Saturday, 29 October 2016
श्री सूक्त
श्री सूक्त- श्री लक्ष्मी की उपासना में ऋग्वेद में बताए श्रीसूक्त के मंगलकारी मंत्रों का पाठ शुभ माना गया है। शुक्रवार को श्री लक्ष्मी का पूजन कर अनार का भोग अर्पित करें। देवी लक्ष्मी की प्रतिमा के आगे श्री सुक्त के मंत्रों का जप करें। श्री सुक्त का पाठ देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करता हैं। गरीबी को दूर कर सुख और समृद्धि प्रदान करता है।
ॐ हिरण्य-वर्णां हरिणीं, सुवर्ण-रजत-स्त्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्यमयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आवह।।
तां म आवह जात-वेदो, लक्ष्मीमनप-गामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं, गामश्वं पुरूषानहम्।।
अश्वपूर्वां रथ-मध्यां, हस्ति-नाद-प्रमोदिनीम्।
श्रियं देवीमुपह्वये, श्रीर्मा देवी जुषताम्।।
कांसोऽस्मि तां हिरण्य-प्राकारामार्द्रा ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीं।
पद्मे स्थितां पद्म-वर्णां तामिहोपह्वये श्रियम्।।
चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देव-जुष्टामुदाराम्।
तां पद्म-नेमिं शरणमहं प्रपद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणोमि।।
आदित्य-वर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽक्ष बिल्वः।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः।।
उपैतु मां दैव-सखः, कीर्तिश्च मणिना सह।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन्, कीर्तिं वृद्धिं ददातु मे।।
क्षुत्-पिपासाऽमला ज्येष्ठा, अलक्ष्मीर्नाशयाम्यहम्।
अभूतिमसमृद्धिं च, सर्वान् निर्णुद मे गृहात्।।
गन्ध-द्वारां दुराधर्षां, नित्य-पुष्टां करीषिणीम्।
ईश्वरीं सर्व-भूतानां, तामिहोपह्वये श्रियम्।।
मनसः काममाकूतिं, वाचः सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नस्य, मयि श्रीः श्रयतां यशः।।
कर्दमेन प्रजा-भूता, मयि सम्भ्रम-कर्दम।
श्रियं वासय मे कुले, मातरं पद्म-मालिनीम्।।
आपः सृजन्तु स्निग्धानि, चिक्लीत वस मे गृहे।
निच-देवी मातरं श्रियं वासय मे कुले।।
॥वैभव प्रदाता श्री सूक्त का हिन्दी अर्थ ॥
मूलतः यह ऋग्वेद के दूसरे अध्याय के छठे सूक्त में आनंदकर्दम ऋषि द्वारा श्री देवता को समर्पित काव्यांश है। लक्ष्मी साधना के सिद्ध मंत्र के रूप में प्रतिष्ठित इस रचना का यह हिन्दी अनुवाद है।
हरित और हिरण्य-वर्णा हार स्वर्ण, रजत सुशोभित
चन्द्र और हिरण्य आभा देवि लक्ष्मी का, अग्नि अब तुम करो आवाहन।
करो आवाहन, हमारे गृह अनल उस देवि श्री का अब,
वास हो जिसका सदा और जो दे धन प्रचुर, गो, अश्व, सेवक, सुत सभी।
अश्व जिनके पूर्वतर, मध्यस्थ रथ
हस्ति- रव से प्रबोधित पथ, देवि श्री का आगमन हो, प्रार्थना है।
परा रूपा, हसित-आभा, हेम-वदना, आर्द्र-करुणा तप्त, तृप्त, सुशीतकर, पद्म स्थित
पद्म-वर्णा, देवि श्री का आगमन हो।
चन्द्रकान्ता, कीर्ति से प्रज्वलित लोक-श्री, सुरलोक पूजित, उदारा
देवि पद्मा की शरण हूँ दूर हो दारिद्र्य, तेरी दया हो।
सूर्य-प्रभ, तप प्राप्य, तुझ से ही हुआ वनस्पति में विल्व तरु, फल तप रूप
आह्लादित उर करे, निर्गमित करदे सकल दारिद्रय मेरा।
सुर- सखा, करदो कृपा कीर्ति, मणियों सहित मुझ पर
मैं इस राष्टृ में पैदा हुआ अब धन,कीर्ति, वैभव मुझे दो।
क्षुत्, पिपासा, मलिनता, जो ज्येष्ठा-श्री आदि सब को नष्ट करता हूँ
अयश, निर्धनता सभी मेरे, पलायन करो गृह से।
गन्ध सेवित, दुर्जयी, सन्तुष्ट नित, गज स्वामिनी
ईश्वरी सब प्रणियों की, देवि श्री की अर्चना है यह।
कामनायें पूर्ण हों मन की, सत्य वाणी में बसे मेरी
अन्न, पशु, वैभव, सुयश सब देवि हमें श्री, श्रेयस् मिले।
प्रजा कर्दम की सभी हम, सदा आगे ही रहें कर्दम
कुल हमारे सम्पदा श्री रहे, माँ हमारी पद्म-माला।
जल सुशीतल, स्नेह वर्षा करे गृह सदा कुल मेरे रहे श्रेयस्, जननि देवी।
आर्द्र-कमला, आप्त, पिंगल, पद्म-माला चन्द्र और हिरण्य आभा, देवि श्री का, अग्नि आवाहन करो।
आर्द्र, अनुशासक, सुवर्णा, दण्डधारी हेम- माला,
सूर्य-द्युति, स्वर्णिम, देवि श्री का, अग्नि आवाहन करो।
अग्नि लाओ देवि-श्री वह, जो कभी जाती नहीं आगमन से जिसके मुझे हो प्राप्त
प्रचुर धन, गो, अश्व, सेवक और संतति।
॥ श्री सूक्त संपूर्ण ॥
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment