Sunday, 4 September 2016

श्री गणेश चालीसा

श्री गणेशाय नम : || दोहा || जय गणपति सदगुणसदन | करिवर बदन कृपाल | विघ्न हरण मंगल करण | जय जय गिरिजालाल || || चौपाई || जय जय जय गणपति गणराजू | मंगल भरण करण शुभ काजू | जय गजबदन सदन सुखदाता | विश्व विनायक बुद्घि विधाता || वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन | तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन | राजीत मणि मुक्तन उर माला | स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला || पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं | मोदक भोग सुगन्धित फूलं | सुन्दर पीताम्बर तन साजित | चरण पादुका मुनि मन राजित || धनि शिवसुवन षडानन भ्राता | गौरी ललन विश्व-विख्याता | ऋधी-सिधी तव चंवर सुधारे | मूषक वाहन सोहत द्घारे || कहौ जन्म शुभ-कथा तुम्हारी | अति शुचि पावन मंगलकारी | एक समय गिरिराज कुमारी | पुत्र हेतु तप कीन्हो भारी|| भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा | तब पहुंच्यो तुम धरि द्घिज रुपा | अतिथि जानि कै गौरि सुखारी | बहुविधि सेवा करी तुम्हारी || अति प्रसन्न है तुम वर दीन्हा | मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा | मिलहि पुत्र तुहि, बुद्घि विशाला | बिना गर्भ धारण, यहि काला || गणनायक, गुण ज्ञान निधाना | पूजित प्रथम, रुप भगवाना | अस कहि अन्तर्धान रुप है | पलना पर बालक स्वरुप है || बनि शिशु, रुदन जबहिं तुम ठाना | लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना | सकल मगन, सुखमंगल गावहिं | नभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं || शम्भु, उमा, बहु दान लुटावहिं | सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं | लखि अति आनन्द मंगल साजा | देखन भी आये शनि राजा || निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं | बालक, देखन चाहत नाहीं | गिरिजा कछु मन भेद बढ़ायो | उत्सव मोर, न शनि तुहि भायो || कहन लगे शनि, मन सकुचाई | का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई | नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ | शनि सों बालक देखन कहाऊ || पडतहिं, शनि दृग कोण प्रकाशा | बालक सिर उड़ि गयो अकाशा | गिरिजा गिरीं विकल है धारनी | सो दुख दशा गयो नहीं वरणी || हाहाकार मच्यो कैलाशा | शनि कीन्हो लखि सुत को नाशा | तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो | काटि चक्र सो गज शिर लाये || बालक के धड़ ऊपर धारयो | प्राण, मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो | नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे | प्रथम पूज्य बुद्घि निधि, वन दीन्हे || बुद्घि परीक्षा जब शिव कीन्हा | पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा | चले षडानन, भरमि भुलाई | रचे बेठी तुम बुद्घि उपाई || धनि गणेश कहि शिव हिय हरषे | नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे | चरण मातु-पितु के धर लीन्हें | तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें || तुम्हरी महिमा बुद्घि बड़ाई | शेष सहसमुख सके न गाई | मैं मतिहीन मलीन दुखारी | करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी || भजत रामसुन्दर प्रभुदासा | लग प्रयाग, ककरा, दर्वासा | अब प्रभु दया दीन पर कीजै | अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै || || दोहा || श्री गणेशा यह चालीसा | पाठा करे धर ध्यान | नीत नव मंगल ग्रह बसे | लहे जगत सनमान || सम्बद अयन सहस्र दश | ऋषि पंचमी दिनेशा | पूर्ण चालीसा भयो | मंगला मूर्ती गणेशा || Photo by AlicePopkorn

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