Thursday, 14 April 2016

श्रीराम स्तुति भये प्रगट कृपाला हिंदी अर्थ

रामावतार भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी . हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी .. व्याख्या- दीनो पर दया करने वाले , कौसल्याजी के हितकारी कृपालु प्रभु प्रकट हुए. मुनियो के मन को हरने वाले उनके अदभुत रूप का विचार करके माता हर्ष से भर गयी. लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी . भूषन वनमाला नयन बिसाला सोभासिन्धु खरारी .. व्याख्या-नेत्रो को आनंद देने वाला मेघ के समान श्याम शरीर थ, चारो भुजाओ मे अपने (खास) आयुध (धारण किये हुए) थे, (दिव्य) आभूषण और वनमाला पहने थे,बडे-बडे नेत्र थे. इस प्रकार शोभा के समुद्र तथा खर दानव को मारनेवाले भगवान प्रकट हुए. कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता . माया गुन ग्यानातीत अमाना वेद पुरान भनंता .. व्याख्या-दोनो हाथ जोडकर माता कहने लगी-हे अनंत! मै किस प्रकार तुम्हारी स्तुति करू. वेद और पुराण तुमको माया,गुण और ग्यान से परे और परिमाणरहित बतलाते है. करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता . सो मम हित लागी जन अनुरागी भयउ प्रकट श्रीकंता .. व्याख्या- श्रुतिया और संतजन दया और सुख का समुद्र, सब गुणो का धाम कहकर जिनका गान करते है, वही भक्तो पर प्रेम करने वाले लक्ष्मीपति भगवान मेरे कल्याण के लिये प्रकट हुए है. ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहै . मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर मति थिर न रहै व्याख्या- वेद कहते है कि तुम्हारे प्रत्येक रोम मे माया के रचे हुए अनेको ब्रम्हाण्डो के समूह (भरे) है. वे तुम मेरे गर्भ मे रहे-इस हसी की बात के सुनने पर धीर (विवेकी) पुरूषो की बुद्दि भी स्थिर नही रहती (विचलित हो जाती है). उपजा जब ग्याना प्रभु मुसुकाना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै . कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै. व्याख्या-जब माताको ग्यान उत्पन्न हुआ, तब प्रभु मुसकराये. वे बहुत प्रकार के चरित्र करना चाहते है. अतः उन्होने (पूर्वजन्म की) सुंदर कथा कहकर माता को समझाया, जिससे उन्हे पुत्र का (वात्सल्य) प्रेम प्राप्त हो (भगवान के प्रति पुत्रभाव हो जाय). माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा . कीजे सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा. व्याख्या- माता की बुद्धि बदल गयी, तब वह फिर बोली- हे तात! यह रूप छोड्कर अत्यन्त प्रिय बाललीला करो, (मेरे लिये) यह सुख परम अनुपम होगा. सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा . यह चरित जे गावहि हरिपद पावहि ते न परहिं भवकूपा. व्याख्या- (माता का) यह वचन सुनकर देवताओ के स्वामी सुजान भगवान ने बालक (रूप) होकर रोना शुरू कर दिया. (तुलसीदासजी कहते है) जो इस चरित्र का गान करते है वे श्रीहरि का पद पाते है और (फिर) संसाररूपी कूप मे नही गिरते. निवेदन

6 comments: