुका दैवत
अनुष्टुप् छंद प्रकीर्तीत। सर्वकाळ स्मरण करी ॥ १ ॥
सर्वपापक्षयार्थ । श्रीजगदंबा रेणुका प्रीत्यर्थ ।
सर्वअभीष्ट फलप्राप्त्यर्थ । विनियोग बोलिला असे ॥ २ ॥
सर्व इंद्रियांसह व्हावे अर्पण । तयासीच म्हणती आत्मसमर्पण ।
तेचि अंगन्यासाचे प्रकार जाण । हृदयीं सर्व जाणावे ॥ ३ ॥
ॐ नमो रेणुका रामजननी । महापूरनिवासिनी ।
एकवीरा कालरात्री व्यपिनी । आदि अंती एकला ॥ ४ ॥
अथ ध्यानम्
ध्यायेन्नित्यमपूर्ववेषललितां कंदर्पलावण्यदां
देवीं देवगणै रुपास्यचरणां कारुण्यरत्नाकराम् ।
लीलाविग्रहिणीं विराजितभुजां सच्चंद्रहासादिभिर्भक्तानंदविघायिनीं
प्रमुदितां नित्योत्सवां रेणुकाम् ॥ १ ॥
स्तोत्रारंभ
ॐ नमो रेणुका रामजननी । सती जमदग्नी प्रियकरिणी ।
महामाया एकवीरा कालरजनी । महादीप्ती शिवात्मिका ॥ १ ॥
महामोहा सिद्धविद्या । सरस्वती योगिनी सिद्धा ।
चंद्रिका सिद्धलक्ष्मी शुद्धा । कामजननी शिवप्रिया ॥ २ ॥
कामदा मातृका मंत्रसिद्धिदा । महालक्ष्मी योगनिद्रा ।
मातृमंडलवल्लभा मंत्रसिद्धिदा । योगदात्री प्रभावती ॥ ३ ॥
चंडिका शुचिस्मिता चंद्रकांती । योगेश्र्वरी योगनिद्रा सूर्यकांती ।
अनादि अनंतास्वरुपा ती । क्रोधरुपा महागती ॥ ४ ॥
श्री मातृकापति हृत्क्रोशा । मनःश्रुतिस्मृति रसना रसा ।
वाचा चक्षू घ्राण त्वचा । चंडहासा महावरा ॥ ५ ॥
रथस्थिता महाशूरा । महाचापा महावीरा ।
चतुर्भुजा बर्हिपत्रा (मोरपीस) । बर्हिपत्रप्रियातनू ॥ ६ ॥
नादलुब्धा नादप्रीया । अमृतजीवनी अक्षया ।
पात्रशालिनी अमृतप्रीया । सिंधुप्राशिनी विराट्तनू ॥ ७ ॥
चंढासधराशूरा । डमरुमालिनी शिरोधरा ।
वरवर्णिनी वरदा वीरा । वेदजननी त्रीमूर्ती ॥ ८ ॥
तपोनिधी वेदविद्या । परा तपोलक्ष्मी सिद्धिदा ।
सात्विकी तपस्विनी परमशुद्धा । रक्तदंतिका रजोगुणी ॥ ९ ॥
शांता एकला रेणुतनया । कामाक्षी ऐंद्री ब्राह्मी माया ।
सत्परायणा महेशजाया । वडवानला वैष्णवी ॥ १० ॥
कौबेरी धनदा याम्या आग्नेयी । नैर्ऋत्यी ईशान्यी वायुमयी ।
समा वारुणी माहेंद्री साममयी । नरवल्लभा नवार्णा ॥ ११ ॥
सर्वऋषींचे ध्येयरुपिणी । भिल्लीवेषधारिणी भिल्लिणी ।
बर्बरी गूढभाषाखाणी । बर्बरालकामंडिता ॥ १२ ॥
गुंजाहारविभूषणी । श्यामामयूरपिच्छाभरणी ।
शृंगिवादनसुरसा प्रियभाषिणी । रेणुदुहिता शिवपूज्या ॥ १३ ॥
शिवा कालिका प्रियंवदा । सृष्टिकर्ती स्थितिकर्ती क्रुद्धा ।
रक्षोघ्नी पृथ्वी स्वाहा स्वधा । नारदसेविता नमो मनू ॥ १४ ॥
दैत्यसंहारकारिणी । चंद्रशेखरा हुंकारभाषिणी ।
फट्कारेंचि शत्रुनाशिनी । वौषट् वषट् रुपात् ॥ १५ ॥
निद्रा जागृती सुषुप्ती । स्वप्ना तुर्या चक्रिणी गती ।
देही कुंडलिनी जागृती । तूचि सत्राची ज्ञानकळा ॥ १६ ॥
सीता अहल्या अरुंधती । तारा मंदोदरी आदिती ।
भीमा नर्मदा भागीरथी । मही गौतमी कावेरी ॥ १७ ॥
शरयू गोमती चंद्रभागा । त्रिवेणी गंडकी रेवा गंगा ।
मानससरोवरी वेदिका । मणिकर्णिका पुण्यनदी ॥ १८ ॥
दत्तात्रेयनिवासभूमी । हरिद्वारभूमी मातापूरभूमी ।
मातृकास्थानव्याप्तस्वयंभूमी । मातृमंडलमंडिता ॥ १९ ॥
मातृमंडलमध्यगामिनी । मातृमंडलसंपूजिनी ।
कोल्हापुरनिवासिनी । मंदाकिनी भोगावती ॥ २० ॥
इडा पिंगला सुषुम्ना । षट्चक्रदेवता ज्ञानजन्या ।
चंद्रसूर्यगतिज्ञाना । सर्वविद्या तत्त्वज्ञा ॥ २१ ॥
दत्तमाता अनसूया । जमदग्नीश्र्वरप्रीयजाया ।
सर्वरुपा सुखाश्रया । सर्वेश्र्वरी सर्वज्ञा ॥ २२ ॥
पुण्येश्र्वरी पापेश्र्वरी । भोगप्रवर्तिनी कीर्ति भोत्र्की ।
जमदग्नितमोहन्त्री । जमदग्नीसुखैकभू ॥ २३ ॥
कालकामपरशुरामजननी । कविशक्ती कवित्वदायिनी ।
मुक्तिदा ॐकाररुपिणी । ऐंकार रुपिणी वैखरी ॥ २४ ॥
र्हींकार अंबा तमोरुपा । कामदायिनी क्लींकाररुपा ।
श्रींकारबीजा अखिलदानरुपा । बीजरुपे नमोस्तु ते ॥ २५ ॥
सर्चबीजा आत्मभूमी । धर्म अर्थ काम मोक्ष दायिनी ।
जमदग्नीसौख्यभूमी । जमदग्नीक्रोधहरा ॥ २६ ॥
जमदग्नीआज्ञाधारिणी । जमदग्नी वामांकवासिनी ।
जीतवीरा वीरजननी । वीरभू वीरसेविता ॥ २७ ॥
वीरदिक्षिता सर्वमंगला । शौर्यदीक्षिता कालकाला ।
कात्यायनिपरिवारा मंगला । निराकारा साकारा ॥ २८ ॥
अष्टसिद्धिप्रदायिनी । क्रूरग्रहविनाशिनी ।
अक्रूरा सम्मता विषमघ्नी । विषासना विषहंत्री ॥ २९ ॥
अहंकारा कारणाकृती । व्यालाभरणा संतुश्टी ।
व्यालमंडलमंडिता । कांतीकोमलांगा सुंदरी ॥ ३० ॥
अणुरुपा परमाणुरुपा । महापरा सदसद्रूपा ।
र्हस्वपरा र्हस्वरुपा । दीर्घा परदीर्घा परात्परा ॥ ३१ ॥
अद्वया द्वयरुपा प्रपंचरहिता । स्नेहांजनविवर्जिता ।
निरीहा स्थूलसूक्ष्मा ब्रह्मसुता । परब्रह्मस्वरुपिणी ॥ ३२ ॥
पृथ्वी ब्रह्मस्तुता महानिद्रा । हिरण्यगर्भरुपा योगनिद्रा ।
हरिस्तुता सौख्यनिद्रा । विश्र्वबीजा निरंजना ॥ ३३ ॥
अतुला ब्रह्मशक्ती ब्रह्मविद्या । कर्मरुपा परिघायुधा ।
श्यामला नारायणी आद्या । महालक्ष्मी सुरस्तुता ॥ ३४ ॥
वाचामनअगोचरा । कल्पनातीता मनोहरा ।
स्वरुपे तिलोत्तमा अप्सरा । विष्णुशक्ति पुण्यकरी ॥ ३५ ॥
रक्तबीजवधोद्युक्ता । रक्तचंदनचर्चिता ।
सुरक्तपुष्पाभरणा रक्ता । रक्तद्रंष्ट्रा भयप्रदा ॥ ३६ ॥
तीक्ष्णरक्तनखा शुंभहननी । निशुंभप्राणहारिणी ।
महामृत्यू विनाशिनी । कल्पनारहिता आद्यायनी ॥ ३७ ॥
महाशक्ती सुरस्तुता । निष्कला अष्टभुजा अनंता ।
धात्री कौस्तुभा पारिजाता । नानासुमनहारधारिणी ॥ ३८ ॥
नवनागस्वरुपिणी । प्रौढा सिंहगा सिंहगामिनी ।
बालिक त्रिशूळधारिणी । खड्गहस्ता शक्तिरुपा ॥ ३९ ॥
निधिरुपा समाधिस्था । मुग्धा सुधर्मिणी शिवस्तुता ।
शंखधारिणी चक्रमंडिता । गदाधारिणी पाशधरा ॥ ४० ॥
गणराज महाशक्ती । कृपासिंधू शिवशक्ती ।
हरिप्रिया भुक्तिमुक्ति । मृगारिवरवाहना ॥ ४१ ॥
प्रधाना श्रद्धा देवी गुहाप्रीता । गुहारुपिणी गणेशप्रीता ।
सर्वार्थदायिनी कामप्रीता । लीलागतिलोलुपा ॥ ४२ ॥
चामुंडा चित्रघंटा गुहा स्थिता । विश्र्वयोनी अवनिस्थिता ।
कालचक्रभ्रमभ्रांता । निरंतर श्रमहन्त्री ॥ ४३ ॥
श्रावणी संसारभ्रमनाशिनी । संसार उत्तममतिगामिनी ।
संसारफलसंपन्ना राज्ञी । विश्र्वयोनी विश्र्वमाता ॥ ४४ ॥
माते आरुढसी उच्चासनी । दैत्यदानवघातिनी ।
विमानस्था वरगामिनी । कालचक्रप्रवर्तिनी ॥ ४५ ॥
भव्या चेतना चापिनी । भव्याभव्यविनाशिनी ।
पाशधारिणी कालमृत्युनाशिनी । कालचक्रभ्रमभ्रांता ॥ ४६ ॥
मुकुटेशा वणिक्कन्या । ध्येया क्षीरसागरकन्या ।
उच्चासना सिंहासना । सुखासनी आरुढसी ॥ ४७ ॥
वेदवेदार्थतत्त्वज्ञा । वेदवादिनी श्रुतिज्ञा ।
स्मृतिज्ञा आणि पुराणज्ञा । इतिहासार्थविद्धर्म्या ॥ ४८ ॥
हिंगुला कालशालिनी श्रेष्ठध्येया । स्तन्यदा स्तन्यधरा शिशुप्रिया ।
वनस्था पार्वती शिवप्रिया । सकलागमदेवता ॥ ४९ ॥
सर्वबीजांतरस्थात्री मेनामैनाकभगिनी क्षयहंत्री ।
जलस्था स्थलस्था रिपुहन्त्री । निरातंका अमरप्रिया ॥ ५० ॥
लीलाविग्रहधारिणी । पापअज्ञानविनाशिनी ।
वनदेवता त्रिकालज्ञानी । पापहंत्री पुण्यधी ॥ ५१ ॥
दृश्या दृष्टी दृश्यविषया । शमस्थिता योगविद्या ।
सांख्यविद्या त्रयीविद्या । सर्वदेव शरीरिणी ॥ ५२ ॥
श्रेष्ठरथसंस्थिता वीररथा । रथनिष्ठा रथस्थिता ।
मधुकैटभहंत्री शांता । नृपवश्यप्रदायिनी ॥ ५३ ॥
त्रिपुरसुंदरी पुण्यकीर्ती । स्थावरा जंगमा बलिशक्ती ।
क्षांती बलिप्रिया नष्टहंत्री । जयदेवता वीरश्री ॥ ५४ ॥
दैत्यसैन्यपराभवकारिणी । महिषासुरविनाशिनी ।
डमरुनादे उल्हासिनी । वीरलक्ष्मी वीरकांता ॥ ५५ ॥
क्षीरसागरशयिनी । शिवदूती सनातनी ।
उद्गीथमर्यादा सामगायिनी । इंद्रादिदेवसंस्तुता ॥ ५६ ॥
विद्युत्शक्ती मेघवाहिनी । समाधी कैवल्यपददायिनी ।
विघ्ना दारिद्र्यवनदाहिनी । चतुरानना गायत्री ॥ ५७ ॥
तुळजा म्हाळसा रती विकराला । पितृशक्ती आत्रेयी कमला ।
अवतारा आध्या सकलकला । रेणुवंशभूषणा ॥ ५८ ॥
हुंकारगर्जिता भाषिणी । धूम्रलोचनविनाशिनी ।
त्रिभुवना सुखदायिनी । एकमूर्ती त्रीनेत्रा ॥ ५९ ॥
चंडमुंड विनाशिनी । पंचवदना बलिमोहिनी ।
प्रसन्ना त्रिलोकानंददायिनी । त्रिधामूर्ती त्रिगुणमयी ॥ ६० ॥
जयंतिका पंचमूर्ती । दशमूर्ती दक्षिणामूर्ती ।
एकमूर्ती अनेकआकृती । बहुविभूती भवानी ॥ ६१ ॥
एकचक्षू अनंताक्षी । विश्र्वपालिनी विश्र्वाक्षी ।
चतुर्विंशतितत्त्वाद्या सर्वसाक्षी । चतुर्विशतितत्त्वज्ञा ॥ ६२ ॥
सोहंहंसा विशेषज्ञानी । जयघंटा जयध्वनी ।
यमघंटा अमृतजीवनी । निर्विशेषा निराकृती ॥ ६३ ॥
पांचजन्यस्फुरत्शक्ती । महाबला हनुमत्शक्ती ।
सेतुशीला तरणशक्ती । रामशक्ती विराट् तनु ॥ ६४ ॥
सेनासागरआक्रमणा । आस्तिकालंका प्रज्वलना ।
प्रीती नरनारायणा । लोकनीती पापहरा ॥ ६५ ॥
विश्र्वबाहु त्रिलिंगिका । दक्षिणा दक्षकन्यका ।
सर्वसुखदायिनी सौख्या । सदसद्रूपशालिनी ॥ ६६ ॥
प्राची प्रतीची आदिदिशा । प्रकाशमयी स्वप्रकाशा ।
विषमईक्षणा दुर्धर्षा । शिवलिंगप्रतिष्ठात्री ॥ ६७ ॥
शवलिंग प्रतिष्ठात्री । विषयअज्ञाना निवृत्ती ।
सदसदरुपा विश्र्वमूर्ती । द्वय-अद्वयवर्जिता ॥ ६८ ॥
गौरी वृषगा वृषवाहना । कैलासशोभा शशिरविशअग्नि नयना ।
शशिरविअग्नी विग्रहणा । विषमईक्षणा दुर्धर्षा ॥ ६९ ॥
लंकादाहकरी दीप्ती । वैकुंठविलासिनी मूर्ती ।
वैकुंठशोभा कलाकृती । सौभाग्यवरदायिनी ॥ ७० ॥
नभोमूर्ती तमोमूर्ती । अमेयबुद्धी तेजोमूर्ती ॥
सूर्यमूर्ती चंद्रमूर्ती । यजमानशरीरिणी ॥ ७१ ॥
आपमूर्ती इलामूर्ती । नरनारायणआकृती ।
यज्ञायज्ञकृती यज्ञकृती । अशक्तिहारिणी यागशक्ती ॥ ७२ ॥
वेदवेदांगपारगा । यज्ञभोक्रत्री यज्ञभागा ।
कृपा विश्र्वेश्र्वरी स्वंगा । विषयअज्ञानावेगळी ॥ ७३ ॥
सुरभी शताक्षी कामदेवता । दशदिशाव्यापिनी अनंता ।
महौषधीरसप्रीता । वैद्यविद्याचिकिच्छा ॥ ७४ ॥
कामाचारप्रिया बलदायिनी । अन्नपूर्णिका रुद्राणी ।
अन्नदायिनी रसदायिनी । रुद्रवदनी रुद्रपूज्या ॥ ७५ ॥
मेघशक्ती महावृष्टी । शिवदा शर्मदा सुवृष्टी ।
भोजनप्रिया शांति तुष्टी । वाच्छाधिककफलप्रदा ॥ ७६ ॥
कामाचारप्रदापंक्ती । पचनक्रिया पाकशक्ती ।
सुपक्वफलदा वांछाशक्ती । अन्नपूर्णा अन्नदा ॥ ७७ ॥
सर्वमंत्रमयी पूर्णा । सर्पसर्वांगभूषणा ।
सर्वलक्षणी संपूर्णा । अवलक्षणनाशिनी ॥ ७८ ॥
सर्वभूतात्मिका कामदा । कृतिकर्मफलप्रदा ।
ध्रुवाटोपा ध्रुवार्थदा । चराचरविभाविनी ॥ ७९ ॥
चराचर गती जेत्री । कृष्णा ब्राह्मणी ब्रह्मशक्ती ।
गुहाशक्ती गणेशशक्ती । सहस्त्रनयना नारसिंही ॥ ८० ॥
लक्षा लक्षधरार्धहारिणी । सर्पमाला वस्त्रधारिणी ।
शेषशक्ती शेषशायिनी । शेषरुपा महामाया ॥ ८१ ॥
वाराही सहस्त्राक्षी कूर्मशक्ती । वराहदंष्ट्रा ध्रुवशक्ती ।
बलबुद्धी कामयुक्ती । चित्तसदना शुभालया ॥ ८२ ॥
कामी कामप्रवर्धिनी । चिद्रूपा आनंददायिनी ।
नादरुपिणी बिंदुरुपिणी । ध्रुवाचारा ध्रुवस्थिता ॥ ८३ ॥
ध्रौव्या आढ्या अग्निहोत्रा । ध्रुवा ध्रुवामयी कुधीहरा ।
नीलग्रीवा ध्रुवाचारा । संगअसंगरागप्रवर्धिनी ॥ ८४ ॥
पवित्रदृष्टी पवित्रकरणी । निःसंगा चतुराश्रमवासिनी ।
ब्रह्मचर्यधर्मपालिनी । यतिधर्मस्फुरत्तनू ॥ ८५ ॥
ऋषिवच्छला संगबहुला । हृदयरुपा कृष्णा बगला ।
मातंगी विष्णुशक्ती विमला । रागीमानसआश्रया ॥ ८६ ॥
चतुर्वर्णपरिपूर्णा । राजदुहिता ब्राह्मणवर्णा ।
वैश्यदुहिता शूद्रकन्या । गृहस्थाश्रमवासिनी ॥ ८७ ॥
ब्रह्मचर्यासेविनी । गृहधर्मनिरुपिणी ।
गृहधर्मविषादघ्नी । कुटुंबवत्सला प्रेमला ॥ ८८ ॥
अखिल जगाची उत्पत्ती । सर्व सृष्टीचे पालन कर्ती ।
स्वरुपी लीलेने मिळवी अंती । ऐसाचि खेळ नित्याचा ॥ ८९ ॥
नानावादी विशेषज्ञानी । धर्मवाद निरुपिणी ॥
निराकारी शून्यवादिनी । नानावादनिरंगता ॥ ९० ॥
सृष्टिकारिणी क्रियाशक्ती । स्थिति कारिणी छायाशक्ती ।
उपशमरुपिणी ज्ञानशक्ती । अपूर्वशक्तीसंपन्ना ॥ ९१ ॥
नवचंडी सत्यसंकल्पा । कल्पनातिगा निर्विकल्पा ।
क्रियाहेतू आद्या विकल्पा । संकल्पाकल्परुपिणी ॥ ९२ ॥
काशी अयोध्या द्वारका । मथुरा कांची अवंतिका ।
पंढरी पांचाली विशोका । धर्मशक्ती जयध्वजा ॥ ९३ ॥
समा ईक्षणा भुक्ति मुक्ती । विश्र्वदृष्टी धर्मशक्ती ।
चिंतानाशिनी चातुर्ययुक्ती । कृपार्द्रअंगीं कृपाळू ॥ ९४ ॥
कृपाश्रुती कृपाचिंता । अज्ञानकल्पना अनंता ।
महापूरसौंदर्यवर्धिता । महापूरस्थितिकृती ॥ ९५ ॥
प्रपंचरुपिणी समदृष्टी । कार्यक्षमता देहपुष्टी ।
स्वयमेवअखिलासृष्टी । अयोनिजा काया पुण्यरुपा ॥ ९६ ॥
भद्रकाली डमरुदर्पिता । डुम डुम डमरु प्रीति वल्गिता ।
भुवनेश्र्वरी वीरवंदिता । महापुरीची महादेवी ॥ ९७ ॥
त्रिपुरा यमाई कोलरुपिणी । शाक्तधर्मप्रवर्तिनी ।
एलांबा रुद्रादिदेवजननी । वटवासिनी भूमिस्था ॥ ९८ ॥
कुंभदर्पहरा विष्णुमाया । शिशुवत्सला झोलाप्रिया ।
मातंगी विष्णुशक्ति शीतला । ब्रह्मादिकांसी वंदनीया ॥ ९९ ॥
प्रेतासननिवासिनी । नीला रुक्मा शंकरजननी ।
त्रिगा वामनशक्ति वाग्वादिनी । हिरण्यगर्भा भूदेवी ॥ १०० ॥
गरुडगमना ब्रह्मास्त्रा । ब्रह्मभूषिता पाशुपतास्त्रा ।
समरंगणी नानाशस्त्रा । सुकौशल्ये धारिणी ॥ १०१ ॥
नीलकमललोचनी । शंकरार्धशरीरिणी ।
दारुणा भ्रमादिगणरुपिणी । मोहरात्री मोहिनी ॥ १०२ ॥
भैरवी भीषणा गरलाशना । कपर्दीसर्वांगभूषणा ।
कपर्दिप्रीया पीतवसना । दीपकक्रीडा उल्हासिनी ॥ १०३ ॥
सावित्री पीता दशवक्त्रा । तीननेत्रा विभूषिता ।
दशांघ्रि वीस बाहु सुशोभिता । नीलबाहू अति उत्तमा ॥ १०४ ॥
स्फूरत दाढा अतिभीषणा । सुगंधा कर्पूरकांतिवदना ।
षड्बीजा नवबीजा नवार्णा । नवाक्षरतनुखगा ॥ १०५ ॥
कामविग्रह ब्रह्मगेया । र्हींकारबीजा मुनिध्येया ।
मालामंत्रमयी जप्या । आढ्या नवार्णा द्वादशवर्षा ॥ १०६ ॥
जपविघ्नविनाशिनी । जपमाला जयदायिनी ।
षोडशस्वरी मंत्ररुपिणी । सर्वबीजैकदेवता । १०७ ॥
जपकर्ती जपस्तोत्रा । मंत्रयंत्रफलप्रदा ।
जयदा मंत्रावरणदेवता । यंत्रावरणरुपिणी ॥ १०८ ॥
शमी पद्मिनी पद्मपत्राक्षी । यज्ञांगदेवता सहस्त्राक्षी ।
यज्ञसिद्धी अनंताक्षी । ब्रह्मपदप्रदायिनी ॥ १०९ ॥
सम्मता महिषांतकारिणी । अभिचार उपशमनी ।
सरवानंदविधायिनी । चारी वेद स्वरुपिणी ॥ ११० ॥
ऋग्वेदा यजुर्वेदा सामवेदा । अभिचारप्रीया अथर्ववेदा ।
लेखकस्थितालेखणी प्रसिद्धा । पंचतंत्राधिदेवता ॥ १११ ॥
शांतिमंत्राधिदेवता शमनी । सर्वानंदविधायिनी ।
अथर्वपाठसंपन्ना लेखणी । पद्मावती अभिधागती ॥ ११२ ॥
भूमलेखा वर्णशक्ती । सर्वमंगला सर्वशक्ती ।
चिंतानाशिनी चातुर्यशक्ती । चिंताशोकविनाशिनी ॥ ११३ ॥
शूलेश्र्वरी कुशूलघ्नी । नलकूबरी ऊर्ध्वकेशिनी ।
श्रीधरी विनायकी करालिनी । ज्वालामुखी भूतनायका ॥ ११४ ॥
कामेश्र्वरी कीर्तिकामा । भूतनायका कला कामा ।
कामिनी विजया सर्वकामा । महोत्साहिनी महाबला ॥ ११५ ॥
महाभयनिवारिणी । पीडापापविनाशिनी ।
जगत्प्रतिष्ठा कल्याणी । सहस्त्रभूजनिग्रहा ॥ ११६ ॥
अलकापुरनिवासिनी । प्रभा प्रभाकरी मृडानी ।
काष्ठा शांकरी दुर्गाणी । सप्त अश्र्वरथसंस्थिता ॥ ११७ ॥
संध्या अक्षरा त्रियात्रा । भारती तुर्या अर्धमात्रा ।
वेदगर्भा वेदमाता । हिमाचलक्रीडनी ॥ ११८ ॥
कौशिकी क्षुधा तृष्णा धूम्रा । अंबालिका त्र्यंबका स्वरा ।
रौद्रा पानपात्रकरा । रक्तचामुंडा दुरत्यया ॥ ११९ ॥
चिता स्थिता श्रद्धा वार्ता जांती । शोभावतंसिनी महास्मृती ।
दुर्गपरा सारा ज्याोत्स्ना धृती । छाया तुष्टी तामसी ॥ १२० ॥
तृष्णा श्रद्धा बुद्धी वाणी । सहस्त्रनयना चक्रधारिणी ।
लज्जा महिषासूरमर्दिनी । भद्रा भीमा भगवती ॥ १२१ ॥
नवदुर्गा कात्यायनी । अपराजिता चंद्ररुपिणी ।
महामारी मेघा इंद्राणी । अष्टादशदंडा दोन भुजा ॥ १२२ ॥
भ्रामरी पिंगला पानोन्मत्ता । सर्वत्रहस्तपादउरुयुक्ता ।
सहस्त्रशीर्षा विश्र्वमाता । भक्तानुग्रहकारिणी ॥ १२३ ॥
अखिलललनांची ऐकात्म्यभाविनी । समस्तललनाऐक्यध्वनी ।
प्राणशक्ती अनंतगुणी । घृतदैत्यमारी विश्र्वछाया ॥ १२४ ॥
सप्तद्वीपा अब्धिमेखला । अनंतनयना अनंतमुखा कोमला ।
कामधेनू सर्वकल्याणी नीला । सत्ता सप्ताब्धिसंश्रया ॥ १२५ ॥
नमो शारदा त्र्यंबकासूता । जगजननी रेणुका माता ।
वाडेश्र्वर योगेश्र्वरी कुलदेवता । सर्वसमर्थे सर्वेश्र्वरी ॥ १२६ ॥
फलश्रुती
शंकर उवाच
दिव्य रेणुका सहस्त्रनाम । कथिले तुजसी सर्वोत्तम ।
पूर्ण करील सर्व काम । षण्मुखा मज प्रीतीने ॥ १२७ ॥
भजतां भुक्तिमुक्तिदायक । विशेष जय लाभकारक ।
याचे समान आणिक । न दिसे कोठें शोधिता ॥ १२८ ॥
नवसहस्त्र पुरश्र्चरण देख । विजयासाठी विशेष प्रयोग ।
साधेल सत्वर कार्यभाग । सत्य सत्य त्रिवाचा ॥ १२९ ॥
विधियुक्त करावे पठण । सांगतेसी होमहवन ।
पुष्प आज्य तीळ चंदन । हळदीकुंकुम मधु पायस ॥ १३० ॥
नानापरीची परिमळे । बहुबीजे द्राक्षे रंभाफळे ।
ऊस नारळ नारुंगे मधुरफळे । आहुती समयी अर्पावी ॥ १३१ ॥
स्वयें करोनि मंगलस्नान । महावस्त्राचे परिधान ।
कपर्दी महादेव पूजोन । घृतदीप दोन लावावे ॥ १३२ ॥
हें स्तोत्र जे पठण करिती । दृढभक्तिने नित्य ऐकती ।
तयांसी सर्व अभीष्ट प्राप्ती । होवोनि दीर्घायु होतील ॥ १३३ ॥
शुक्ल अथवा कृष्णपक्षी । प्रारंभ करावा षष्ठीचे दिवशी ।
साधके विधियुक्त निश्र्चयेसी । अनुष्ठान करावे ॥ १३४ ॥
अश्र्विन शुद्ध प्रतिपदेशी । कलश पूजावा प्रतिवर्षी ।
करावा नवरात्र उत्सवासी । अति आनंदे उल्हासे ॥ १३५ ॥
दोहीकडे घृतदीपक । दक्षिण उत्तरेसी सम्यक ।
नाना उपचारे पक्वान्नादिक । भक्तिभावे अर्पावे ॥ १३६ ॥
कुंकुम आगरु कस्तुरी । चंदनादि नाना प्रकारी ।
ब्राह्मण सुवासिनी कुमारी । प्रेमे आदरे पूजाव्या ॥ १३७ ॥
चतुर्विधे सुग्रास अन्ने । यथाशक्ती दक्षिणा वसने ।
धान्ये आणिक गोदाने । वित्तशाठ्य न करावे ॥ १३८ ॥
वारंवार करावे वंदन । उदयोस्तु म्हणोनी प्रार्थना ।
करपात्री प्रसाद-याचना । अनन्य भक्तीने करावी ॥ १३९ ॥
प्रसाद लाभलियावरी । रेणुका माता हृदयांतरी ।
दृढभक्तिभावे चिंतन करी । पुनः पुन्हा प्रार्थूनिया ॥ १४० ॥
भावे योगिनीवृंद पुजावे । अन्नदाने तोषवावे ।
शृंगादि मंगलवाद्ये भावे । नम्र होउनी आनंदे ॥ १४१ ॥
लाभलिया प्रसाद आशीर्वचन । सर्वांसह करावे भोजन ।
नानावाद्ये राग गायन । अति उल्हासे भक्तीने ॥ १४२ ॥
दीपोत्सवे हरिकीर्तने । उन्मत्त होउनी डमरु वादने ।
प्रदोष समयी गोदोहन । महोत्सव करावा ॥ १४३ ॥
दृष्टीगोचर जे जे काही । जगदंबामय ते ते पाही ।
नृत्य गायने वाद्ये यांही । रात्री जागरण करावे ॥ १४४ ॥
धरणीकंपे आवर्षणे । दुष्ट उत्पाते दूरतिक्रमणे ।
घोर संकटी आयुत आवर्तने । कार्यसिद्धी त्वरित होय ॥ १४५ ॥
निशीथे वा प्रदोषकाळी । शुचिर्भूतपणे देउळी ।
करावा स्तोत्र पाठ वेळोवेळी । नऊ दिवस भक्तीने ॥ १४६ ॥
त्रिवार जप नियम युक्त । सहामास करावे व्रत ।
शुचिर्भूतपणे करिता निश्र्चित । दारिद्र्यार्णव नष्ट होय ॥ १४७ ॥
नामावलीने पूजन होय । प्रतिदिवशी करिता नेम ।
जगन्माता प्रसन्न होऊन । विपुल संपदा देईल ॥ १४८ ॥
अष्टमी नवमी मंगळवारी । नियमयुक्त पठण करी ।
सर्व काम पूर्ण होती निर्धारी । अन्य उपाय काय पुसणे ॥ १४९ ॥
महत्कार्य आरंभिता । भावे पूजावी रेणुका माता ।
कुमारिकांचे पूजन करिता । जयलाभ होय निश्र्चये ॥ १५० ॥
हे स्तोत्र जे पठण करिती । भूत पिशाच्च तेथे न टिकती ।
वैरी वैर करुं न शकती । ऐसा प्रभाव याचा हो ॥ १५१ ॥
भूवरी सागरी गीरी शिखरी । प्रवासासी जातां वनभितरी ।
सुखद प्रवास होईल निर्धारी । संकट न ये कदापी ॥ १५२ ॥
चित्तासी विषाद कोप झालिया । कलह आगामी दुष्ट स्वप्न पडलिया ।
हरि प्रसादही लाभलिया । आनंदे पठण करावे ॥ १५३ ॥
स-काम अथवा निष्काम पठता । चारी पुरुषार्थ येतील हाता ।
त्रेवर्णिकां अधिकार सर्वथा । श्रवण करावे इतरांनी ॥ १५४ ॥
नारी सौभाग्य वर पावती । कन्या सर्वश्रेष्ठ वर वरिती ।
उदासीना पावेल प्रीती । दांपत्य-सुख पुत्रादिक ॥ १५५ ॥
सुरुपा सुभगा होतील ललना । होतील दृढगर्भवती ललना ।
संतति संपत्ती सर्वमान्या । संसारसुख पावतिल ॥ १५६ ३
ग्रह बालग्रह न बाधती । आयुरारोग्य विद्या संपत्ती ।
पुस्तक पूजन यथाशक्ती । होम-हवन करावे ॥ १५७ ॥
गर्भिणीने केलिया पठण । होईल गर्भदोष निवारण ।
सुखप्रसव सुलक्षण । अर्भक होय सुखदायी ॥ १५८ ॥
हे सर्वश्रेष्ठ स्तोत्र वाचावे । बहुत जनांसी ऐकवावे ।
नऊ विप्रांसी दान करावे । पुस्तक रेणुका प्रीत्यर्थ ॥ १५९ ॥
पुत्रार्थियांसी पुत्र होती । धनार्थियांसी विपुल श्रीमंती ।
कन्यार्थि सुकन्या पावती । कुलशिलादि मंडिता ॥ १६० ॥
विद्यार्थी विद्यावंत होती । कविताप्रियासी कवित्वमती ।
प्रज्ञावंत प्रभावी होती । ग्रंथधारणा समर्थ ॥ १६१ ॥
बंदी बंधमुक्त होती । जड जिव्हेचे स्पष्ट वक्ते होती ।
कामी पूर्णकाम होती । भूपाल वश होती ॥ १६२ ॥
कुष्ठ अपस्मार ज्वररहित । रोगी होतील रोगमुक्त ।
शत्रुसंघामाजी जय प्राप्त । सत्य सत्य त्रिवाचा ॥ १६३ ॥
अग्निनारायण शीतल । वीष ते अमृतचि केवळ ।
भावभक्तीने पठणाचे फळ । शस्त्र न लगे अंगासी ॥ १६४ ॥
अंध ते डोळस होती । बहिरे श्रोत्रेंद्रिय पावती ।
मुकेही श्रेष्ठ वक्ते होती । रेणुकाप्रसादे करुनिया ॥ १६५ ॥
रेणुका ऐसे एकनामपायी । धर्म अर्थ काम मोक्ष दायी ।
सहस्त्रनाम फळ काय न होई । समर्थ सांगा सज्जन हो ॥ १६६ ॥
रेणुकेच्या स्मरणमात्रे शरीरी । वीष न बाधते ।
सर्व पिडांची शांति होते । सुख संपदा पूर्ण लाभे ॥ १६७ ॥
महाविष्णू लक्ष्मीयुक्त । प्रजापती सावित्री सहित ।
मीही स्वयें भवानी सहित । रेणुकार्चने तृप्त होती ॥ १६८ ॥
पारायण याचे करितां । सर्व यज्ञांचे फळ येईल हाता ।
सांगयोग फळ रेणुका पूजितां । प्राप्त होईल निर्धारे ॥ १६९ ॥
बाहू उंचावूनि सांगतो तुजेसी । कार्तिकेया ऐके वचनासी ।
भावेसेवितां रेणुकेसी । सर्व देव संतोषती ॥ १७० ॥
ऐसे हे पद्मपुराणांत । मायोपाख्यानी शंकर कथित ।
शंकर-षण्मुख संवादांत । रेणुकादेवी प्रस्ताव ॥ १७१ ॥
रेणुकेच्या प्रेरणा प्रभावे । ग्रंथ आरंभिता भक्ति भावे ।
तिनेची पूर्ण केला स्वभावे । म्या काय वदू मंदमती ॥ १७२ ॥
नाहीं पाहिला अधिकार । नाहीं आचार नाही विचार ।
लहान तोंडी घास थोर । घेतला माते क्षमा करी ॥ १७३ ॥
मध्यप्रदेशी धामनोर नगर । बालाजीचे रम्य मंदिर ।
त्याच्या भव्य गच्चीवर । ग्रंथ पूर्ण जाहला ॥ १७४ ॥
स्वस्ति श्री रेणुकासहस्तर नाम स्तोत्र । पठण करिताच चारीपुरुषार्थ ।
ज्ञान चातुर्य बल परमार्थ । प्राप्ती होती ही शिव उक्ती ॥ १७५ ॥
अधिक काही सांगणे नाही । करती करवती अंबाबाई ।
चरणीं आम्हां ठाव देई । सरस्वती शरण असे ॥ १७६ ॥
॥ श्रीजगदंबा-रेणुकार्पणमस्तु ॥ शुभं भवतु ॥
Shri Renuka Sahasra Nam Stotra
Saturday, 28 September 2019
दुर्गा सप्तशती मंत्र
आपत्त्ति से निकलने के लिए:
शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे ।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमो स्तु ते ॥
भय का नाश करने के लिए:
सर्वस्वरुपे सर्वेशे सर्वशक्तिमन्विते ।
भये भ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमो स्तु ते ॥
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जीवन के पापो को नाश करने के लिए:
हिनस्ति दैत्येजंसि स्वनेनापूर्य या जगत् ।
सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्यो नः सुतानिव ॥
बीमारी महामारी से बचाव के लिए:
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभिष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्माश्रयतां प्रयान्ति ॥
पुत्र रत्न प्राप्त करने के लिए:
देवकीसुत गोविंद वासुदेव जगत्पते ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥
इच्छित फल प्राप्ति:
एवं देव्या वरं लब्ध्वा सुरथः क्षत्रियर्षभः
महामारी के नाश के लिए:
जयन्ती मड्गला काली भद्रकाली कपालिनी ।
दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वाहा स्वधा नमो स्तु ते ॥
शक्ति और बल प्राप्ति के लिये:
सृष्टि स्तिथि विनाशानां शक्तिभूते सनातनि ।
गुणाश्रेय गुणमये नारायणि नमो स्तु ते ॥
इच्छित पति प्राप्ति के लिये:
ॐ कात्यायनि महामाये महायेगिन्यधीश्वरि ।
नन्दगोपसुते देवि पतिं मे कुरु ते नमः ॥
इच्छित पत्नी प्राप्ति के लिये:
पत्नीं मनोरामां देहि मनोववृत्तानुसारिणीम् ।
तारिणीं दुर्गसंसार-सागरस्य कुलोभ्दवाम् ॥
नवदुर्गा मंत्र
1. धन से जुड़ी समस्या
यदि आपके घर-परिवार में धन संबंधी समस्याओं से बुरी तरह परेशान हैं तो अपनी गरीबी दूर करने के लिए नियमित माता के इस सिद्घ मंत्र का जाप करें।
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः।
सवर्स्धः स्मृता मतिमतीव शुभाम् ददासि।।
2. संतान सुख
किसी भी महिला को संतान सुख नहीं है तो नियमित इस मंत्र का जाप करें।
सर्वाबाधा वि निर्मुक्तो धन धान्य सुतान्वितः।
मनुष्यो मत्प्रसादेन भवष्यति न संशय॥
3. बुरे समय में करें जाप
यदि आपको लग रहा है कि कुछ दिनों से किसी भी कार्य शुरु करने पर सब गड़बड़ हो जा रहा है और बार-बार संकट में फंस जा रहे हैं तो देवी के इस मंत्र का जाप करें।
शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते।।
4.स्वस्थ शरीर
स्वास्थ्य और धन के साथ ऐश्वर्य से भरपूर जीवन पाना चाहते हैं तो देवी के इस सिद्ध मंत्र का जाप करें।
ऐश्वर्य यत्प्रसादेन सौभाग्य-आरोग्य सम्पदः।
शत्रु हानि परो मोक्षः स्तुयते सान किं जनै।।
5. मोक्ष प्राप्ति
जीवन मृत्यु यानी बार-बार जन्म लेने और मरने के चक्र से बचना चाहते हैं तो मोक्ष प्राप्ति के लिए नियमित देवी के इस मंत्र का जाप करें।
सर्वस्य बुद्धिरुपेण जनस्य हृदि संस्थिते।
स्वर्गापवर्गदे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते।
नवदुर्गा फ़ोटो आणि नौ मंत्र
नवरात्रि विशेष : नौ दिन की नौ देवी के नौ मंत्र