Sunday, 24 June 2018

हम अपने जखमों को हंसते हुए भुलाने लगे है l

हम अपने ज़ख्मों को हँसते हुए भुलाने लगे हैं ।
हर दर्द के अपने निशान को अब मिटाने लगे हैं ।।
अब और कोई क्या सताएगा हमें भला प्यारे ।
ज़ुल्मों सितम को तो अब हम स्वयं सताने लगे हैं ।। 

अपने दर्द हमने संभाला है, हमने आँसू बहाए हैं ।
बेशक वजह तुम थे प्यारे, पर दिल तो हमारा था ।।


यह भी एक ज़माना देख लिया है हम ने ।
​दर्द जो सुनाया अपना तो तालियां बज उठीं​ ।।


मंजिलों से बेगाना आज भी सफ़र मेरा ।
है रात बेशहर मेरी, दर्द बेअसर मेरा ।।


प्यारे, मेरे इस दर्द का यकीं आप करें या ना करें ।
कन्हैया जी, निवेदन है, कि इस राज़ की चर्चा ना करें ।।

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