दुर्गा माता के लिए मंत्र और सिद्ध कुञ्जिकास्तोत्रम्
मन्त्र
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।। ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।।
सिद्धकुञ्जिकास्तोत्र
नमस्ते रूद्र रूपिण्यै नमस्ते मधुर्मर्दिनि।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनी।।1
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च, निशुम्भासुरघातिनि।
जाग्रतं ही महादेवी जपं सिद्धं कुरुष्व मे।। २
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका।
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।।3
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी।
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि।।4
धां धीं धुं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिकादेवि! शां शीं शूं में शुभं कुरू।।5
हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः।।6
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दु ऍ वीं हं क्षं।
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा।।7
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा, खां खीं खूं खेचरी तथा।।
सां सीं सुम सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिं कुरुष्व मे।।8
दुर्गासप्तशती में यह कुञ्जिकास्तोत्र मंत्र को जगाने के लिए है। इसे भक्तिहीन पुरुष को नहीं देना चाहिए। हे पार्वती! इसे गुप्त रखो। हे देवी ! जो बिना कुंजिका के दुर्गासप्तशती का पाठ करता है उसे उसी प्रकार सिद्धि/फल नहीं मिलती जिस प्रकार वन में रोना निरर्थक होता है।
इदं तु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वती।।
यस्तु कुंजिकया देवी हीनां सप्तशती पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा।।
जय माता दी जय माता दी जय माता दी
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