Sunday, 30 September 2018

ऋणमुक्ती गणेशस्तोत्र

इस स्तोत्र का नियमित 11 बार रोज पाठ करने से शीघ्रातिशीघ्र कर्जों से छुटकारा मिल जाता है.

विनियोग – अस्य श्रीऋणविमोचनमहागणपतिस्तोत्रमन्त्रस्य शुक्राचार्य ऋषि:, ऋणविमोचन महागणपतिर्देवता, अनुष्टुप छन्द:, ऋणविमोचनमहागणपतिप्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ।

ऊँ स्मरामि देवदेवेशं वक्रतुण्डं महाबलम । षडक्षरं कृपासिन्धुं नमामि ऋणमुक्तये ।।1।।

महागणपतिं वन्दे महासेतुं महाबलम । एकमेवाद्वितीयं तु नमामि ऋणमुक्तये ।।2।।

एकाक्षरं त्वेकदन्तमेकं ब्रह्म सनातनम । महाविघ्नहरं देवं नमामि ऋणमुक्तये ।।3।।

शुक्लाम्बरं शुक्लवर्णं शुक्लगंधानुलेपनम । सर्वशुक्लमयं देवं नमामि ऋणमुक्तये ।।4।।

रक्ताम्बरं रक्तवर्णं रक्तगंधानुलेपनम । रक्तपुष्पै: पूज्यमानं नमामि ऋणमुक्तये ।।5।।

कृष्णाम्बरं कृष्णवर्णं कृष्णगंधानुलेपनम । कृष्णयज्ञोपवीतं च नमामि ऋणमुक्तये ।।6।।

पीताम्बरं पीतवर्णं पीतगंधानुलेपनम । पीतपुष्पै: पूज्यमानं नमामि ऋणमुक्तये ।।7।

सर्वात्मकं सर्ववर्णं सर्वगन्धानुलेपनम । सर्वपुष्पै: पूज्यमानं नमामि ऋणमुक्तये ।।8।।

एतदृणहरं स्तोत्रं त्रिसन्ध्यं य: पठेन्नर: । षण्मासाभ्यन्तरे तस्य ऋणच्छेदो न संशय: ।।9।।

सहस्त्रदशकं कृत्वा ऋणमुक्तो धनी भवेत ।।10।।



नवीन मतदार नोंदणीसाठी कागदपत्रे

*मतदार नोंदणी करण्यासाठी.....*
            
*दि.१सप्टेंबर२०१८ ते ३१ ऑक्टोबर २०१८ या कालावधीत* नवीन मतदार नोंदणी कार्यक्रम सुरू झाला आहे.तरी *३१ डिसेंबर २०१८* पर्यंत वय वर्षे १८ पूर्ण होणाऱ्या नवीन मतदारांनी खालील कागदपत्रांसह  मतदान केंद्रस्तरिय अधिकारी *[B L O]* यांच्याकडे संपर्क साधावा.

🛑 *नवीन मतदार नोंदणीसाठी कागदपत्रे*

🔵
*घरातील मुलगा/मुलगी यांच्या नाव नोंदणीसाठी कागदपत्रे*
१)जन्म पुरावा-शाळा सोडल्याचा दाखला किंवा बोनाफाईड सर्टिफिकेट
२)रहिवासी दाखला ग्रामसेवक/तलाठी यांचे सहीचा
३)आधार कार्ड झेरॉक्स
४) १ पासपोर्ट साईज फोटो
५)घरातील नात्यातील(आई, वडील, भाऊ, बहीण)यांपैकी एकाचे ज्यांचे नाव अगोदर मतदार यादीत समाविष्ठ असेल तर त्यांच्या मतदान ओळखपत्राची झेरॉक्स
🔵
*घरातील सुनबाईचे नाव समाविष्ट करण्यासाठी कागदपत्रे*

१)जन्म पुरावा-शाळा सोडल्याचा दाखला/बोनाफाईड सर्टिफिकेट
२)रहिवासी दाखला ग्रामसेवक/तलाठी यांचे सहीचा
३)१ पासपोर्ट साईज फोटो
४)माहेरच्या गावात मतदार यादीत नाव असेल तर ते नाव कमी केल्याचा दाखला.
५)माहेरच्या गावात मतदार यादीत नाव नसेल तर यादीत नाव नसल्याचा दाखला
६)पतीचे मतदार ओळखपत्र झेरॉक्स
७)असल्यास लग्नपत्रिका

🔵संपर्क🔵
🛑मतदान केंद्रस्तरिय अधिकारी *[BLO]*

🔵  *टीप*--३१डिसेंबर २००० पूर्वीचे जन्म असलेले स्त्री व पुरुष मतदार यादीत नाव समाविष्ट करण्यासाठी पात्र🔵

*✍ मतदारांनी आपली नावे नोंदवून घ्यावीत व मतदानचा आपला हक्क/अधिकार प्राप्त करा ही विनंती .*

*"चला मतदार होवू या,*
*लोकशाही प्रबळ करु या"*

Saturday, 29 September 2018

भैरवनाथ मराठी आरती

श्रीभैरवनाथाची आरती
जय देव जय देव जय भैरवनाथा ।
सुंदर पदयुग तूझें वंदिन निजमाथां ॥ ध्रु० ॥

भैरवनाथा गौरव दे मज भजनाचें ।
रौरव संकट नाशी जनना- निधनाचें ॥
निशिदिनिं देवा दे मज गुणकीर्तन वाचे ।
कैरवपदनखचंद्रीं करिं मन मम साचें ॥ जय० ॥ १ ॥

भवभयभंजन सज्ज्नरंजन गुरुदेवा ।
पदरज‍अंजन लेतां प्रगटे निज ठेवा ॥
जेव्हां दर्शन देसी भाग्योदय तेव्हां ।
अनंत पुण्यें लाधे आम्हां तव सेवा ॥ जय० ॥ २ ॥

कलिमलशमना दानवदमना दे पाणी ।
डमरूरव अमरांते निर्भय सुखदानी ।
काशीरक्षक तक्षकमालाधर चरणीं ।
तोडर मिरवी अरिंगन मस्तकिं मनकर्णी ॥ झय० ॥३ ॥

लक्षीं करुणाचक्षी अनुचर निजपक्षी ।
भक्षीं दुष्टां सुष्टां संरक्षीं ॥
साक्षी कर्माकर्मी ज्गदंतरकुक्षीं ।
मुमुक्षुपक्षी वसती तव पदसुरवृक्षीं ॥ जय० ॥ ४ ॥

सोनारीं पुरधामीं भैरव कुळस्वामी ।
स्मरतां सत्वर पावसि संकटहरनामीं ॥
इच्छित देसी दासां जो जो जें कामी ।
मुक्तेश्वरीम हेतू निश्चय कुळधर्मी ॥ जय० ॥ ५ ॥

भैरवनाथ आरती

श्री भैरवजी की आरती

जय भैरव देवाप्रभु जय भैरव देवा,

जय काली और गौरादेवी करत हैं सेवा ॥

ॐ जय भैरव देवा ……

 तुम्हीं आप उद्धारकदुख सिंधु तारक,

भक्तों के सुख कारकदीपक वसु धारक ॥

ॐ जय भैरव देवा ……

 वाहन श्वान विराजतकर त्रिशूल धारी,

महिमा अमित तुम्हारीजय जय भयहारी ॥

ॐ जय भैरव देवा ……

 तुम बिन देवा पूजनसफल नहीं होवे,

चतुर्वर्तिका दीपकदर्शक दुख खोवे ॥

ॐ जय भैरव देवा ……

 तेल चटिक दधि मिश्रितमाषाबली तेरी,

कृपा कीजिए भैरवकरिए नहीं देरी ॥

ॐ जय भैरव देवा ……

पांव घूंघरू बाजतडमरू डमकावत,

बटुकनाथ बन बालकतन-मन हरषावत ॥

ॐ जय भैरव देवा ……

 बटुकनाथ की आरतीजो कोई जन गावे,

कहे धरणीधरमन वांछित फल पावे ॥

ॐ जय भैरव देवा ……


Tuesday, 25 September 2018

श्राध्दपक्ष मे 5 जीवं को खाना खिलाने से बुरा समय करे दूर

अभी श्राद्ध पक्ष चल रहा है और इन दिनों में पितरों के लिए विशेष उपाय किए जाते हैं। पितरों की कृपा से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। उज्जैन के इंद्रेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी और ज्योतिर्विद पं. सुनील नागर के अनुसार श्राद्ध पक्ष में पितरों के अलावा 5 जीवों को विशेष रूप से भोजन करवाना चाहिए। मान्यता है कि इन जीवों को खाना खिलाने से पितर देवता भी तृप्त होते हैं और घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।

1. गाय

श्राद्ध में गाय को रोटी खिलान न भूलें। अगर आप चाहे तो गाय हरी घास भी खिला सकते हैं। गाय की इस छोटी सी सेवा से सभी देवी-देवता प्रसन्न होते हैं।

2. कुत्ता

श्राद्ध पक्ष में कुत्ते को भी विशेष रूप से खीर-पुड़ी खिलाई जाती है। कुत्ते को यमलोक का पहरेदार माना गया है। इस कारण श्राद्ध पक्ष में इन्हें खाना खिलाना बहुत जरूरी है।

3.कौंआ

पितृ पक्ष में कौएं को खाना खिलाने की परंपरा पुराने समय से चली आ रही है। कौओं के लिए छत पर खाना डाल देना चाहिए। मान्यता है कि कौएं को खिलाए गए खाने से पितरों को तृप्ति मिलती है।

4.चीटी

श्राद्ध पक्ष में चीटियों को आटा और शकर खिला सकते हैं। इस छोटे से पुण्य कर्म से जीवन की कई परेशानियां दूर हो सकती हैं।

5. मछली

मान्यता है कि जो लोग मछलियों को आटे की गोलियां रोज खिलाते हैं, उनकी कुंडली के सभी दोषों का असर कम हो सकता है और बुरा समय दूर हो सकता है।

चींटियों को आटा-शकर और मछलियों को रोज खिलाएं आटे की गोलियां, श्राद्ध पक्ष में 9 अक्टूबर तक ऐसे ही 5 जीवों को खिलाएं खाना, बुरे से बुरा समय होने लगेगा दूर

Monday, 24 September 2018

गेलो मी दत्तमय होऊनि

श्रीदत्ताचे नाम मुखी या माझ्या रात्रंदिनी|
गेलो दत्तमयी होउनी,गेलो दत्तमयी होउनी||

किती महिमा गावा गावा,चित्त आळवी एकच नामा|
त्या नामातील सामर्थ्याने गेलो मी मोहुनी||१||

ब्रम्हा विष्णु महेश्वराचे,रुप त्रिमुर्ती एकच साजे|
ह्रुदय मंदिरी प्रतिष्ठापना झालेली पाहुनी||२||

चरण दोन हे मार्ग दाविती,सहा करे सामर्थ्य अर्पिती|
ईश क्रुपेहुन काय मागणे मागावे मागुनी||३||
गेलो दत्तमयी होउनी, गेलो दत्तमयी होउनी.....

श्री काशी विश्वनाथ सुप्रभातम


श्री काशी विश्वनाथ सुप्रभातम् :-
shri kashi vishwanath suprabhatam :-

विश्वेशं माधवं धुण्डिं दण्डपाणिं च भैरवम।
वन्दे काशीं गुहां गङ्गां भवानीं मणिकर्णिकाम॥१॥

उत्तिष्ठ काशि भगवान प्रभुविश्वनाथो
गङ्गोर्मि-संगति-शुभैः परिभूषितोऽब्जैः।
श्रीधुण्डि-भैरव-मुखैः सहिताऽऽन्नपूर्णा
माता च वाञ्छति मुदा तव सुप्रभातम्॥२॥

ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारिः
भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्रः शनि-राहु-केतवः
कुर्वन्तु सर्वे भुवि सुप्रभातम्॥३॥

वाराणसी-स्थित-गजानन-धुण्डिराज
तापत्रयापहरणे प्रथित-प्रभाव।
आनन्द-कन्दलकुल-प्रसवैकभूमे
नित्यं समस्त-जगतः कुरु सुप्रभातम्॥४॥

ब्रह्मद्रवोपमित-गाङ्ग-पयः-प्रवाहैः
पुण्यैः सदैव परिचुंबित-पादपद्मे।
मध्ये-ऽखिलामरगणैः परिसेव्यमाने
श्रीकाशिके कुरु सदा भुवि सुप्रभातम्॥५॥

प्रत्नैरसंख्य-मठ-मन्दिर-तीर्थ-कुण्ड-
प्रासाद-घट्ट-निवहैः विदुषां वरैश्च।
आवर्जयस्यखिल-विश्व-मनांसि नित्यं
श्रीकाशिके कुरु सदा भुवि सुप्रभातम्॥६॥

के वा नरा नु सुधियः कुधियो.अधियो वा
वाञ्छन्ति नान्तसमये शरणं भवत्याः।
हे कोटि-कोटि-जन-मुक्ति-विधान-दक्षे
श्रीकाशिके कुरु सदा भुवि सुप्रभातम्॥७॥

या देवैरसुरैर्मुनीन्द्रतनयैर्गन्धर्व-यक्षोरगैः
नागैर्भूतलवासिभिर्द्विजवरैस्संसेविता सिद्धये।
या गङ्गोत्तरवाहिनी-परिसरे तीर्थैरसंख्यैर्वृता
सा काशी त्रिपुरारिराज-नगरी देयात सदा मङ्गलम॥८॥

तीर्थानां प्रवरा मनोरथकरी संसार-पारापरा
नन्दा-नन्दि-गणेश्वरैरुपहिता देवैरशेषैः-स्तुता।
या शंभोर्मणि-कुण्डलैक-कणिका विष्णोस्तपो-दीर्घिका
सेयं श्रीमणिकर्णिका भगवती देयात सदा मङ्गलम॥९॥

अभिनव-बिस-वल्ली पाद-पद्मस्य विल्णोः
मदन-मथन-मौलेर्मालती पुष्पमाला।
जयति जय-पताका काप्यसौ मोक्षलक्ष्म्याः
क्षपित-कलि-कलङ्का जाह्नवी नः पुनातु॥१०॥

गाङ्गं वारि मनोहारि मुरारि-चरणच्युतम।
त्रिपुरारि-शिरश्चारि पापहारि पुनातु माम॥११॥

विघ्नावास-निवासकारण-महागण्डस्थलालंबितः
सिन्दूरारुण-पुञ्ज-चन्द्रकिरण-प्रच्छादि-नागच्छविः।
श्रीविश्वेश्वर-वल्लभो गिरिजया सानन्दमानन्दितः
स्मेरास्यस्तव धुण्डिराज-मुदितो देयात सदा मङ्गलम॥१२॥

कण्ठे यस्य लसत्कराल-गरलं गङ्गाजलं मस्तके
वामाङ्गे गिरिराजराज-तनया जाया भवानी सती।
नन्दि-स्कन्द-गणाधिराज-सहितः श्रीविश्वनाथप्रभुः
काशी-मन्दिर-संस्थितोऽखिलगुरुः देयात सदा मङ्गलम॥१३॥

श्रीविश्वनाथ करुणामृत-पूर्ण-सिन्धो
शीतांशु-खण्ड-समलंकृत-भव्यचूड।
उत्तिष्ठ विश्वजन-मङ्गल-साधनाय
नित्यं सर्वजगतः कुरु सुप्रभातम्॥१४॥

श्रीविश्वनाथ वृषभ-ध्वज विश्ववन्द्य
सृष्टि-स्थिति-प्रलय-कारक देवदेव।
वाचामगोचर महर्षि-नुताङ्घ्रि-पद्म
वाराणसीपुरपते कुरु सुप्रभातम्॥१५॥

श्रीविश्वनाथ भवभञ्जन दिव्यभाव
गङ्गाधर प्रमथ-वन्दित सुन्दराङ्ग।
नागेन्द्र-हार नत-भक्त-भयापहार
वाराणसीपुरपते कुरु सुप्रभातम्॥१६॥

श्रीविश्वनाथ तव पादयुगं नमामि
नित्यं तवैव शिव नाम हृदा स्मरामि।
वाचं तवैव यशसाऽनघ भूषयामि
वाराणसीपुरपते कुरु सुप्रभातम्॥१७॥

काशी-निवास-मुनि-सेवित-पाद-पद्म
गङ्गा-जलौघ-परिषिक्त-जटाकलाप।
अस्याखिलस्य जगतः सचराचरस्य
वाराणसीपुरपते कुरु सुप्रभातम्॥१८॥

गङ्गाधराद्रितनया-प्रिय शान्तमूर्ते
वेदान्त-वेद्य सकलेश्वर विश्वमूर्ते।
कूटस्थ नित्य निखिलागम-गीत-कीर्ते
वाराणसीपुरपते कुरु सुप्रभातम्॥१९॥

विश्वं समस्तमिदमद्य घनान्धकारे
मोहात्मके निपतितं जडतामुपेतम।
भासा विभास्य परया तदमोघ-शक्ते
वाराणसीपुरपते कुरु सुप्रभातम्॥२०॥

सूनुः समस्त-जन-विघ्न-विनास-दक्षो
भार्याऽन्नदान-निरता-ऽविरतं जनेभ्यः।
ख्यातः स्वयं च शिवकृत सकलार्थि-भाजां
वाराणसीपुरपते कुरु सुप्रभातम्॥२१॥

ये नो नमन्ति न जपन्ति न चामनन्ति
नो वा लपन्ति विलपन्ति निवेदयन्ति।
तेषामबोध-शिशु-तुल्य-धियां नराणां
वाराणसीपुरपते कुरु सुप्रभातम्॥२२॥

श्रीकण्ठ कण्ठ-धृत-पन्नग नीलकण्ठ
सोत्कण्ठ-भक्त-निवहोपहितोप-कण्ठ।
भस्माङ्गराग-परिशोभित-सर्वदेह
वाराणसीपुरपते कुरु सुप्रभातम्॥२३॥

श्रीपार्वती-हृदय-वल्लभ पञ्च-वक्त्र
श्रीनील-कण्ठ नृ-कपाल-कलाप-माल।
श्रीविश्वनाथ मृदु-पङ्कज-मञ्जु-पाद
वाराणसीपुरपते कुरु सुप्रभातम्॥२४॥

दुग्ध-प्रवाह-कमनीय-तरङ्ग-भङ्गे
पुण्य-प्रवाह-परिपावित-भक्त-सङ्गे।
नित्यं तपस्वि-जन-सेवित-पाद-पद्मे
गङ्गे शरण्य-शिवदे कुरु सुप्रभातम्॥२५॥

सानन्दमानन्द-वने वसन्तं आनन्द-कन्दं हत-पाप-वृन्दम।
वाराणसी-नाथमनाथ-नाथं श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये॥२६॥

॥इति काशी विश्वनाथ सुप्रभातम्॥

Saturday, 22 September 2018

शिवशंकर स्तुती

जय शिवशंकर, जय गंगाधर, करुणा-कर करतार हरे,

जय कैलाशी, जय अविनाशी, सुखराशि, सुख-सार हरे

जय शशि-शेखर, जय डमरू-धर जय-जय प्रेमागार हरे,

जय त्रिपुरारी, जय मदहारी, अमित अनन्त अपार हरे,

निर्गुण जय जय, सगुण अनामय, निराकार साकार हरे।

पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥


जय रामेश्वर, जय नागेश्वर वैद्यनाथ, केदार हरे,

मल्लिकार्जुन, सोमनाथ, जय, महाकाल ओंकार हरे,

त्र्यम्बकेश्वर, जय घुश्मेश्वर भीमेश्वर जगतार हरे,

काशी-पति, श्री विश्वनाथ जय मंगलमय अघहार हरे,

नील-कण्ठ जय, भूतनाथ जय, मृत्युंजय अविकार हरे।

पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥

जय महेश जय जय भवेश, जय आदिदेव महादेव विभो,

किस मुख से हे गुणातीत प्रभु! तव अपार गुण वर्णन हो,

जय भवकारक, तारक, हारक पातक-दारक शिव शम्भो,

दीन दुःख हर सर्व सुखाकर, प्रेम सुधाकर की जय हो,

पार लगा दो भव सागर से, बनकर करूणाधार हरे।

पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे


जय मनभावन, जय अतिपावन, शोकनशावन,शिव शम्भो

विपद विदारन, अधम उदारन, सत्य सनातन शिव शम्भो,

सहज वचन हर जलज नयनवर धवल-वरन-तन शिव शम्भो,


मदन-कदन-कर पाप हरन-हर, चरन-मनन, धन शिव शम्भो,

विवसन, विश्वरूप, प्रलयंकर, जग के मूलाधार हरे।

पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥



FILE

भोलानाथ कृपालु दयामय, औढरदानी शिव योगी,

सरल हृदय,अतिकरुणा सागर, अकथ-कहानी शिव योगी,

निमिष मात्र में देते हैं,नवनिधि मन मानी शिव योगी,

भक्तों पर सर्वस्व लुटाकर, बने मसानी शिव योगी,

स्वयम्‌ अकिंचन,जनमनरंजन पर शिव परम उदार हरे।

पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥


आशुतोष! इस मोह-मयी निद्रा से मुझे जगा देना,

विषम-वेदना, से विषयों की मायाधीश छुड़ा देना,

रूप सुधा की एक बूँद से जीवन मुक्त बना देना,


दिव्य-ज्ञान- भंडार-युगल-चरणों को लगन लगा देना,

एक बार इस मन मंदिर में कीजे पद-संचार हरे।

पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥


दानी हो, दो भिक्षा में अपनी अनपायनि भक्ति प्रभो,

शक्तिमान हो, दो अविचल निष्काम प्रेम की शक्ति प्रभो,

त्यागी हो, दो इस असार-संसार से पूर्ण विरक्ति प्रभो,

परमपिता हो, दो तुम अपने चरणों में अनुरक्ति प्रभो,

स्वामी हो निज सेवक की सुन लेना करुणा पुकार हरे।

पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥


तुम बिन ‘बेकल’ हूँ प्राणेश्वर, आ जाओ भगवन्त हरे,

चरण शरण की बाँह गहो, हे उमारमण प्रियकन्त हरे,

विरह व्यथित हूँ दीन दुःखी हूँ दीन दयालु अनन्त हरे,

आओ तुम मेरे हो जाओ, आ जाओ श्रीमंत हरे,

मेरी इस दयनीय दशा पर कुछ तो करो विचार हरे।

पार्वतीपती पतहर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे

ऐका सत्यनारायणाची कथा

सत्य नारायणाची कथा -

श्रीहरी जगत्पिता दुर करीतो व्यथा
ही ऐका सत्य नारायणाची कथा
उल्कामुख राजा होता महाथोर
तयाची पत्नी होती सुंदर
नदी किनारी एकदा त्यांनी
घातली महापुजा दोघांनी
आली एक नौका त्याच मार्गानी
नाव भरलेली पुर्ण द्रव्यानी
होती व्यापारी साधु वाण्याची
रित पाहण्यास आला पुजनाची
उल्कामुख बोले त्यास ऐकावे
व्रत नारायणाचे आचरावे
मनोईच्छीत फळ मागावे
चरणी श्रीहरीच्या लागावे
आला घरास वाणी परतून
तयाची पत्नी होती शिलवान
बयास नव्हते काही संतान
म्हणूनी नवस केला वाण्यानं
पती पत्नीस जाहली जाण
कन्याही झाली त्यास रूपवान
कलावती म्हणोनी कन्येचे
नाव ठेवीले त्याने आवडीचे
योगीयांची ही कथा
जाईना कधी वृथा
ऐका सत्य नारायणाची ....
लिलावतीनं काही दिवसानं
दिली नवसाची त्यास आठवण
बोल पत्नीचे ऐसे ऐकून
दिले उत्तर साधु वाण्यानं
लग्न कन्येचे होता मानानं
घालीन पुजा मोठ्या थाटानं
सुत कांचन नगरी धाडीला
वर एक वैश्यपुत्र ठरविला
केले हो कन्यादान बापानं
विवाह पार पडला थाटान
व्रत नवसाचे गेला विचारून
म्हणोनी रुष्ठ झाले भगवान
जावयासह आला तो वाणी
कराया धंदा आपला मानानी
नगर ते होते चंद्रकेतुचे
ईथेच ग्रह फिरले दोघांचे
चंद्रकेतुच्या महालातुन
चोरांनी द्रव्य नेले चोरून
राजदुताने पाहीली चोरी
आला तो चोर
वाण्याच्या दारी
चोरीचे द्रव्य तेथे टाकून
पळाला चोर दुत पाहून
साधु वाण्यावरी  आला आळ
दोघांसी कैद केले तत्काळ
कर्ता आणि करवीता
काय घडवीतो आता
ऐका सत्यनारायणाची कथा ....
लिलावतीस दुःख बहु झाले
घरीही द्रव्य चोरीला गेले
दोघीही मागु लागल्या भिक्षा
पुजा न केल्याचीच ही शिक्षा
होते ब्राह्मणा घरी पुजन
आली कलावती ते पाहून
घरी सांगुन तिने मातेला
घातली पुजा त्याच वेळेला
् चंद्रकेतूच्या तेंव्हा स्वप्नात
देव जाऊनी देती दृष्टांत
दोघे निर्दोष असती व्यापारी
सोडुनी द्यावे त्यांना सत्वरी
सुटता कैदेतून तो वाणी
निघे भरूनी नौका द्रव्यानी
जाहली ईच्छा तोच देवाची
परिक्षा घेण्या साधू वाण्याची
वेऊनी म्हणती त्यास भगवंत
ठेवीले काय आहे नौकेत
म्हणे तो नौका माझी तरलेली
वेली व पान याने भरलेली
होवो खरे तुझे हे बोलुन
यति ते बसले दुर जाऊन
द्रव्य गेले व पाने पाहीली
क्षमा यतिची त्याने मागीतली
वेली पानाचे द्रव्य बनवून
दिले यतिने त्यास परतून
बांधवा संगे साधू वाण्यानं
केले नारायणाचे पुजन
ठेवा  ह्रदयी सत्यता
श्रीहरीसी पुजीता
ऐका सत्य नारायणाची कथा ....!!!

Friday, 21 September 2018

श्रीदत्तभावसुधारसस्तोत्रम

श्रीदत्तभावसुधारसस्तोत्रम्।।
(निरुपणकार: मा.डॉ. Vasudeo Deshmukh)
         श्रीदत्तो जयतीह दत्तमनिशं ध्यायामि दत्तेन मे।
         हृच्छुद्धिर्विहिता ततोऽस्तु सततं दत्ताय तुभ्यं नमः॥
         दत्तान्नास्ति परायणं श्रुतिमतं दत्तस्य दासोऽस्म्यहम्॥
         श्रीदत्ते परभक्तिरस्तु मम भो दत्त प्रसीदेश्वर        ॥११०॥
        (श्री दत्तः इह जयति।) श्रीदत्तच या विश्वांत जय पावतात.(दत्तं अनिशं ध्यायामि) मी निरंतर दत्तालाच ध्यातों. (दत्तेन मे हृत्+शुद्धिः विहिता।) दत्तानेच माझ्या चित्ताची शुद्धि केली. (ततः दत्ताय तुभ्यं सततं नमः अस्तु।) त्यामुळें तुज दत्ताला सदैव नमन असो.  (दत्तात् श्रुतिमतं परायणं नास्ति।) दत्ताहून अन्य वेदमान्य परमपद नाही. (अहं दत्तस्य दासः अस्मि।)मी दत्ताचाच दास आहे. (मम श्रीदत्ते परभक्तिः अस्तु।)श्रीदत्ताच्या ठायींच माझी परमभक्ति असो.(भो दत्त ईश्वर, प्रसीद।) दत्तात्रेया परमेश्वरा माझ्यावर कृपा कर.
          श्रीदत्तस्तवराज नांवाचे श्रीशुक आणि शिव यांच्या संवादात्मक स्तोत्र आहे. त्यांत विविध तीर्थयात्रा, उपासना, साधना आदींची लांब यादीच आहे. प्रत्येक अर्धश्लोकांनंतर "एतत्सर्वं कृतं तेन दत्त इत्यक्षरद्वयम्।" या पालुपदाने श्लोक पूर्ण केला आहे. दत्त या दोन अक्षरांच्या स्मरणाने, श्रवणाने आणि उच्चारणाने सर्व पुण्यांची प्राप्ति होते. सर्व साधनांचे साध्य गंवसते. असें हें दत्तनाम आहे. इथे या नामाच्या दहाही विभक्ती एकत्र गुंफल्या आहेत. आंबा जसा आपण, आंतून, बाहेरून, पिळून, चोखून, चाटून चाखावा तसे ह्या अमृतमधुर दत्तनामाला सर्व विभक्तीचे प्रत्यय लावून त्याच्या गोडीचा विविध अंगांनी आस्वाद श्रीस्वामी महाराज घेत असावेत. प्रसिद्ध रामरक्षेच्या शेंवटींही बुधकौशिकांनी राम नामाच्या अशाच दहा रूपांनी स्तवन केलें आहे. हा उपास्याला सुखविण्याचा एक भक्ताचा लडिवाळपणाच आहे. अर्थ स्पष्टच आहेत.
           या श्लोकाच्या अंतिम चरणांत श्रीदत्तपदीं परम भक्तीचे मागणें श्रीस्वामी महाराज मागत आहेत. 'त्वदीय भक्तेः कुरु मा वियोगम्' हे आधीच्याच श्लोकंत मागितलें आहे. तेव्हां ही पुनरुक्तीच नाहीं का? अशी शंका येऊं शकते. इथे भक्ति शब्दामागें पर शब्द लावला आहे हे महत्त्वाचे आहे. योगाबरोबर साधन म्हणून मागितलेली भक्ति वेगळी आणि ही साध्यभूत परा भक्ति वेगळी. श्रीस्वामीमहाराजांनी हिची व्याख्या आत्मपूजा प्रकरणाच्या स्वोपज्ञ टीकेंत "ज्ञानोत्तरा ईश्वरानुरक्तिः" असा केला आहे. त्यासाठी त्यांनी श्रीमद्भगवद्गीतेच्या अठराव्या अध्यायाच्या ५१-५५ श्लोकांचा आधार दिला आहे. तिथे भगवान् श्रीकृष्णांनी अर्जुनाला साधक नैष्कर्म्यसिद्धि प्राप्त करून ब्रह्माशी एकरूप कसा होतो ते संक्षेपाने सांगितलें आहे. असा ब्रह्मरूप आणि प्रसन्नचित्त योगी न कशाचा शोक करतो न कशाची इच्छा. सर्व जीव त्याला सारखेच होतात. मग त्याला परा भक्ति लाभते. (ब्रह्मीभूतः प्रसन्नात्मा न शोचति न कांक्षति। समः सर्वेषु भूतेषु मद्भक्तिं लभते पराम्।।५४।।) त्या परम भक्तीने तो मला मी जो आणि जसा आहे तसा जाणतो. मला तत्त्वतः जाणल्यावर मग माझ्यांत प्रविष्ट होतो. (भक्त्या मामभिजानाति यावान् यश्चास्मि तत्त्वतः। ततो मां तत्त्वतो ज्ञात्वा विशते तदनंतरम्।।५५।।) सर्व साधनांचा परिपाक असलेली ही ज्ञानोत्तर भक्ति निर्विकल्प समाधीनंतर लाभते. ह्या प्रेमभक्तीच्या उदयानंतर मोक्षाची इच्छासुद्धां उरत नाही. यासाठी ह्या परा भक्तीला पंचम पुरुषार्थ असे म्हटले आहे. ह्याच भक्तीला ज्ञानोत्तरभक्ति असेंही म्हटले आहे. ज्ञानेश्वरमहाराज हिला चवथी भक्ति म्हणतात. (म्हणोनियां दृश्यपथा-।अतीतु माझा पार्था। भक्तियोगु चवथा। म्हणितला गा।।१८.११२९). इथे श्रीस्वामीमहाराजांनी योग, भक्ति आणि भक्तीच मागितली, ज्ञानाचे नांवही काढले नाही तें कां हें लक्षांत येते. ज्ञान हे स्वयंसिद्ध आहे. ते कुणी द्यायचा प्रश्नच येत नाही.
      या स्तोत्राचे हे बालबुद्धीने केलेले निरूपणात्मक अध्ययन इथे श्रीस्वामीमहाराजांच्या कृपेने पूर्णतेला गेले.
        वाङ्मयं वासुदेवस्य गहनं सागरादपि।
        चिंतनाय प्रवृत्तोऽस्मि मन्दोऽप्यंतरशुद्धये।।
        प.प. श्रीवासुदेवानंदसरस्वती स्वामी महाराजांनी विद्वत्तेच्या, बुद्धिमत्तेच्या सर्व स्तरांतील भक्तांसाठी जे वैविध्यपूर्ण आणि विशाल वाङ्मय निर्माण केले आहे त्याची जागतिक वाङ्मयांत तोड नाही. त्यांत कांही रचना सरल तर कांही गहन आहेत. साधकाच्या रुचीप्रमाणे, क्षमतेप्रमाणे रचना केल्या आहेत. प्रस्तुत स्तोत्र हे संस्कृत जाणणाऱ्यांना सरलच आहे. पण सद्यःस्थितीत संस्कृत फारच कमी लोकांना समजतें. अर्थात् न समजतांही या स्तोत्राचे पठण केले तरी त्याचे फल मिळतेंच. या स्तोत्राचे मुख्य फल दत्तभक्ति हेंच आहे. पण सकाम पठणाने आर्त, जिज्ञासू आणि अर्थार्थी अशा सर्वही भक्तांना लाभ होतोच. तरीही जाणून केलेले पठण अधिक लाभकारक होते (विदुषस्तु फलाधिक्यम्) असे श्रीस्वामीमहाराजांनीच म्हटलें आहे. कांही दत्तभक्त स्वकीयांनी भाषेची अडचण व्यक्त केल्याने त्यांच्यासाठी हा निरूपणाचा अनधिकार प्रपंच केला आहे. श्रेष्ठ साधक आणि अधिकारी दत्तभक्त असें म्हणतात कीं श्रीस्वामीमहाराजांचे वाङ्मय हे अनेक परिमाणांत (dimensions) रचलेले असते. ग्राहकाच्या योग्यतेनुसार त्यांतून ते ते अर्थ त्याच्या चित्तांत प्रकाशतात. सर्वच श्रेष्ठ आध्यात्मिक वाङ्मयाविषयी हे खरे आहे. या महान् स्तोत्ररचनेचा अभ्यास करतांना मलाही माझ्या योग्यतेप्रमाणेच सारग्रहण करतां आले असणार हे उघडच आहे. माझ्या संस्कृतच्या आणि अध्यात्माच्या ज्ञानाच्या मर्यादांची मला तीव्र जाणीव आहे. यांतून सर्वज्ञ वाचकांनी ग्राह्य ते घ्यावे आणि त्याज्य ते टाकावे. "अधिक तें सरतें, उणें तें पुरतें" करून घ्यावे ही नम्र प्रार्थना आहे.
यथामति, यथाशक्ति केलेली ही वाङ्मयी सेवा श्रीगुरुचरणीं समर्पित असो.

                 इति श्री.प.प.श्रीवासुदेवानन्दसरस्वतीविरचितं
                          दत्तभावसुधारसस्तोत्रं संपूर्णम्॥

Sunday, 16 September 2018

मूलभूत हक्क, कर्तव्ये आणि मार्गदर्शक तत्वे

१.२ मूलभूत हक्क,कर्तव्ये आणि मार्गदर्शक तत्वे 

मूलभूत हक्काची वैशिट्ये 

* आधुनिक सामाजात व्यक्तीच्या सर्वांगीण विकासासाठी पूरक अशी परिस्थिती निर्माण करणे हे हक्काच्या संकल्पनेतील मूळ गृहीतक आहे.

* प्रस्तुत हक्क हा संविधानाचा भाग आहे.

* विस्तृत सविस्तरपणे घटनेच्या कलम १२ ते ३५ अन्वयें पुरविण्यात आले आहे.

* काही सकारात्मक म्हणजे राज्याला भूमिका देणारे तर काही हक्क नकारात्मक म्हणजे राज्याला नकारात्मक भूमिका देणारे.

* हे हक्क न्यायप्रविष्ट आहेत म्हणजे हक्काचे उलंघन झाल्यास त्याविरुद्ध न्याय मागता येते.

* संविधानातील हक्क सर्व सार्वजनिक अधिसल्लावर बंधनकारक आहेत. केंद्र राज्य ते स्थानिक संस्था यांना मूलभूत हक्कांचा भंग करता येत नाही.

* हक्कात दुरुस्ती करता येते.

* आणीबाणीच्या काळात स्थगित करता येते.

कलम १२ ची व्याख्या 

* कलम १२ मध्ये भारताचे शासन आणि संसद म्हणजे संघ शासनाचे कार्यकारी व कायदेमंडळ

* घटक राज्याचे शासन मंडळ

* स्थनिक स्वराज्य संस्था

* इतर सर्व सल्ला म्हणजे वैधानिक व बिगर वैधानिक [ न्याय मंडळे, एलआयसी, ओएनजिसी ]

कलम १३ [ मूलभूत हक्काचा विसंगत कायदा ]  

* या कलमातील न्यायालयीन पुनर्विलोकन तत्व स्पष्ट होते. हा अधिकार सर्वोच्च न्यायालय [ कलम ३२ ] व उच्च न्यायालय २२६ नुसार आहे.

* संसदेने केलेले कायदे

* राष्ट्रपती व राज्यपालाने केलेले हुकूम

* आदेश, उपनियम, नियम

* कायद्याच्या बिगर कायदेशीर स्रोत

* केशवानंद भरती खटल्याप्रमाणे सर्वोच्च न्यायालयाने नमूद केले कि मूलभूत हक्काचा भाग हा मौलिक संरचनेचा भाग आहे. तिचे उल्लंघन करणारी घटनादुरुस्ती केल्यास तिला न्यायालयात आव्हान देऊ शकते.

मूलभूत अधिकारांचे वर्गीकरण 

* समतेचा अधिकार [ कलम १४ व १८ ] - कायद्यापुढे समानता, कलम १५ भेदभावास प्रतिबंध, कलम १६ सार्वजनिक नोकऱ्यांत समान संधी, कलम १७ अस्पृश्यता निवारण, कलम १८ पदव्यांची समाप्ती

* स्वातंत्र्यचा अधिकार [ कलम १९ ते २२ ] - कलम १९ स्वातंत्र्याचा अधिकार, कलम १९ [१] - भाषण व अभिव्यक्ती अथवा मतप्रदशांचे स्वतंत्र, शांतातपूर्ण व निःशस्त्र एकत्र जमणे, संस्था व संघ सहकारी संस्था, भारतभर मुक्त संचार करण्याचे स्वतंत्र, भारतात कुठेही राहणे व वास्तव्य करणे, संपत्ती ग्रहण व तिचा विनियोग करणे, कोणताही व्यवसाय व व्यापार करणे.

* कलम २० - पूर्वी केलेल्या कायद्यानुसार शिक्षा नाही, एकाच गुण्याबद्दल अधिकवेळा शिक्षा नाही, एखाद्या गुन्ह्याबद्दल आरोप ठेवलेल्या व्यक्तीवर स्वतःच्या विरुद्ध साक्षीदार होण्याची सक्ती जाणार नाही,

* कलम २१ - व्यक्तीचे जीवित व व्यक्ती स्वतंत्र हिरावून घेतले जाणार नाही.

* कलम २२ - मनमानी अटकेविरुद्ध संरक्षण, अटकेची करणे त्वरित कळवणे, वकिलाचा सल्ला घेणे, २४ तासाच्या आत दंडाधिकाऱ्यासमोर हजर राहणे.

प्रतिबंधात्मक कायद्याविषयी तरतुदी 

* कलम २२ अनवये अंतर्गत सुरक्षा देशांची सुरक्षा परराष्ट्र संरक्षण याकरिता स्थानबद्धता नियम आहे.

* १९५० च्या प्रतिबंधात्मक स्थानबद्धता कायदा

* १९७१ च्या अंतर्गत सुरक्षा कायदा [मिसा]

* १९८० च्या सुरक्षा कायदा [ रासुका ]

* १९८५ च्या दहशतवादी व फुटीर कारवाया प्रतिबंधक कायदा

* २००२ चा दहशतवाद प्रतिबंधक कायदा

पोटा कायदा 

* १९८५ पासून अंमलात आलेल्या टाडा कायद्याला संसदेने मुदतवाढ न दिल्यामुळे तो २४ मे १९९५ रोजी आपोआप रद्द झाला.

* ११ सप्टेंबर रोजी न्यूयॉर्क या शहरातील जागतिक व्यापार केंद्राच्या गगनचुंबी इमारतीवर तसेच वॉशिंग्टन डीसी मधील मुख्य कार्यालयावर दहशतवादी हल्ला झाला.

* दहशतवादाच्या समस्येचे उग्ररूप धारण केल्याचा निष्कर्ष काढत १५ ऑकटोम्बर २००१ ला [ प्रिव्हेंशन ऑफ टेररिझम ऑर्डीनन्स ] या कायद्याला मान्यता दिली.

* लोकसभा व राज्यसभा यांच्यात मतभेद निर्माण झाल्यावर २४ ऑकटोम्बर जारी केलेल्या पोटाचे रूपांतर २६ मार्च २००२ रोजी संयुक्त बैठक बोलावून ४२५ विरुद्ध २९६ मतांनी या तिसम्पा बैठकीत संसदेने पोटा कायदा पारित केला.

* पिळवणुकीचा अधिकार [ कलम २३ - २४ ]

धार्मिक स्वातंत्र्याचा अधिकार 

* कलम २५ - धर्माचा उच्चार, आचार व प्रचार करण्याचा अधिकार

* कलम २६ - धार्मिक संस्था स्थापन करणे व कारभार करणे

* कलम २७ - ज्या करांचे उत्पन्न एखादया विशिष्ट धर्माच्या प्रसारासाठी व रक्षणासाठी होणार असेल असे कर सक्तीने वसूल केले जाऊ शकत नाहीत.

* कलम २८ - संपूर्णतः राज्याच्या निधीतून चालविण्यात येणाऱ्या शिक्षणसंथामध्ये धार्मिक शिक्षण देता येणार नाहीत.

* कलम २९ - भारताच्या कोणत्याही भागात राहणाऱ्या समूहाला जर विशिष्ट भाषा लिपी व संस्कृती असेल तर, ते अबाधित राखण्याचा अधिकार आहे.

* कलम ३० - धार्मिक आणि भाषिक अल्पसंख्यांकांना स्वतःच्या शिक्षण संस्था स्थापन करण्याचा अधिकार

घटनात्मक उपायांचा अधिकार [ कलम ३२ ] 

* बंदीप्रतिक्षीकरण कायदा - या संकल्पनेचा बाळगणे असा शब्दशा अर्थ होतो, या अर्जाद्वारे अटक झाली असल्यास त्याला अटक करण्याची घटनात्मक तपासली जाते.

* प्रतिषेध - वरिष्ठ न्यायालयाने खालच्या न्यायालयात त्यांच्यापुढे चालू असलेल्या एखाद्या खटल्यांची सुनावणी थांबण्यासाठी दिलेला आदेश होय.

* पारमादेश - आम्ही आदेश देतो असा या संकल्पनेचा अर्थ आहे, एखाद्या शासकीय पदावरील व्यक्ती तिचे कार्य करत नसल्यामुळे नागरिकांच्या मूलभूत हक्काची पायमल्ली होत असल्यास, न्यायालयाच्या अर्जाद्वारे संबंधित शासकीय अधिकाऱ्यास कार्य करण्याचा अधिकार होय.

* उत्प्रेक्षण - कनिष्ठ न्यायालयाने अधिकार क्षेत्राबाहेरील खटल्यासंबंधी निर्णय दिल्यास संबंधित निर्णयास रद्दबातल करून असा खटला वरिष्ट न्यायालयाकडे हस्तांतरित करण्यासाठी हा अर्ज वापरला जातो.

* अधिकारपृच्छा - या अर्जाद्वारे एखाद्या व्यक्तीद्वारे ग्रहण केलेल्या शासकीय पदाची कायदेशीरता घटनात्मकता तपासली जाते म्हणजेच योग्य व्यक्तीच अधिकार पदी आहे याची खातरजमा केली जाते.

 कामाचा हक्क राष्ट्रीय रोजगार हमी कायदा - २००५ 

* संयुक्त पुरोगामी आघाडी सरकारने संयुक्त किमान कार्यक्रमांतर्गत राष्ट्रीय रोजगार हमी कायदा २००५ मध्ये संमत केला.

* महाराष्ट्र रोजगार कायद्यापासून प्रेरणा घेऊन हा कायदा बनविण्यात आला.

* या कायद्याने देशातील शहरी व ग्रामीण अशा दोन्ही भागातील गरीब व कनिष्ठ मध्यमवर्गीय कुटुंबातील एकाला १०० दिवस काम देण्याची हमी देण्यात आली.

* या योजनेनुसार अर्ज केल्यानंतर १५ दिवसाच्या आत काम न मिळाल्यास त्या व्यक्तीला बेरोजगार भत्ता देणे बंधनकारक आहे.

* २ ऑकटोबर २००९ पासून रोजी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार हमी NREGA चे नाव महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण हमी अधिनियम MGNREGA असे करण्यात आले.

शिक्षणाचा मूलभूत हक्क 

* संसदेने ४ ऑगस्ट २००९ रोजी शिक्षणाचा हक्क पारित केला.

* राज्यघटनेतील कलम २१ अ मध्ये बदल करून ६ ते १४ वयोगटातील मुलांना मोफत व सक्तीचे शिक्षण तरतूद करण्यात आली.

* हा हक्क मान्य केल्यामुळे जगातील १३५ देशाच्या यादीत भारताचा समावेश करण्यात आला.

* या हक्काची अंमलबजावणी एप्रिल २०१० पासून सुरु झाली. फक्त जम्मू काश्मीर याला अपवाद आहे.

मूलभूत हक्क व सर्वोच्च न्यायालय 

* कलम १३ नुसार मूलभूत हक्क काढून घेणारा अथवा त्यात ढवळाढवळ करणारा कायदा सर्वोच्च राहू शकतो.

* कलम ३२ नुसार आपल्या हक्क संरक्षणाची कोणतीही व्यक्ती सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालयात दाद मागू शकते.

* गोपालना खटला - १९५० मूलभूत हक्क महत्वाचे

* गोलखनाथ खटला - १९६७ मूलभूत हक्क त्यात दुरुस्ती शक्य नाही

* केशवानंद भरती खटला - मूलभूत हक्क व मार्गदर्शक तत्वे संतुलन

* मेनका गांधी खटला - १९७८ कलम २१ बाबत व्यक्तीच्या जीविताचाप हक्काची संकल्पना.

मार्गदर्शक तत्वे 

* घटनाकारांनी नागरिकांच्या हक्कांच्या तरतूद करताना मूलभूत हक्क आणि मार्गदर्शक तत्वे असा फरक केला आहे. घटनेतील कलम ३६ ते ५१ मार्गदर्शक तत्वाशी संबंधित आहेत.

* मार्गदर्शक तत्वाचे वर्गीकरण तीन प्रकारात केले समाजवादी, गांधीवादी, उदारमतवादी या प्रकारात  केले आहे.

समाजवादी तत्वे -

* कलम ३८[१] - सामाजिक, आर्थिक, राजकीय, न्यायाने मुक्त समाज व्यवस्थेची निर्मिती करणे.

* कलम ३८[२] - उत्पन्न, दर्जा, सुविधा, संधी याबाबत विषमता कमी करणे.

* कलम ३९ - व्यक्तींना समान न्याय संधी,

* कलम ४१ - बेकारी, वृद्धत्व, आजारपण, अपंगत्व, सार्वजनिक सहाय.

* कलम ४२ - कामगारांना न्याय मानवी वातावरण,

* कलम ४३ - सर्व कामगारांना वाजवी वेतन.

* कलम ४३ अ - कामगारांना व्यवस्थापनात सहभाग,

* कलम ४४ ब - राज्यसंस्था सहकारी संस्थांची निर्मिती.

* कलम ४६ - समाजातील अनुसूची जाती, जमाती, व इतर दुर्बल घटक शैक्षिणक आर्थिक विकासाला हातभार

* कलम ४७ - लोकांचा आहार व जीवनमान उंचावणे

गांधीवादी तत्वे 

* कलम ४० - स्वशासनाचे घटक म्हणून कार्य करता येईल अशारितीने संघटन अधिकार

* कलम ४३ - व्यक्तिगत अथवा सहकारी तत्वावर कुटीरउद्योगांना प्रोत्साहन देणे.

* कलम ४७ - आरोग्यास अपायकारक अशा मादकद्रव्ये प्रतिबंध.

* कलम ४८ - गाई, वासरे, जनावरांच्या कत्तलीस बंदी

उदारमतवादी तत्वे 

* कलम ४४ - देशातील सर्व नागरिकांना सामान कायदा

* कलम ४५ - सहा वर्षापर्यंत मोफत शिक्षण

* कलम ४८ - आधुनिक व वैज्ञानिक आधारावर कृषी क्षेत्राचा विकास

* कलम ४८[अ] - वने व वन्यजीव संवर्धन

* कलम ४९ - राष्ट्रीयदृष्ट्या महत्वाची स्मारके स्थळे यांचे जतन

* कलम ५० - राज्याच्या न्याययंत्रणा कार्यकारणीपासून विलग

* कलम ५१ - आंतरराष्ट्रीय शांतता अबाधित सुरक्षितता अबाधित राखणे

समान नागरी कायदा 

* भारतातील इंग्रज राजवटीमध्ये धर्माच्या आधारावर शासन न करता सर्वधर्मीय नागरिकांना समान कायदे व धर्मनिरपेक्ष राज्याचा पाया घातला.

* राज्यघटनेत समतेचा अधिकार सर्वाना देण्यात आला आणि धर्म जात, लिंग, यावरून भेदभाव होऊ नये.

* शासनाने कायद्याने तो करू नये असे सांगितले म्हणून समान नागरी कायद्याची तरतूद घटनेने कलम ४४ मध्ये केली आहे.

मूलभूत कर्तव्ये 

* भारतीय घटनेच्या कलम ५१ अ भाग ४ अ मध्ये नागरिकांची मूलभूत कर्तव्ये सांगितलेली आहे. हक्क आणि कर्तव्ये एकाच नाण्याच्या बाजू आहेत.

* ४२ व्या घटनादुरुस्तीत पुढील १० मूलभूत कर्तव्याची यादी समाविष्ट केली त्यानंतर ८६ व्या घटनादुरुस्तीने पुढील २००२ अकरावे कर्तव्य समाविष्ट केले.

* संविधानाचे पालन करणे तसेच राष्ट्रध्वज व राष्ट्रगीताचा आदर करणे.

* राष्ट्रीय स्वतंत्रलढ्यास प्रेरक असलेल्या व उदात्त ठरलेल्या आदर्शाची जोपासना करून त्याचे अनुसरण करणे.

* देशाचे सार्वभौम, ऐक्य व एकात्मता उन्नत राखणे व त्याचे संरक्षण करणे.

* धर्म, भाषा, प्रदेश, वर्ग भेद विसरून अखिल भारतीय जनतेत एकोपा व भातृभाव वाढीस लावणे स्त्रियांच्या प्रतिष्ठेला उणेपणा आणणाऱ्या प्रथा सोडून देणे.

* आपल्या संमिश्र, संस्कृतीच्या वारशाचे मोल जाणून तो जतन करणे.

* अरण्ये, सरोवरे, नद्या, व अन्य जीवसृष्टी यासह नैसर्गिक पर्यावरणाचे रक्षण करून त्यात सुधारणा करणे.

* विज्ञाननिष्ठ दृष्टिकोन, मानवतावाद, शोधकदृष्टी, यांचा विकास करणे.

* सार्वजनिक संपत्तीचे रक्षण करणे, हिंसाचाराचा निग्रहपूर्वक त्याग करणे.

* आपले राष्ट्र व सर्व व्यक्तिगत सामुदायिक कार्यक्षेत्रात पराकष्टाचे यश संपादन करण्यासाठी झटणे.

* ६ ते १४ वयोगटातील मुलांना प्राथमिक शिक्षण उपलब्द करून देणे.

मूलभूत कर्तव्याची वैशिष्ट्ये 

* त्यापैकी काही कर्तव्ये ही नैतिक व उर्वरित व नैतिक ही नगरी स्वरूपाची आहे.

* भारतीय परंपरा पौराणिक कथा, धर्म, व्यवहार, यांशी संबंधित मूल्यांचा संदर्भ मूलभूत संदर्भ मूलभूत कर्तव्यांचा आहे.

* मूलभूत हक्क हे भारतीय नागरिकांप्रमाणे काही परकीय नागरिकाला देखील लागू होतात, पण मूलभूत कर्तव्ये ही भारतीयांनाच लागू पडतात.

* मार्गदर्शक  तत्वांप्रमाणेच मूलभूत कर्तव्ये देखील न्यायप्रविष्ट नाहीत.

मूलभूत कर्तव्याचे महत्व 

* हक्काचा उपभोग होत असताना आपल्या देशाप्रती, समाजाप्रती, व इतर नागरिकांप्रती आपली कर्तव्ये आहेत, याची जाणीव करून देतात.

* राष्ट्रनिर्मिती आणि समाजहित विरोधी कृत्याबाबत ते इशारा देतात.

* मूलभूत कर्तव्ये भारतीय नागरिकांसाठी प्रेरणास्रोत आहेत त्यामुळे शिस्त व बांधिलकी वाढीस लागू शकते.

* कायद्याची घटनात्मक वैधता तपासण्यांमध्ये आणि निश्चित करण्यामध्ये न्यायालयाला मूलभूत कर्तव्याचे पालन करण्यात अपयश आल्यास संसद त्याकरिता दंड करु शकते.