Friday, 9 September 2016

उर्मिला की विरह वेदना

Just another WordPress.com weblog उर्मिला की विरह वेदना १) प्रियतम हे प्रानप्यारे विदाई की अन्तिम बेला में दरस को नैना तरस रहे हैं ज्यों चंदा को चकोर तरसे है आरती का थाल सजा है प्रेम का दीपक यूँ जला है ज्यों दीपक राग गाया गया हो २) पावस ऋतु भी छा गई है मेघ मल्हार गा रहे हैं प्रियतम तुमको बुला रहे हैं ह्रदय की किवाडिया खडका रहे हैं विरह अगन में दहका रहे हैं करोड़ों सूर्यों की दाहकता ह्रदय को धधका रही है प्रेम अगन में झुलसा रही है देवराज बरसाएं नीर कितना ही फिर भी ना शीतलता आ रही है ३) हे प्राणाधार शरद ऋतु भी आ गई है शरतचंद्र की चंचल चन्द्रकिरण भी प्रिय वियोग में धधकती अन्तःपुर की ज्वाला को न हुलसा पा रही है ह्रदय में अगन लगा रही है ४) ऋतुराज की मादकता भी छा गई है मंद मंद बयार भी बह रही है समीर की मोहकता भी ना देह को भा रही है चंपा चमेली की महक भी प्रिय बिछोह को न सहला पा रही है ५) मेरे जीवनाधार पतझड़ ऐसे ठहर गया है खेत को जैसे पाला पड़ा हो झर झर अश्रु बरस रहे हैं जैसे शाख से पत्ते झड़ रहे हैं उपवन सारे सूख गए हैं पिय वियोग में डूब गए हैं मेरी वेदना को समझ गए हैं साथ देने को मचल गए हैं जीवन ठूंठ सा बन गया है हर श्रृंगार जैसे रूठ गया है ६) इंतज़ार मेरा पथरा गया है विरहाग्नि में देह भी न जले है क्यूंकि आत्मा तो तुम संग चले है बिन आत्मा की देह में वेदना का संसार पले है ७) मेरे विरह तप से नरोत्तम पथ आलोकित होगा तुम्हारा पोरुष को संबल मिलेगा भात्री – सेवा को समर्पित तुम पथ बाधा न बन पाऊँगी अर्धांगिनी हूँ तुम्हारी अपना फ़र्ज़ निभाउँगी मेरी ओर न निहारना कभी ख्याल भी ह्रदय में न लाना कभी इंतज़ार का दीपक हथेली पर लिए देहरी पर बैठी मिलूंगी प्रीत के दीपक को मैं अश्रुओं का घृत दूंगी दीपक मेरी आस का है ये मेरे प्रेम और विश्वास का है ये कभी न बुझने पायेगा इक दिन तुमको लौटा लायेगा,लौटा लायेगा ……………………. About these ads

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