Thursday, 16 February 2017

अपने जीवन कि उलझन को

अपने जीवन की उलझन को कैसे मै सुलझाऊ
बीच भवर में नाव है मेरी, कैसे पार लगाऊ {{ धृ }}
दिल में ऐसा दर्द छुपा है ,मुझसे सहा न जाये
कहना तो चाहु अपनो से, फिर भी कहा न जाये
आंसू भी आंखो में आये, चुपके से पी जाऊ,
अपने जीवन की उलझन को कैसे मै सुलझाऊ {{ २ }}
जीवन के पिंजरे में मन का ये पंछी ,कैसे कैद से छुटे
जीना होगा इस दुनिया में, कब तक सांस न टुटे
दम घुटता है अब सांसो से, कैसे बोझ उठाऊ
अपने जीवन की उलझन को कैसे मै सुलझाऊ
बीच भवर में नाव है मेरी, कैसे पार लगाऊ {{ २ }}

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