Saturday, 16 January 2016

रामचरितमानस दोहे

गुंजत मधुकर मुखर अनूपा। सुंदर खग रव नाना रूपा।। चक्रबाक मन दुख निसि पेखी। जिमि दुर्जन पर संपति देखी।। इन चौपाइयों का अर्थ यह है कि भौंरों की अनूठी गूंज सुनाई दे रही है तथा कई प्रकार के सुंदर पक्षी कलरव कर रहे हैं। रात देखकर चकवा वैसे ही दुखी है, जैसे दूसरे की संपत्ति देखकर कोई बुरा व्यक्ति दुखी होता है। दूसरे की संपत्ति को देखकर बुरे व्यक्ति को जैसा लगता है, वह एक तरह का पाप है। कई बार लोग सोचते हैं कि जो कुछ दूसरों के पास है, वह हमारे पास भी होना चाहिए। इसमें बुराई नहीं है, लेकिन बुराई उसे पाने के लिए किए गए अनुचित प्रयास में है। जो मिला है, उसमें संतोष करना चाहिए, जो दूसरे को मिला है, उसमें प्रसन्न होना चाहिए। जब हमारी सोच में ईर्ष्या और लालच आ जाता है तो दूसरों की चीज छीनने की वृत्ति जागती है जो कि पाप है। इससे बचना चाहिए।

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