Thursday, 14 April 2016

हनुमान अष्टक - बाल समय रवि हिंदी अनुवाद

बाल समय रवि भक्षि लियो तब, तीनहुं लोक भयो अंधियारों I ताहि सों त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात न टारो I देवन आनि करी बिनती तब, छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो I को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो I को – १ अनुवाद- हे महावीर स्वामी हनुमानजी! जब आप बालक थे तब आपने सुर्य को फल समझकर निगल लिया थ. इससे तीनों लोकों में अंधकार छा गया था और सारा संसार भयभीत हो गया था. इस संकट को दूर करने में कोई भी समर्थ न हो पा रहा था. चारों ओर से निराश होकर देवताओं ने जब आप से प्रार्थंना की, तब आपने सूर्य को छोड दिया. इस प्रकार उनका और सारे संसार का कष्ट आपने दूर किया. संसार में ऐसा कौन है जो आपके ‘संकट्मोचन’ नाम से परिचित नहीं है. बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि, जात महाप्रभु पंथ निहारो I चौंकि महामुनि साप दियो तब , चाहिए कौन बिचार बिचारो I कै दिव्ज रूप लिवाय महाप्रभु, सो तुम दास के सोक निवारो I को – २ अनुवाद-बालि के भय के कारण कहीं शरण न पाकर वानरराज सुग्रीव छिपकर (ऋष्यमूक) पर्वत पर रहते थे, जहौ मतंग मुनि के शाप के कारण बालि प्रवेश नहीं करता था. महाप्रभु श्रीरामचंद्रजी लक्ष्मणजी के साथ जब सीताजी को खोजते हुए उधर से जा रहे थे, तब सुग्रीव उन्हें बालिका भेजा हुआ योद्धा समझकर भयभीत हो यह विचार करने लगा कि अब क्या करना चाहिए? हे हनुमानजी! तब आप ब्राह्मण का रूप धारण करके भगवान श्रीरामचंद्रजी को वहॉ ले आये. इस प्रकार आपने दास सुग्रीव के महान भय और शोक को दूर किया. संसार में ऐसा कौन है जो आपके ‘संकट्मोचन’ नाम से परिचित नहीं है. अंगद के संग लेन गए सिय, खोज कपीस यह बैन उचारो I जीवत ना बचिहौ हम सो जु , बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो I हेरी थके तट सिन्धु सबे तब , लाए सिया-सुधि प्राण उबारो I को – ३ अनुवाद- सीताजी की खोज के लिये जब वानर अंगद के साथ प्रयाण कर रहे थे, तब वानरराज सुग्रीव ने उन्हें यह आदेश दिया था कि सीताजी का पता लगाये बिना जो यहॉ वापस लौटकर आयेगा, वह मेरे हाथों से जीवित नहीं बचेगा. किंतु बहुत खोजने-ढूँढ्ने के बाद भी जब सीताजी का कहीं पता न लगा, तब सारे वानर जीवन से निराश होकर समुद्र तट पर थककर बैठ गये. उस समय सीताजी का पता लगाकर आपने उन वानरों के प्राणों की रक्षा की. संसार में ऐसा कौन है जो आपके ‘संकट्मोचन’ नाम से परिचित नहीं है. रावण त्रास दई सिय को सब , राक्षसी सों कही सोक निवारो I ताहि समय हनुमान महाप्रभु , जाए महा रजनीचर मारो I चाहत सीय असोक सों आगि सु , दै प्रभुमुद्रिका सोक निवारो I को – ४ अनुवाद- रावण ने माता सीताजी को इतना संताप और कष्ट पहुँचाया था कि उन्होंने सारी राक्षसियो से प्रार्थना की कि मुझे मारकर तुमलोग मेरे शोक का निवारण कर दो. मैं भगवान श्रीरामजी के बिना अब जीना नहीं चाहती. हे महाप्रभु हनुमानजी! उसी समय वहाँ पहुँचकर आपने बडे- बडे राक्षस योद्धाओं का संहार कर दिया. शोक से अत्यन्त संतप्त होकर सीताजी स्वयं को भस्म करने के लिये अशोक वृक्ष से अग्नि की याचना कर रही थी, उसी समय आपने उन्हें भगवान श्रीरामजी की अँगूठी देकर उनके महान शोक का निवारण कर दिया. संसार में ऐसा कौन है जो आपके ‘संकट्मोचन’ नाम से परिचित नहीं है. बान लाग्यो उर लछिमन के तब , प्राण तजे सुत रावन मारो I लै गृह बैद्य सुषेन समेत , तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो I आनि सजीवन हाथ दिए तब , लछिमन के तुम प्रान उबारो I को – ५ अनुवाद- जब रावण–सुत मेघनाद के बाण (वीरघातिनी शक्ति) की चोट से लक्ष्मणजी के प्राण निकलने ही वाले थे, तब आप लंका से सुषेण वैद्य को उसके घर सहित उठा लाये तथा (सुषेण वैद्य के परामर्श से ) द्रोण पर्वत को उखाड्कर संजीवनी बूटी भी ला दी. इस प्रकार आपने लक्ष्मणजी के प्राणों की रक्षा की.,संसार में ऐसा कौन है जो आपके ‘संकट्मोचन’ नाम से परिचित नहीं है. रावन जुद्ध अजान कियो तब , नाग कि फाँस सबै सिर डारो I श्रीरघुनाथ समेत सबै दल , मोह भयो यह संकट भारो I आनि खगेस तबै हनुमान जु , बंधन काटि सुत्रास निवारो I को – ६ अनुवाद- रावण ने युद्ध का (नागास्त्र का) आवाहन करके (घोर युद्ध करते हुए) सारी सेना को नागपाश में बाँध दिया था. इस महान संकट के प्रभाव से प्रभु श्रीरामचंद्रजी समेत सारी सेना मोहित हो गयी थी. किसी को इससे मुक्ति का कोई उपाय न सूझ रहा था. हे हनुमानजी! तब आपने ही गरूड को बुलाकर यह बंधन कटवाया और सबको घोर त्रास से मुक्त किया. संसार में ऐसा कौन है जो आपके ‘संकट्मोचन’ नाम से परिचित नहीं है. बंधू समेत जबै अहिरावन, लै रघुनाथ पताल सिधारो I देबिन्ह पूजि भलि विधि सों बलि , देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो I जाये सहाए भयो तब ही , अहिरावन सैन्य समेत संहारो I को – ७ अनुवाद- अहिरावण जब लक्ष्मणजी के साथ भगवान श्रीरामचंद्रजी को पातालपुरी में उठा ले गया था और वहाँ राक्षसों के साथ बैठकर यह विचार कर रहा था कि भलीभाँति देवी की पूजा करके इनकी बलि चढा दी जाय. तब आपने ही वहाँ पहुँचकर सेनासहित अहिरावण का संहार करके भगवान श्रीराम और लक्ष्मण के सहायक बने.संसार में ऐसा कौन है जो आपके ‘संकट्मोचन’ नाम से परिचित नहीं है. काज किये बड़ देवन के तुम , बीर महाप्रभु देखि बिचारो I कौन सो संकट मोर गरीब को , जो तुमसे नहिं जात है टारो I बेगि हरो हनुमान महाप्रभु , जो कछु संकट होए हमारो I को – ८ अनुवाद- हे परमवीर महाप्रभु हनुमानजी! आप अपने कार्यों को देखकर विचार कीजिए कि आपने देवताओं कि बडे-बडे कठिन कार्यों को पूरा किया है. तब फिर मुझ दीन-हीन का ऐसा कौन सा संकट हो सकता है, जिसे आप दूर नहीं कर सकते ? हे महाप्रभु हनुमानजी! हमारे जो कुछ भी संकट हैं आप उन्हे शीघ्र ही दूर करने की कृपा करं. .संसार में ऐसा कौन है जो आपके ‘संकट्मोचन’ नाम से परिचित नहीं है. दोहा लाल देह लाली लसे , अरु धरि लाल लंगूर I वज्र देह दानव दलन , जय जय जय कपि सूर II अनुवाद-आपकी लाल देह की लाली अत्यन्त शोभायमान हो रही है, आपकी पूँछ भी लाल है. वज्र के समान आपकी सुदृढ देह दानवों का नाश करने वाली है. हे महाशूर हनुमानजी! आपकी जय हो! जय हो!! जय हो!!!

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