Wednesday, 7 February 2018

Repo rate, reverse repo rate, CRR

रिर्वस रेपों रेट क्या होता है – Reverse repo rate meaning ?


सामान्य अवस्था में Normally जब RBI commercial banks को पैसे उधार देती है तब उस प्रक्रिया में जो ब्याज दर लगाया जाता है वह repo rate कहा जाता है। पर जब RBI स्वयं banks के पास से पैसे उधार लेता है तब जो ब्याज दर वह बैंक को चुकाता है वह ब्याज दर reverse repo rate कहा जाता है।


रीपो रेट 
बैंकों को अपने दैनिक कामकाज के लिए प्राय: ऐसी बड़ी रकम की जरूरत होती है जिनकी मियाद एक दिन से ज्यादा नहीं होती। इसके लिए बैंक जो विकल्प अपनाते हैं, उनमें सबसे सामान्य है केंद्रीय बैंक (भारत में रिजर्व बैंक) से रात भर के लिए (ओवरनाइट) कर्ज लेना। इस कर्ज पर रिजर्व बैंक को उन्हें जो ब्याज देना पड़ता है, उसे ही रीपो दर कहते हैं। 

रीपो रेट कम होने से बैंकों के लिए रिजर्व बैंक से कर्ज लेना सस्ता हो जाता है और इसलिए बैंक ब्याज दरों में कमी करते हैं, ताकि ज्यादा से ज्यादा रकम कर्ज के तौर पर दी जा सके। रीपो दर में बढ़ोतरी का सीधा मतलब यह होता है कि बैंकों के लिए रिजर्व बैंक से रात भर के लिए कर्ज लेना महंगा हो जाएगा। साफ है कि बैंक दूसरों को कर्ज देने के लिए जो ब्याज दर तय करते हैं, वह भी उन्हें बढ़ाना होगा।


रिवर्स रीपो दर 
नाम के ही मुताबिक रिवर्स रीपो दर ऊपर बताए गए रीपो दर से उलटा होता है। बैंकों के पास दिन भर के कामकाज के बाद बहुत बार एक बड़ी रकम शेष बच जाती है। बैंक वह रकम अपने पास रखने के बजाय रिजर्व बैंक में रख सकते हैं, जिस पर उन्हें रिजर्व बैंक से ब्याज भी मिलता है। जिस दर पर यह ब्याज मिलता है, उसे रिवर्स रीपो दर कहते हैं। 

अगर रिजर्व बैंक को लगता है कि बाजार में बहुत ज्यादा नकदी है, तो वह रिवर्स रीपो दर में बढ़ोतरी कर देता है, जिससे बैंक ज्यादा ब्याज कमाने के लिए अपना धन रिजर्व बैंक के पास रखने को प्रोत्साहित होते हैं और इस तरह उनके पास बाजार में छोड़ने के लिए कम धन बचता है। 

कैश रिजर्व रेश्यो (सीआरआर) 
सभी बैंकों के लिए जरूरी होता है कि वह अपने कुल कैश रिजर्व का एक निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास जमा रखें। इसे नकद आरक्षी अनुपात कहते हैं। ऐसा इसलिए होता है कि अगर किसी भी मौके पर एक साथ बहुत बड़ी संख्या में जमाकर्ता अपना पैसा निकालने आ जाएं तो बैंक डिफॉल्ट न कर सके। 

आरबीआई जब ब्याज दरों में बदलाव किए बिना बाजार से तरलता कम करना चाहता है, तो वह सीआरआर बढ़ा देता है। इससे बैंकों के पास बाजार में कर्ज देने के लिए कम रकम बचती है। इसके उलट सीआरआर को घटाने से बाजार में मनी सप्लाई बढ़ जाती है। लेकिन रीपो और रिवर्स रीपो दरों में कोई बदलाव नहीं किए जाने से कॉस्ट ऑफ फंड पर कोई असर नहीं पड़ता। रीपो और रिवर्स रीपो दरें रिजर्व बैंक के हाथ में नकदी की सप्लाई को तुरंत प्रभावित करने वाले हथियार माने जाते हैं, जबकि सीआरआर से नकदी की सप्लाई पर तुलनात्मक तौर पर ज्यादा समय में असर पड़ता है।

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