Saturday, 17 December 2016
कान्हा कान्हा आन पड़ी मैं तेरे द्वार
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कान्हा आन पड़ी मैं तेरे द्वार
कान्हा…
कान्हा आन पड़ी मैं तेरे द्वार
मोहे चाकर समझ निहार॥
कान्हा कान्हा आन पड़ी मैं तेरे द्वार
तू जिसे चाहे, ऐसी नहीं मैं,
हां तेरी राधा जैसी नहीं मैं।
फिर भी हूँ कैसी, कैसी नहीं मैं,
कृष्णा मोहे देख तो ले इक बार॥
कान्हा…
कान्हा आन पड़ी मैं तेरे द्वार
कान्हा…
कान्हा आन पड़ी मैं तेरे द्वार
बूँद ही बूँद मैं प्यार की चुन कर,
प्यासी रही पर लायी हूँ गिरिधर।
टूट ही जाए आस की गागर,
मोहना ऐसी कंकरिया नहीं मार॥
कान्हा…
कान्हा आन पड़ी मैं तेरे द्वार
कान्हा…
कान्हा आन पड़ी मैं तेरे द्वार
माटी करो या स्वर्ण बना लो,
तन को मेरे, चरणों से लगा लो।
मुरली समझ हाथों में उठा लो,
सोचो ना कछु अब हे कृष्ण मुरारी॥
कान्हा…
कान्हा आन पड़ी मैं तेरे द्वार
मोहे चाकर समझ निहार,
चाकर समझ निहार,
चाकर समझ निहार
कान्हा, कान्हा आन पड़ी मैं तेरे द्वार
तेरे द्वार
कान्हा, कान्हा आन पड़ी मैं तेरे द्वार

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