Saturday, 6 May 2017
बजरंग बाण
दोहा॥
निश्र्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करै सनमान ।
तेहि के कारज सकल सुभ, सिद्ध करै हनुमान ॥
॥चौपाई॥
जय हनुमंत संत-हितकारी ।
सुनि लीजै प्रभु बिनय हमारी ॥
जन के काज बिलंब न कीजै ।
आतुर दौरि महासुख दीजै ॥
जैसे कूदि सिंधु के पारा ।
सुरसा बदन पैठि बिस्तारा ॥
आगे जाय लंकिनी रोका ।
मारेहु लात गई सुरलोका ॥
जाय बिभिशन को सुख दीन्हा ।
सीता निरखि परम-पद लीन्हा ॥
बाग उजारि सिंधु महं बोरा ।
अति आतुर जमकातर तोरा ॥
अछय कुमार मारि संहारा ।
लूम लपेटि लंक को जारा ॥
लाह समान लंक जरि गई ।
जय जय धुनि सुरपुर नभ भई ॥
अब बिलम्ब केहि कारन स्वामी ।
कृपा करहु उर अंतरजामी ॥
जय जय लखन प्रान के दाता ।
आतुर है दुख करहु निपाता ॥
जय हनुमान जयति बल-सागर ।
सुर-समूह-समरथ भट-नागर ॥
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीलैय ।
बैरिहि मारू ब्रज की किले ॥
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा।
ॐ हूं हूं हूं हनु अरि उर-सीसा ॥
जय अंजनि कुमार बलवंता।
संकरसुवन बीर हनुमंता ॥
बदन कराल काल-कुल-घालक ।
राम-सहाय सदा प्रतिपालक ॥
भूत, प्रेत, पिसाच, निसाचर ।
अगिन बेताल काल मारी मर ॥
इन्हें मारू, तोहि सपथ राम की ।
राखु नाथ मरजाद नाम की ॥
सत्य होहु हरि सपथ पाई कै।
रामदूत धरु मारू धाई कै ॥
जय जय जय हनुमंत अगाधा ।
दुख पावत जन केहि अपराधा ॥
पूजा जप तप नेम अचारा ।
नही जानत कछु दास तुम्हारा ॥
बन उपबन मग गिरी गृह माहीं ।
तुम्हरे बल हौऊ डरपत नाही ॥
जनकसुता-हरि-दास कहावौ ।
ता की सपथ, बिलंब न लावौ ॥
जय-जय-जय-धुनि होत अकासा ।
सुमिरत होय दुसह दुख नासा ॥
चरन पकरि, कर जोरि मनावौ ।
याहि औसर अब केहि गोहरावौं ॥
उठु, उठु, चलु, तोहि राम-दोहाई ।
पायं परौं, कर जोरि मनाई ॥
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता ।
ॐ हनु हनु हनु हनु हनु-हनुमंता ॥
ॐ हं हं हॉंक देत कपि चंचल ।
ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल ॥
अपने जन को तुरत उबारौ।
सुमिरत होय अनंद हमारौ ॥
यह बजरंग-बाण जेहि मारै ।
ताहि कहौ फिरि कवन उबारै ॥
पाठ करै बजरंग-बाण की ।
हनुमत रच्छा करै प्रान की ॥
यह बजरंग-बाण जो जापै।
तासों भूत-प्रेत सब कापै ॥
धूप देय जो जपै हमेसा ।
ता के तन नहीं रहै कलेसा ॥
॥दोहा॥
उर प्रतीति दृढ़, सरन है, पाठ करै धरि ध्यान ॥
बाधा सब हर, करै सब काम सफल हनुमान ॥
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