पहला वचन
जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा अर्थ- साईं बाबा का अधिकांश जीवन शिरडी में बीता, इसलिए कहते हैं कि शिरडी जाने से ही समस्याएं खत्म हो जाती हैं। जो भक्त शिरडी नहीं जा सकते, वे अपने निकट किसी साईं मंदिर भी जा सकते हैं।
दूसरा वचन
चढ़े समाधि की सीढ़ी पर, पैर तले दुख की पीढ़ी पर अर्थ- साईं बाबा की समाधि की सीढ़ी पर पैर रखते ही भक्तों का मन भक्ति में डूब जाता है और वे सांसारिक दुखों से मुक्ति पा लेते हैं।
तीसरा वचन
त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौड़ा आऊंगा
अर्थ- इस वचन में साईं बाबा ने कहा है कि मेरा शरीर नष्ट हो जाएगा, लेकिन जब भी मेरा भक्त मुझे पुकारेगा, मैं दौड़ के आऊंगा और उसकी सहायता करूंगा।
चौथा वचन मन में रखना दृढ़ विश्वास, करे समाधि पूरी आस अर्थ- इस वचन में साईं कहते हैं कि जिसे भी मुझ पर विश्वास है, वह विपरीत परिस्थितियों में भी मेरी समाधि पर आकर शांति का अनुभव करेगा।
पांचवां वचन मुझे सदा जीवित ही जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो अर्थ- साईं बाब कहते हैं मैं अपने भक्तों के विश्वास में जीवित हूं। यह बात भक्ति और प्रेम से कोई भी भक्त अनुभव कर सकता है।
छठा वचन
मेरी शरण आ खाली जाए, हो तो कोई मुझे बताए
अर्थ- साईं बाबा कहते हैं जो भी मेरी शरण में आता है, मैं उसकी हर इच्छा पूरी करता हूं।
सातवां वचन
जैसा भाव रहा जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मन का
अर्थ- जो व्यक्ति मुझे जिस रूप में पूजता है, मैं वैस् ही रूप में उसे दर्शन देता हूं।
आठवां वचन
भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
अर्थ- जो भक्त मुझ पर आस्था रखेंगे, उनका हर दायित्व मैं पूरा करुंगा।
नौवां वचन
आ सहायता लो भरपूर, जो मांगा वो नहीं है दूर
अर्थ- जो भक्त श्रद्धा व विश्वास से मुझे पुकारेगा, उसकी सहायता मैं जरूर करूंगा।
दसवां वचन
मुझमें लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
अर्थ- जो भक्त मन, वचन और कर्म से मेरा ही ध्यान करता है, मैं उसका हमेशा ऋणी रहता हूं।
ग्यारहवां वचन
धन्य धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य
अर्थ- साईं बाबा कहते हैं कि जो भक्त अनन्य भाव से मेरी भक्ति में लीन हैं ऐसे ही भक्त वास्तव में भक्त हैं।
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