जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी । दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते ॥
भावार्थ :जयन्ती, मंगला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, शिवा, धात्री, स्वाहा और स्वधा - इन नामों से प्रसिद्ध जगदम्बिके ! आपको नमस्कार है ।
निशुम्भशुम्भमर्दिनीं प्रचण्डमुण्डखण्डिनीम् । वने रणे प्रकाशिनीं भजामि विन्ध्यवासिनीम् ॥
भावार्थ :
शुम्भ तथा निशुम्भ का संहार करनेवाली, चण्ड तथा मुण्ड का विनाश करनेवाली, वन में तथा युद्धस्थल में पराक्रम प्रदर्शित करनेवाली भगवती विन्ध्यवासिनी की मैं आराधना करता हूँ ।
विवादे विषादे प्रमादे प्रवासे जले चानले पर्वते शत्रुमध्ये । अरण्ये शरण्ये सदा मां प्रपाहि गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥
भावार्थ :हे शरण्ये ! तुम विवाद, विषाद, प्रमाद, परदेश, जल, अनल, पर्वत, वन तथा शत्रुओं के माध्य में सदा ही मेरी रक्षा करो, हे भवानी ! अब केवल तुम्हीं मेरी गति हो, तुम्हीं मेरी गति हो ।
अनाथो दरिद्रो जरारोगयुक्तो महक्षीणदीन: सदा जाड्यवक्त्रः । विपत्तौ प्रविष्टः प्रणष्ट: सदाहं गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥
भावार्थ :
हे भवानी ! मैं सदा से ही अनाथ, दरिद्र, जरा-जीर्ण, रोगी, अत्यन्त दुर्बल, दीन, गूँगा, विपद्ग्रस्त और नष्टप्राय हूँ अब एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो, तुम्हीं मेरी गति हो ।
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