तू ही सागर है तू ही किनारा
ढूँढता है तू किसका सहारा
मन में उलझा कभी तन में उलझा
तू सदा अपने दामन में उलझा
सबसे जीता और अपने से हारा
उसका साया है तू उसका दर्पन
तेरे सीने में है उसकी धड़कन
तेरी आँखों में उसका इशारा
पाप क्या पुण्य है क्या ये भूला दे
कर्म कर फ़ल की चिंता मिटा दे
ये परीक्षा न होगी दोबारा
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