Saturday, 23 January 2016
तुलसीदास और रामचरितमानस
जयपुर
दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रफेसर हरीश त्रिवेदी ने शनिवार को यह कहकर नया विवाद खड़ा कर दिया कि रामचरितमानस के लेखक गोस्वामी तुलसीदास ने एक मस्जिद के अंदर शरण मांगी थी। उन्होंने कहा कि रामचरितमानस लिखते समय जिस मस्जिद के अंदर तुलसीदास ने रहने की इजाजत मांगी, वह बाबरी मस्जिद हो सकती है।
त्रिवेदी ने जयपुर साहित्य महोत्सव के दौरान यह बात कही। वह रामचरितमानस के ऊपर आयोजित एक चर्चा में लोवा यूनिवर्सिटी में हिंदी व आधुनिक भारतीय अध्ययन विभाग में प्रफेसर फिलिप लुटगेनडॉर्फ और जाने-माने कवि अशोक वाजपेयी के साथ एक बातचीत कर रहे थे। मालूम हो कि प्रफेसर फिलिप ने रामचरितमानस का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद किया है।
इस वाद-विवाद का शीर्षक था, 'रामचरितमानस: द लाइफ ऑफ ए टेक्स्ट।' इसमें बोलते हुए त्रिवेदी, फिलिप व वाजपेयी ने रामचरितमानस की भाषा व काव्य शैली की परंपरा को बढ़ावा देने की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि रामचरितमानस के सांस्कृतिक पक्ष को राजनैतिक पक्ष से अलग कर देखे जाने की जरूरत है।
त्रिवेदी ने कहा, 'राम केवल एक धार्मिक प्रस्तावना भर नहीं हैं। वह कुछ लोगों के ही नहीं हैं, उन्हें कुछ लोगों तक सीमित नहीं किया जा सकता है। 1992 में जो हुआ (बाबरी विध्वंस) वह राम की गलती नहीं थी। कोई और था जो इसके लिए जिम्मेदार था। हम में से वे लोग जो उस विचारधारा में यकीन नहीं रखते, उनकी जिम्मेदारी है कि हमने लोगों को रामचरितमानस के राम की इतनी भव्य काव्य परंपरा को आगे ले जाने नहीं दिया। हमारी जिम्मेदारी है कि हम संस्कृति को राजनीति से अलग करें।'
त्रिवेदी ने आगे कहा कि जयपुर साहित्य महोत्सव के आयोजक यकीनन धर्मनिरपेक्ष हैं, इसीलिए उन्होंने रामचरितमानस पर चर्चा का आयोजन 'मुगल टेंट' नाम की जगह पर किया। उन्होंने कहा कि बादशाह अकबर के शासन के दौरान तुलसीदास ने भी रामचरितमानस एक मुगल शामियाने के नीचे लिखा था।
त्रिवेदी के इस बयान की जानकारी सबसे पहले लेखिका रश्मि बंसल के ट्वीट से मिली। इसके बाद तो ट्विटर पर लोगों ने इस बयान को लेकर काफी गुस्सा जताया। त्रिवेदी के इस बयान को लेकर सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई और लोग इसके पक्ष और विपक्ष में बहस करते दिखे। वहीं कुछ लोगों ने त्रिवेदी के बयान को राजनैतिक रंग देने की भी कोशिश की। इस चर्चा में शामिल रहे अशोक वाजपेयी ने हमें बताया, 'रामचरितमानस को मुगलों के समय में लिखा गया था। त्रिवेदी की कोशिश यह समझाने की थी कि रामचरितमानस में भी मुगल साम्राज्य का प्रभाव झलकता है।'
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