Monday, 13 August 2018

शिव चालीसा

दोहा 

श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान । 
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान ॥

जय गिरिजा पति दीन दयाला । 
सदा करत सन्तन प्रतिपाला ॥

भाल चन्द्रमा सोहत नीके । 
कानन कुण्डल नागफनी के॥

अंग गौर शिर गंग बहाये । 
मुण्डमाल तन छार लगाये ॥

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे । 
छवि को देख नाग मुनि मोहे ॥

मैना मातु की ह्वै दुलारी । 
बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी । 
करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे । 
सागर मध्य कमल हैं जैसे॥

कार्तिक श्याम और गणराऊ । 
या छवि को कहि जात न काऊ ॥

देवन जबहीं जाय पुकारा । 
तब ही दुख प्रभु आप निवारा ॥

किया उपद्रव तारक भारी । 
देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥

तुरत षडानन आप पठायउ । 
लवनिमेष महँ मारि गिरायउ ॥

आप जलंधर असुर संहारा। 
सुयश तुम्हार विदित संसारा ॥

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई । 
सबहिं कृपा कर लीन बचाई ॥

किया तपहिं भागीरथ भारी । 
पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥

दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं । 
सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥

वेद नाम महिमा तव गाई । 
अकथ अनादि भेद नहिं पाई ॥

प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला । 
जरे सुरासुर भये विहाला ॥

कीन्ह दया तहँ करी सहाई । 
नीलकण्ठ तब नाम कहाई ॥

पूजन रामचंद्र जब कीन्हा । 
जीत के लंक विभीषण दीन्हा ॥

सहस कमल में हो रहे धारी । 
कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ॥

एक कमल प्रभु राखेउ जोई । 
कमल नयन पूजन चहं सोई ॥

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर । 
भये प्रसन्न दिए इच्छित वर ॥

जय जय जय अनंत अविनाशी । 
करत कृपा सब के घटवासी ॥

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । 
भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै ॥

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो । 
यहि अवसर मोहि आन उबारो ॥

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो । 
संकट से मोहि आन उबारो ॥

मातु पिता भ्राता सब कोई । 
संकट में पूछत नहिं कोई ॥

स्वामी एक है आस तुम्हारी । 
आय हरहु अब संकट भारी ॥

धन निर्धन को देत सदाहीं । 
जो कोई जांचे वो फल पाहीं ॥

अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी । 
क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ॥

शंकर हो संकट के नाशन । 
मंगल कारण विघ्न विनाशन ॥

योगी यति मुनि ध्यान लगावैं । 
नारद शारद शीश नवावैं ॥

नमो नमो जय नमो शिवाय । 
सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ॥

जो यह पाठ करे मन लाई । 
ता पार होत है शम्भु सहाई ॥

ॠनिया जो कोई हो अधिकारी । 
पाठ करे सो पावन हारी ॥

पुत्र हीन कर इच्छा कोई । 
निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ॥

पण्डित त्रयोदशी को लावे । 
ध्यान पूर्वक होम करावे ॥

त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा । 
तन नहीं ताके रहे कलेशा ॥

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे । 
शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ॥

जन्म जन्म के पाप नसावे । 
अन्तवास शिवपुर में पावे ॥

कहे अयोध्या आस तुम्हारी । 
जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥

॥ दोहा ॥

नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा। तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश ॥

मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान । अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण ॥

॥इति शिव चालीसा ॥

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