कर मेहनत पायी नौकरी सरकारी,
हम भी बन गये बैंक कर्मचारी,
हमे क्या पता था किस्मत ने की है,
पुरजोर पिछवाड़े को लतयाने की तैयारी।
दूर के ढोल सुहवने लगते है,
इस बात की थी हमे जानकारी,
मित्रो अगर कर रहे हो बैंकिंग की तैयारी,
तो ये सूचना आपके लिये जनहित मे है जारी।
जब मिली नौकरी हमें,
हमारा दिमाग का नही ठिकाना था,
उस दिन तोह हर जगहा,
घर, दोस्तो और रिस्तेदारों मे आपना ही फसाना था
जब आया नियुक्ति पत्र,
तब एक झटके मे दिमाग हमारा ठिकाने था,
मिली थी नियुक्ति कई सौ किलोमिटर दूर,
अब तोह वही आने वाले समय बिताना था।
घर की जरुरतों के लिये,
घरवालो को ही छोड दिया,
अब तोह हमने अपना रिस्ता,
सिर्फ बैंक से ही जोड़ लिया,
जाने का है समय बैंक मे,
आने का न कोई समय दिया,
अधिकारी बना कर हमे,
हर अधिकार से ही मुक्त किया।
समस्याएँ है कितनी,
कितनों को वर्णित करुँ,
लिख रहा हू इस बारे मे,
चलो कही से तोह शुरु करुँ,
गलती ना होने पर भी,
यहाँ ग्राहक गुर्रता है,
ये वही है जो अन्य सरकारी विभाग मे,
मुहँ तक नही खोल पाता है,
छोटे- छोटे ऋण के लिये भी,
यहाँ जवाबदेही निकली जाती है,
कुछ अच्छा अगर कर जाओ तो,
संदेहपद नज़रे हो जाती है,
हमारा तोह संघ भी अजब खेल खेलता है,
चमचो को पास और असल कर्मी को दूर धकेलता है,
बैंक प्रबंधन भी गजब खेल रचाता है,
रविवार को ही ऋण मेला सजाता है,
देखा जाये तोह यहाँ,
अर्जित अवकाश भी कम नही होता,
पर उन अवकाश को प्रतिबंध,
करने का किसी मे दम नही होता,
सरकार भी सारे गैर-लाभकारी कार्य,
बैंक से करवाती है,
तन्ख्वाह की बात आये तो,
पता नही बात कहाँ से लाभ की आजाती है,
काम के बोझ के बिना,
उपर का वर्णन ही अधूरा है,
हर एक करमचारी के उपर रखा,
जैसे सौ मन का बोरा है।
सिर्फ दुख ही नही,
बहुत सुख भी इसी नौकरी मे पाया है,
जब भी किसी गरीब ने कहा,
मेरा ये काम सिर्फ आप की बदौलत हो पाया है।
उपर बयां हर दर्द,
फ़ना हो जाता है,
जब हमारे किये काम से,
किसी को घर और किसी को धन्धा मिल जाता है।
चाहे कितना भी काम हो,
उसे पूरी जान से निभाते है,
हमे भी सम्मानजनक तन्ख्वाह मिले,
बस इतना ही तो चाहते है।
एक कविता मेरे द्वारा हम सब बैंक कर्मियों को समर्पित
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