Saturday, 28 September 2019

विभिन्न गायत्री मंत्र

विभिन्न गायत्री मंत्र

सूर्य गायत्री

ॐ आदित्याय विद्महे। प्रभाकराय धीमहि। तन्नो सूर्य: प्रचोदयात्।     किंवा 

ॐ भास्कराय विद्महे। दिवाकराय धीमहि। तन्नो आदित्य प्रचोदयात्।

चंद्र गायत्रि

ॐ अमृतंगाय विद्महे। कलारुपाय धीमहि। तन्नो सोम प्रचोदयात्।

मंगल गायत्री

ॐ अंगारकाय विद्महे। शक्तिहस्ताय धीमहि। तन्नो भोम: प्रचोदयात्।

बुध गायत्री

ॐ सौम्यरुपाय विद्महे। वानेशाय च धीमहि। तन्नो सौम्य प्रचोदयात्।

गुरु गायत्री

ॐ अन्गिर्साय विद्महे। दिव्यदेहाय धीमहि। तन्नो जीव: प्रचोदयात्।

शुक्र गायत्री

ॐ भृगाय विद्महे। दिव्यदेहाय धीमहि। तन्नो शुक्र: प्रचोदयात्।

शनि गायत्री

ॐ भग्भवाय विद्महे। मृत्युरुपाय धीमहि। तन्नो सौरी: प्रचोदयात्।

राहू गायत्री

ॐ शिरोरुपाय विद्महे। अमृतेशाय धीमहि। तन्नो राहू: प्रचोदयात्।

केतु गायत्री


ॐ पद्म्पुत्राय विद्महे। अम्रितेसाय धीमहि। तन्नो केतु: प्रचोदयात्।

ब्रम्हा गायत्री

ॐ 202.3.77.167 ०१:०७, ६ सप्टेंबर २०१९ (IST)वेदात्मने च विद्महे। हिरण्यगर्भाय धीमहि। तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात्।

विष्णु गायत्री

ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।

शिव गायत्री

ॐ महादेवाय विद्महे। रुद्रमूर्तये धीमहि। तन्नो शिव: प्रचोदयात्।

कृष्ण गायत्री

ॐ देवकीनन्दनाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो कृष्ण: प्रचोदयात्।

राधा गायत्री

ॐ वृषभानुजायै विद्महे। कृष्णप्रियाय धीमहि। तन्नो राधा: प्रचोदयात्।

लक्ष्मी गायत्री

ॐ महालक्ष्मी च विद्महे। विष्णुपत्नी च धीमहि। तन्नो लक्ष्मी: प्रचोदयात्।

तुलसी गायत्री

ॐ श्री तुल्स्ये विद्महे। विष्णुप्रियाय धीमहि। तन्नो वृंदा: प्रचोदयात्।

इन्द्र गायत्री

ॐ सहस्त्रनेत्राय विद्महे। वज्रहस्ताय धीमहि। तन्नो इन्द्रः प्रचोदयात्।

सरस्वती गायत्री

ॐ वागदेव्यै च विद्महे। काम राज्या धीमहि तन्नो सरस्वती: प्रचोदयात्।

दुर्गा गायत्री

ॐ गिरिजायै विद्महे। शिवप्रियाय धीमहि। तन्नो दुर्गा प्रचोदयात्।

हनुमान गायत्री

ॐ अन्जनिसुताय विद्महे। वायुपुत्राय धीमहि। तन्नो मारुतिः प्रचोदयात।

पृथ्वी गायत्री

ॐ पृथ्वीदेव्यै विद्महे। सहस्रमूर्तयै धीमहि। तन्नो पृथ्वी: प्रचोदयात्।

राम गायत्री

ॐ दाशरथाय विद्महे। सीतावल्लभाय धीमहि। तन्नो राम: प्रचोदयात्।

सीता गायत्री

ॐ जनकनंदिन्यै विद्महे। भुमिजायै धीमहि। तन्नो सीता: प्रचोदयात्।

यम गायत्री

ॐ सूर्यपुत्राय विद्महे। महाकालाय धीमहि। तन्नो यम: प्रचोदयात्।

वरुण गायत्री

ॐ जल बिम्बाय विद्महे। नील पुरुषाय धीमहि। तन्नो वरुण: प्रचोदयात्।

नारायण गायत्री

ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्।

हयग्रीव गायत्री

ॐ वाणीश्वराय विद्महे। हयग्रीवाय धीमहि। तन्नो हयग्रीव: प्रचोदयात्।

हंसा गायत्री

ॐ परमहंसाय विद्महे। महाहंसाय धीमहि। तन्नो हंस: प्रचोदयात्|

Friday, 27 September 2019

मेरे वीर हनुमान प्यारे प्यारे,


तर्ज : तेरे होटो पे दो फूल प्यारे प्यारे

मेरे वीर हनुमान प्यारे प्यारे,
श्री राम जी के तुम हो दुलारे,
प्रभु लीला हमे भी दिखलाना,
मेरे वीर हनुमान प्यारे प्यारे

कैसा खेल ये तुमने दिखाया सूरज को मुख में दबाया,
सारे जग में अँधेरा छाया फिर देव लोक गबराया,
किया देवो ने ध्यान तब माने हनुमान,
प्रभु तुम सा न कोई बलवाना,
मेरे वीर हनुमान प्यारे प्यारे

तुम ने ही जलाई थी लंका तीनो लोक में भाजे डंका,
जब व्याकुल थे रघुराई तुमने सीता की खोज लगाई,
बोले श्री भगवान तेरी जय हो हनुमान तूने खूब निभाया याराना,
मेरे वीर हनुमान प्यारे प्यारे

हरते संकट तुम दुःख वणजण तेरा नाम है संकट मोचन,
कर नमन तुम्हे वैरागी करता श्रदा सुमन तुम्हे अर्पण,
चढ़े लड्डू बूंदी भोग मिटे सबके रोग शोक,
लाल चोला चढ़े तुम्हे रोजाना,
मेरे वीर हनुमान प्यारे प्यारे

मंगल रूप जो मंगल करते मंगलमय भगवान है,

मंगल रूप जो मंगल करते मंगलमय भगवान है,
वो पवन पुत्र हनुमान है वो महावीर हनुमान है,

बाल रूप अति मोहक प्यारा भूल से भानु मुख में ढाला,
घोर अँधेरा हुआ जगत में लीला रची महान है,
वो पवन पुत्र हनुमान है वो महावीर हनुमान है,

माँ सीता को खोज के आये रावण की लंका को जलाये,
कोई न टिकने पाये सन्मुख चूर किया अभिमान है,
वो पवन पुत्र हनुमान है वो महावीर हनुमान है,

लक्ष्मण राम को प्राण से प्यारा मेघनाथ ने वान दे मार ,
पर्वत द्रोण गिरी ले आये जान में आई जान है,
वो पवन पुत्र हनुमान है वो महावीर हनुमान है,

कार्तिक सतगुरु लाल मनाये संग पुखराज के अर्ज लगाये,
लाल लंगोटा हाथ में सोटा ये जिनकी पहचान है,
वो पवन पुत्र हनुमान है वो महावीर हनुमान

सुंदर फल जिस पाठ का,उसका सुन्दरकाण्ड है नाम,

तर्ज : कितना बदल गया इंसान

सुंदर फल जिस पाठ का,उसका सुन्दरकाण्ड है नाम,
सुनकर खुश होते श्रीराम,सुनकर खुश होते हनुमान,
रामचरितमानस और तुलसीदास को करो प्रणाम,
सुनकर खुश होते श्रीराम,सुनकर खुश होते हनुमान,

पढ़ो इसे सब ध्यान लगाकर,नित नव अर्थ है होते उजागर,
पाठ करें जब जब प्रेम गाकर,सुनते हैं हनुमानजी आकर,
राम कथा होती है जहां वहां आते हैं हनुमान...सुनकर...

प्रेम भक्ति के इसमें में खजाने जो,पढ़ता वो ही ये जाने,
कर्मवीर बजरंगबली की बुद्धिमता ये पाठ बखाने,
सिया सुधी लाए लंका जलाए,किया नहीं अभिमान...सुनकर...

सियाराम लक्ष्मण की गाथा,बानर भालू भी हैं साथा,
भक्त विभीषण को निर्भय कर,शरण में लेते हैं रघुनाथा,
पाठ समापन पर रामेश्वर सेतुबंध निर्माण...सुनकर...

शिव के निकट जो इसको गाए,हरिहर की कृपा वो पाए,
क्योंकि भोले शंकर भी तो,सदाराम का ध्यान लगाएं,
इसका पठन-पाठन भी ‘‘पवन’’ कहे,स्वयं है एक वरदान...सुनकर...

Thursday, 26 September 2019

गणेश 108 नामावली

गजानन- ॐ गजाननाय नमः ।
गणाध्यक्ष- ॐ गणाध्यक्षाय नमः ।
विघ्नराज- ॐ विघ्नराजाय नमः ।
विनायक- ॐ विनायकाय नमः ।
द्वैमातुर- ॐ द्वैमातुराय नमः ।
द्विमुख- ॐ द्विमुखाय नमः ।
प्रमुख- ॐ प्रमुखाय नमः ।
सुमुख-ॐ सुमुखाय नमः ।
कृति- ॐ कृतिने नमः ।
सुप्रदीप- ॐ सुप्रदीपाय नमः ॥ 10 ॥

सुखनिधी- ॐ सुखनिधये नमः ।
सुराध्यक्ष- ॐ सुराध्यक्षाय नमः ।
सुरारिघ्न- ॐ सुरारिघ्नाय नमः ।
महागणपति- ॐ महागणपतये नमः ।
मान्या- ॐ मान्याय नमः ।
महाकाल- ॐ महाकालाय नमः ।
महाबला- ॐ महाबलाय नमः ।
हेरम्ब- ॐ हेरम्बाय नमः ।
लम्बजठर- ॐ लम्बजठरायै नमः ।
ह्रस्वग्रीव- ॐ ह्रस्व ग्रीवाय नमः ॥ 20 ॥

महोदरा- ॐ महोदराय नमः ।
मदोत्कट- ॐ मदोत्कटाय नमः ।
महावीर- ॐ महावीराय नमः ।
मन्त्रिणे- ॐ मन्त्रिणे नमः ।
मङ्गल स्वरा- ॐ मङ्गल स्वराय नमः ।
प्रमधा- ॐ प्रमधाय नमः ।
प्रथम- ॐ प्रथमाय नमः ।
प्रज्ञा- ॐ प्राज्ञाय नमः ।
विघ्नकर्ता- ॐ विघ्नकर्त्रे नमः ।
विघ्नहर्ता- ॐ विघ्नहर्त्रे नमः ॥ 30 ॥

विश्वनेत्र- ॐ विश्वनेत्रे नमः ।
विराट्पति- ॐ विराट्पतये नमः ।
श्रीपति- ॐ श्रीपतये नमः ।
वाक्पति- ॐ वाक्पतये नमः ।
शृङ्गारिण- ॐ शृङ्गारिणे नमः ।
अश्रितवत्सल- ॐ अश्रितवत्सलाय नमः ।
शिवप्रिय- ॐ शिवप्रियाय नमः ।
शीघ्रकारिण- ॐ शीघ्रकारिणे नमः ।
शाश्वत - ॐ शाश्वताय नमः ।
बल- ॐ बल नमः ॥ 40 ॥

बलोत्थिताय- ॐ बलोत्थिताय नमः ।
भवात्मजाय- ॐ भवात्मजाय नमः ।
पुराण पुरुष- ॐ पुराण पुरुषाय नमः ।
पूष्णे- ॐ पूष्णे नमः ।
पुष्करोत्षिप्त वारिणे- ॐ पुष्करोत्षिप्त वारिणे नमः ।
अग्रगण्याय- ॐ अग्रगण्याय नमः ।
अग्रपूज्याय- ॐ अग्रपूज्याय नमः ।
अग्रगामिने- ॐ अग्रगामिने नमः ।
मन्त्रकृते- ॐ मन्त्रकृते नमः ।
चामीकरप्रभाय- ॐ चामीकरप्रभाय नमः ॥ 50 ॥

सर्वाय- ॐ सर्वाय नमः ।
सर्वोपास्याय- ॐ सर्वोपास्याय नमः ।
सर्व कर्त्रे- ॐ सर्व कर्त्रे नमः ।
सर्वनेत्रे- ॐ सर्वनेत्रे नमः ।
सर्वसिद्धिप्रदाय- ॐ सर्वसिद्धिप्रदाय नमः ।
सिद्धये- ॐ सिद्धये नमः ।
पञ्चहस्ताय- ॐ पञ्चहस्ताय नमः ।
पार्वतीनन्दनाय- ॐ पार्वतीनन्दनाय नमः ।
प्रभवे- ॐ प्रभवे नमः ।
कुमारगुरवे- ॐ कुमारगुरवे नमः ॥ 60 ॥

अक्षोभ्याय- ॐ अक्षोभ्याय नमः ।
कुञ्जरासुर भञ्जनाय- ॐ कुञ्जरासुर भञ्जनाय नमः ।
प्रमोदाय- ॐ प्रमोदाय नमः ।
मोदकप्रियाय- ॐ मोदकप्रियाय नमः ।
कान्तिमते- ॐ कान्तिमते नमः ।
धृतिमते- ॐ धृतिमते नमः ।
कामिने- ॐ कामिने नमः ।
कपित्थपनसप्रियाय- ॐ कपित्थपनसप्रियाय नमः ।
ब्रह्मचारिणे- ॐ ब्रह्मचारिणे नमः ।
ब्रह्मरूपिणे- ॐ ब्रह्मरूपिणे नमः ॥ 70 ॥

ब्रह्मविद्यादि दानभुवे- ॐ ब्रह्मविद्यादि दानभुवे नमः ।
जिष्णवे- ॐ जिष्णवे नमः ।
विष्णुप्रियाय- ॐ विष्णुप्रियाय नमः ।
भक्त जीविताय- ॐ भक्त जीविताय नमः ।
जितमन्मधाय- ॐ जितमन्मधाय नमः ।
ऐश्वर्यकारणाय- ॐ ऐश्वर्यकारणाय नमः ।
ज्यायसे- ॐ ज्यायसे नमः ।
यक्षकिन्नेर सेविताय- ॐ यक्षकिन्नेर सेविताय नमः।
गङ्गा सुताय- ॐ गङ्गा सुताय नमः ।
गणाधीशाय- ॐ गणाधीशाय नमः ॥ 80 ॥

गम्भीर निनदाय- ॐ गम्भीर निनदाय नमः ।
वटवे- ॐ वटवे नमः ।
अभीष्टवरदाय- ॐ अभीष्टवरदाय नमः ।
ज्योतिषे- ॐ ज्योतिषे नमः ।
भक्तनिधये- ॐ भक्तनिधये नमः ।
भावगम्याय- ॐ भावगम्याय नमः ।
मङ्गलप्रदाय- ॐ मङ्गलप्रदाय नमः ।
अव्यक्ताय- ॐ अव्यक्ताय नमः ।
अप्राकृत पराक्रमाय- ॐ अप्राकृत पराक्रमाय नमः ।
सत्यधर्मिणे- ॐ सत्यधर्मिणे नमः ॥ 90 ॥

सखये- ॐ सखये नमः ।
सरसाम्बुनिधये- ॐ सरसाम्बुनिधये नमः ।
महेशाय- ॐ महेशाय नमः ।
दिव्याङ्गाय- ॐ दिव्याङ्गाय नमः ।
मणिकिङ्किणी मेखालाय- ॐ मणिकिङ्किणी मेखालाय नमः ।
समस्त देवता मूर्तये- ॐ समस्त देवता मूर्तये नमः ।
सहिष्णवे- ॐ सहिष्णवे नमः ।
सततोत्थिताय- ॐ सततोत्थिताय नमः ।
विघातकारिणे- ॐ विघातकारिणे नमः ।
विश्वग्दृशे- ॐ विश्वग्दृशे नमः ॥ 100 ॥

विश्वरक्षाकृते- ॐ विश्वरक्षाकृते नमः ।
कल्याणगुरवे- ॐ कल्याणगुरवे नमः ।
उन्मत्तवेषाय- ॐ उन्मत्तवेषाय नमः ।
अपराजिते- ॐ अपराजिते नमः ।
समस्त जगदाधाराय- ॐ समस्त जगदाधाराय नमः ।
सर्वैश्वर्यप्रदाय- ॐ सर्वैश्वर्यप्रदाय नमः ।
आक्रान्त चिद चित्प्रभवे- ॐ आक्रान्त चिद चित्प्रभवे नमः ।
श्री विघ्नेश्वराय- ॐ श्री विघ्नेश्वराय नमः ॥ 108 ॥

॥ इति श्रीगणेशाष्टोत्तरशतनामावलिः सम्पूर्णा ॥



Monday, 23 September 2019

श्रीदत्तगुरुंची जूनी आरती

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*श्री दत्तगुरूंची जुनी आरती, अलीकडे कुठल्याही आरती संग्रहात नसते म्हणून आज मुद्दाम  audio सह देत आहे.*
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*श्रीगुरू दत्तराज मूर्ती ओवाळितो प्रेमे आरती*
*ब्रह्मा विष्णू शंकराचा असे अवतार श्रीगुरूंचा*
*कराया उद्धार जगाचा जाहला बाळ अत्री ऋषींचा*
*धरीला वेष असे यतीचा मस्तकी मुगुट शोभे जटेचा*
*कंठी रूद्राक्ष माळ धरूनी*
*हाता मधे आयुध बहुत भरूनी*
*तेणें भक्तांची क्लेश हरूनी*
*त्यासी करूनी नमन, होय अती शमन, होय रिपू दमन असे त्रैलोक्यावरती ॥*
*गाणगापुरी वस्ती ज्याची प्रीती औदुंबर छायेची*
*भीमा अमरजा संगमाची भक्ती असे बहुत सुशिष्यांची*
*वाट दावूनिया योगाची ठेव देतसे निजमुक्तीची*
*काशी क्षेत्री स्नान करीतो*
*करवीरी भिक्षेला जातो*
*माहूर निद्रेला वरी तो*
*तरतरीत छाती, झरझरीत नेत्र, गरगरीत शोभतो त्रिशूल जया हाती ॥*
*अवधूत स्वामी सुखानंदा ओवाळीतो सौख्य कंदा*
*तारी या दास रूदनकंदा सोडवी विषय मोह छंदा*
*आलो शरण अत्रीनंदा दावी सद्गुरू ब्रह्मानंदा*
*चुकवी चौ-यांशीचा फेरा*
*घालिती षड्ररिपू मज घेरा*
*गांजिती पुत्र पौत्र दारा*
*वदवी भजन मुखी, तव पुजन, करीतसे सुजन, जयाचे बलवंता वरती ॥*
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Monday, 16 September 2019

बावनश्लोकि गुरुचरित्र

⚘॥ श्री गुरुदेव दत्त ॥⚘          

🛑 #बावन्नश्लोकी_गुरुचरित्र..🛑

🔶️🔸️श्रीगुरुचरित्र फार मोठे असल्यामुळे गुरुवारी
         कमीत कमी हे बावन्नश्लोकी गुरुचरित्र म्हणतात..

श्रीगणेशाय नमः । श्रीमद्दत्तात्रेयगुरवे नमः । अथ ध्यानम् ।

श्‍लोक: दिगंबरं भस्मसुगंध लेपनं चक्रं त्रिशूलं डमरुं गदां च । पद्मासनस्थं रविसोमनेत्र्म दत्तात्रयं नमभीष्टसिद्धिदम् ॥ १ ॥

काषायवस्त्रं करदंडधारिणं कमंडलुं पद्मकरेण शंखम् । चक्रं गदाभूषितभूषणाढ्यं श्रीपादराजं शरणं प्रपद्ये ॥ २ ॥

कृते जनार्दनो देवस्त्रेतायां रघुनन्दनः । द्वापरे रामकृष्णौ च कलौ श्रीपादवल्लभः ॥ ३ ॥

ॐ नमोजी विघ्नहरा । गजानना गिरिजाकुमरा । जयजयाजी लंबोदरा । एकदंता शूर्पकर्णा ॥ १ ॥ श्‍लोक ॥

त्रिमूर्तिराजा गुरु तूंचि माझा । कृष्णातिरीं वास करुनि बोजा । सद्भक्त तेथें करिती आनंदा । त्या देव स्वर्गीं बघती विनोदा ॥ २ ॥

जयजयाजी सिद्धमुनी । तूं तारक भवार्णंवातुनी । संदेह होता माझे मनीं । आजि तुवां कुडें केलें ॥ ३ ॥

ऐशी शिष्याची विनंती । ऐकूनि सिद्ध काय बोलती । साधु साधु तुझी भक्ति । प्रीती पावो श्रीगुरुचरणीं ॥ ४ ॥

भक्तजन रक्षणार्थ । अवतरला श्रीगुरुनाथ । सगरपुत्रा कारणें भगीरथें । गंगा आणिली भूमंडळीं ॥ ५ ॥

तीर्थें असती अपार परी । समस्त सांडूनि प्रीति करी कैसा पावला श्रीदत्तात्री । श्रीपादश्रीवल्लभ ॥ ६ ॥

ज्यावरीं असे श्रीगुरुची प्रीति । तीर्थमहिमा ऐकावया चित्तीं । वांछा होतसे त्या ज्ञानज्योती । कृपामूर्ति गुरुराया ॥ ७ ॥

गोकर्णक्षेत्रीं श्रीपादयती । राहिले तीन वर्षें गुप्‍ती । तेथूनि गुरु गिरिपुरा येती । लोकानुग्रहाकारणें ॥ ८ ॥

श्रीपाद कुरवपुरीं असताम । पुढें वर्तली कैसी कथा । विस्तारुनि सांग आतां । कृपामूर्ति दातारा ॥ ९ ॥

सिद्ध म्हणे नामधारकासी । श्रीगुरुमहिमा काय पुससी । अनंतरुपें परियेसी । विश्वव्यापक परमात्मा ॥ १० ॥

सिद्ध म्हणे ऐक वत्सा । अवतार झाला श्रीपाद हर्षा । पूर्व वृत्तांत ऐकिला ऐसा । कथा सांगितली विप्रस्त्रियेची॥ ११ ॥

श्रीगुरु म्हणती जननीसी । आम्हां ऐसा निरोप देसी । अनित्य शरीर तूं जाणसी । काय भंरवसा जीवित्वाचा ॥ १२ ॥

श्रीगुरुचरित्र कथामृत । सेवितां वांछा अधिक होत । शमन करणार समर्थ । तूंचि एक कृपासिंधु ॥ १३ ॥

ऐकूनि शिष्याचें वचन । संतोष करी सिद्ध आपण । श्रीगुरुचरित्र कामधेनु जाण । सांगता झाला विस्तारें ॥ १४ ॥

ऐक शिष्या शिरोमणी । धन्य धन्य तुझी वाणी । तुझी भक्ति श्रीगुरुचरणीं । लीन झाली परियेसी ॥ १५ ॥

विनवी शिष्य नामांकित । सिद्ध योगियातें पुसत । सांग स्वामी वृत्तांत । श्रीगुरुचरित्र विस्तारें ॥ १६ ॥

ऐक शिष्या नामकरनी । श्रीगुरुभक्त शिखामणी । तुझी भक्ति श्रीगुरुचरणीं । लीन झाली निर्धारें ॥ १७ ॥

ध्यान लागलें श्रीगुरुचरणीं । तृप्‍ति नोहे अंतःकरणीं कथामृत संजीवनी । आणिक निरोपाची दातारा ॥ १८ ॥

अज्ञान तिमिर रजनींत । निजलो होतो मदोन्मत्त । श्री गुरुचरित्र वचनामृत । प्राशन केलें दातारा ॥ १९ ॥

स्वामी निरोपिलें आम्हांसी । श्रीगुरु आले गाणगापुरासी । गौप्यरुपें अमरपुरासी । औदुंबरीं असती जाण ॥ २० ॥

सिद्ध म्हणे नामधारका । ब्रह्मचारी कारणिका । उपदेशी ज्ञान विवेका । तये प्रेंत जननीसी ॥ २१ ॥

तुझा चरणसंपर्क होता । झालें ज्ञान मज आतां । परमार्थीं मन ऐकतां । झालें तुझें प्रसादें ॥ २२ ॥

लोटांगणें श्रीगुरुसी । जाऊनि राजा भक्‍तीसीं । नमस्कारी विनयेसी । एकभावें करुनियां ॥ २३ ॥

शिष्यवचन परिसुनी । सांगता झाला सिद्धमुनी । ऐक भक्ता नामकरणी । श्रीगुरुचरित्र अभिनव ॥ २४ ॥

सिद्ध म्हणे ऐक बाळा । श्रीगुरुची अगम्य लीला । सांगतां न सरे बहुकाळा । साधारण मी सांगतसे ॥ २५ ॥

श्रीगुरु म्हणती ब्राह्मणासी । नको भ्रमू रे युक्‍तीसी । वेदांत न कळे ब्रह्मायासी । अनंत वेद असती जाण ॥ २६ ॥

चतुर्वेद विस्तारेंसी । श्रीगुरु सांगती विप्रासी । पुढें कथा वर्तली कैसी । विस्तारावी दातारा ॥ २७ ॥

नामधारक म्हणे सिद्धासी । पुढील कथा सांगा आम्हांसी । उल्हास होतो माझे मानसीं । श्रीगुरुचरित्र अति गोड ॥ २८ ॥

पुढें कथा कवणेपरी । झाली असे गुरुचरित्रीं । निरुपावें विस्तारीं । सिद्धमुनी कृपासिंधू ॥ २९ ॥

श्रीगुरुचरित्र सुधारस । तुम्हीं पाजिला आम्हांस । परि तृ‍प्‍त नव्हे गा मानस । तृषा आणिक होतसे ॥ ३० ॥

सिद्ध म्हणे नामधारका । पुढें अपूर्व झालें ऐका । योगेश्वर कारणिका । सांगे स्त्रियांचे स्वधर्म ॥ ३१ ॥

पतिव्रतेच्या रीती । सांगे देवांसी बृहस्पती । सहगमनाची फलश्रुती । येणें परी निरुपिली ॥ ३२ ॥

श्रीगुरु आले मठासी । पुढें कथा वर्तली कैसी । विस्तारुनि आम्हांसी । निरुपावें स्वामिया ॥ ३३ ॥

श्रीगुरु म्हणती दंपतीसी । ऐका पाराशरऋषि । तया काश्‍मीररायासी । रुद्राक्षमहिमा निरुपिला ॥ ३४ ॥

पुढें कथा कैसी वर्तली । विस्तारुनि सांगा वहिली । मति असे माझी वेधिली । श्रीगुरुचरित्र ऐकावया ॥ ३५ ॥

गाणगापुरीं असतां श्रीगुरु । महिमा झाला अपरंपारु । सांगतां न ये विस्तारु । तावन्मात्र सांगतसे ॥ ३६ ॥

ऐसा श्रीगुरु दातारु । भक्तजनां कल्पतरु । सांगतां झाला आचारु । कृपा करुनि विप्रांसी ॥ ३७ ॥

आत झालों मी तृषेचा । घोट भरवीं गा अमृताचा । चरित्रभाग सांगें श्रीगुरुचा । माझें मन निववीं वेगीं ॥ ३८ ॥

सिद्ध म्हणे नामधारका । पुढें अपूर्व झालें ऐका । साठ वर्षें वांझ देखा । पुत्रकन्या प्रसवली ॥ ३९ ॥

सिद्ध म्हणे नामधारका । अपूर्व वर्तलें आणिक ऐका । वृक्ष झाला काष्ट सुका । विचित्र कथा परियेसा ॥ ४० ॥

जयजयाजी सिद्धमुनी । तूं तारक या भवार्णवांतुनी । नाना धर्म विस्तारुनि । श्रीगुरुचरित्र निरुपिलें ॥ ४१ ॥

मागें कथा निरुपिलें । सायंदेव शिष्य भले । श्रीगुरुंनीं त्यासी निरुपिलें । कलत्रपुत्र आणि म्हणती ॥ ४२ ॥

श्रीगुरु म्हणती द्विजांसी । या अनंत व्रतासी । सांगेन ऐका तुम्हांसी । पूर्वीं बहुतीं आराधिलें ॥ ४३ ॥

श्रीगुरु माझा मल्लिकार्जुन । पर्वत म्हणजे श्रीगुरुभवन । आपण नये आतां येथून । सोडूनि चरण श्रीगुरुचे ॥ ४४ ॥

तूं भेटलासी मज तारक । दैन्य गेले सकळहि दुःख । सर्वाभीष्ट लाधलें सुख । श्रीगुरुचरित्र ऐकतां ॥ ४५ ॥

गाणगापुरीं असतां श्रीगुरु । ख्याति झाली अपारु । लोक येती थोरथोरु । भक्त बहुत झाले असती ॥ ४६ ॥

सांगेन ऐका कथा विचित्र । जेणें होय पतित पवित्र । ऐसें हें श्रीगुरुचरित्र । तत्त्परतेसी परियेसा ॥ ४७ ॥

श्रीगुरु नित्य संगमासी । जात होते अनुष्ठानासी । मार्गांत शूद्र परियेसी । शेतीं आपुल्या उभा असे ॥ ४८ ॥

त्रिमूर्तींचा अवतार । वेषधारी झाला नर । राहिलें प्रीतीं गाणगापुर । कवण क्षेत्र म्हणूनियां ॥ ४९ ॥

तेणें मागितला वर । राज्यपद धुरंधर । प्रसन्न झाला त्यासी गुरुवर । दिधला वर परियेसा ॥ ५० ॥

राजभेटी घेउनी । श्रीपाद आले गाणगाभुवनीं । योजना करिती आपुले मनीं । गौप्य रहावें म्हणूनियां ॥ ५१ ॥

म्हणे सरस्वती गंगाधर । श्रोतयां करी नमस्कार । कथा ऐका मनोहर । सकळाभीष्ट साधेल ॥ ५२ ॥

इति श्रीगुरुचरित्रकथाकल्पतरौ सिद्धनामधारकसंवादे द्विपंचाशत् श्‍लोकात्मकं गुरुचरित्रं संपूर्णम् ॥
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  ⚘॥ #अवधुत_चिंतन_श्री_गुरुदेव_दत्त ॥⚘
⚘#दिगंबरा_दिगंबरा_श्रीपाद_वल्लभ_दिगंबरा⚘
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