श्रीराम और सीता हमेशा करते थे एक-दूसरे का सम्मान, ऐसी ही खास वजहों से उनका वैवाहिक जीवन माना जाता है आदर्श
पति-पत्नी की सभी परेशानियां दूर कर सकती हैं श्रीराम और सीता की 7 बातें
जानिए रामायण के अनुसार श्रीराम और सीता के वैवाहिक जीवन की कुछ ऐसी बातें जो पति-पत्नी के बीच प्रेम बनाए रखने के लिए जरूरी हैं और इन बातों से जीवन में सुख और आनंद बढ़ सकता है...
> संयम यानी समय-यमय पर उठने वाली मानसिक उत्तेजनाओं जैसे- कामवासना, क्रोध, लोभ, अहंकार तथा मोह आदि पर नियंत्रण रखना। श्रीराम-सीता के वैवाहिक जीवन संयम और प्रेम भरपूर था। वे कहीं भी मानसिक या शारीरिक रूप से अनियंत्रित नहीं हुए। इसीलिए उनके वैवाहिक जीवन को आदर्श माना जाता है।
> संतुंष्टि यानी एक दूसरे के साथ रहते हुए समय और परिस्थिति के अनुसार जो भी सुख-सुविधा प्राप्त हो जाए, उसी में संतोष करना। श्रीराम और सीता दोनों ही एक दूसरे से पूर्णत: संतुष्ट थे। कभी भी श्रीराम ने सीता में या सीता ने श्रीराम में कोई कमी नहीं देखी।
> वैवाहिक जीवन में संतान का भी बड़ा महत्वपूर्ण स्थान होता है। पति-पत्नी के बीच के संबंधों को मधुर और मजबूत बनाने में बच्चों की अहम् भूमिका रहती है। श्रीराम और सीता के बीच वनवास को खत्म करने और सीता को पवित्र साबित करने में उनके बच्चों लव और कुश ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसीलिए बच्चों के पालन-पोषण पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
> पति-पत्नी के रूप में एक दूसरे की भावनाओं का समझना और उनकी कद्र करना ही संवेदनशीलता है। श्रीराम और सीता के बीच संवेदनाओं का गहरा रिश्ता था। दोनों बिना कहे-सुने ही एक दूसरे के मन की बात समझ जाते थे।
> पति-पत्नी दोनों को अपने धर्म संबंध को अच्छी तरह निभाने के लिए संकल्प लेना चाहिए। विवाह को सही ढंग से निभाना दोनों का कर्तव्य है और जब ये कर्तव्य दोनों पूरा करेंगे तो प्रेम और सुख कभी कम नहीं होगा।
> सक्षम यानी सामर्थ्य का होना। वैवाहिक जीवन को सफलता और खुशहाली से भरा-पूरा बनाने के लिए पति-पत्नी दोनों को शारीरिक, आर्थिक और मानसिक रूप से सक्षम होना बहुत ही आवश्यक है। इसके लिए पति-पत्नी को अपने-अपने स्तर पर खुद के स्वास्थ्य का ध्यान भी रखना चाहिए। स्वस्थ रहेंगे तो सक्षम रहेंगे।
> वैवाहिक जीवन में पति-पत्नी का एक-दूसरे के प्रति पूरा समर्पण और त्याग भावना होना भी आवश्यक है। एक-दूसरे के लिए अपनी कुछ इच्छाओं और आवश्यकताओं को त्याग देना या समझौता कर लेना भी वैवाहिक जीवन को मधुर बनाए रखने के लिए जरूरी होता है। सीता ने श्रीराम का सम्मान बनाए रखने के लिए कई त्याग किए थे। जब श्रीराम ने सीता का त्याग किया तो वे वाल्मिकी ऋषि के आश्रम चले गई थीं।
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