Sunday, 10 April 2016

दुर्गा चालीसा l

नमो नमो दुर्गे सुख करनी । नमो नमो अम्बे दुःख हरनी ॥ निराकार है ज्योति तुम्हारी । तिहूं लोक फैली उजियारी ॥ शशि ललाट मुख महा विशाला । नेत्र लाल भृकुटी विकराला ॥ रुप मातु को अधिक सुहावे । दरश करत जन अति सुख पावे ॥ तुम संसार शक्ति लय कीना । पालन हेतु अन्न धन दीना ॥ अन्नपूर्णा हु‌ई जग पाला । तुम ही आदि सुन्दरी बाला ॥ प्रलयकाल सब नाशन हारी । तुम गौरी शिव शंकर प्यारी ॥ शिव योगी तुम्हरे गुण गावें । ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ॥ रुप सरस्वती को तुम धारा । दे सुबुद्घि ऋषि मुनिन उबारा ॥ धरा रुप नरसिंह को अम्बा । प्रगट भ‌ई फाड़कर खम्बा ॥ रक्षा कर प्रहलाद बचायो । हिरणाकुश को स्वर्ग पठायो ॥ लक्ष्मी रुप धरो जग माही । श्री नारायण अंग समाही ॥ क्षीरसिन्धु में करत विलासा । दयासिन्धु दीजै मन आसा ॥ हिंगलाज में तुम्हीं भवानी । महिमा अमित न जात बखानी ॥ मातंगी धूमावति माता । भुवनेश्वरि बगला सुखदाता ॥ श्री भैरव तारा जग तारिणि । छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी ॥ केहरि वाहन सोह भवानी । लांगुर वीर चलत अगवानी ॥ कर में खप्पर खड्ग विराजे । जाको देख काल डर भाजे ॥ सोहे अस्त्र और तिरशूला । जाते उठत शत्रु हिय शूला ॥ नगर कोटि में तुम्ही विराजत । तिहूं लोक में डंका बाजत ॥ शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे । रक्तबीज शंखन संहारे ॥ महिषासुर नृप अति अभिमानी । जेहि अघ भार मही अकुलानी ॥ रुप कराल कालिका धारा । सेन सहित तुम तिहि संहारा ॥ परी गाढ़ सन्तन पर जब जब । भ‌ई सहाय मातु तुम तब तब ॥ अमरपुरी अरु बासव लोका । तब महिमा सब रहें अशोका ॥ ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी । तुम्हें सदा पूजें नर नारी ॥ प्रेम भक्ति से जो यश गावै । दुःख दारिद्र निकट नहिं आवे ॥ ध्यावे तुम्हें जो नर मन ला‌ई । जन्म-मरण ताको छुटि जा‌ई ॥ जोगी सुर मुनि कहत पुकारी । योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ॥ शंकर आचारज तप कीनो । काम अरु क्रोध जीति सब लीनो ॥ निशिदिन ध्यान धरो शंकर को । काहू काल नहिं सुमिरो तुमको ॥ शक्ति रुप को मरम न पायो । शक्ति ग‌ई तब मन पछतायो ॥ शरणागत हु‌ई कीर्ति बखानी । जय जय जय जगदम्ब भवानी ॥ भ‌ई प्रसन्न आदि जगदम्बा । द‌ई शक्ति नहिं कीन विलम्बा ॥ मोको मातु कष्ट अति घेरो । तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो ॥ आशा तृष्णा निपट सतवे । मोह मदादिक सब विनशावै ॥ शत्रु नाश कीजै महारानी । सुमिरों इकचित तुम्हें भवानी ॥ करौ कृपा हे मातु दयाला । ऋद्घि सिद्घि दे करहु निहाला ॥ जब लगि जियौं दया फल पा‌ऊँ । तुम्हरो यश मैं सदा सुना‌ऊँ ॥ दुर्गा चालीसा जो नित गावै । सब सुख भोग परम पद पावै ॥ देवीदास शरण निज जानी । करहु कृपा मात भवानी ॥ ॥ जय माता दी ॥

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