Sunday, 16 October 2016

श्रीराम स्तुती श्रीरामचंद्र कृपाळु भजू मन

श्रीरामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भव भय दारुणं। नवकंज-लोचन कंज-मुख कर-कंज पद-कंजारुणं॥१॥ कन्दर्प अगणित अमित छबि नवनील-नीरद सुन्दरं। पट पीत मानहु तड़ित रुचि शुचि नौमि जनक सुतावरं॥२॥ भजु दीनबंधु दिनेश दानव-दैत्यवंश-निकंदनं। रघुनंद आनँदकंद कोशलचंद दशरथ-नंदनं॥३॥ सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारु अंग बिभूषणं। आजानुभुज शर-चाप-धर संग्राम-जित-खरदूषणं॥४॥ इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन-रंजनं। मम हृदय-कंज निवास कुरु कामादि खलदल-गंजनं॥५॥ मनु जाहि राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुन्दर सांवरो करुना निधान सुजान शील सनेहु जानत रावरो॥६॥ ऐहि भांति गौरि अशीश सुनि सिये सहित हिये हर्सि अली। तुलसि भवानिहि पुजि पुनि पुनि मुदित मन मन्दिर चली।।७।। जानि गौरि अनुकूल, सिय हिय हरसु न जाहि कहि। मन्जुल मंगल मूल, बाम अंग फ़रकन लगे।।

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