Friday, 23 February 2018

बजरंग बाण

(दोहा)


निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करैं सनमान। तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान।।


(चौपाई)


जय हनुमन्त सन्त-हितकारी। सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी।।


जन के काज विलम्ब न कीजे। आतुर दौरि महा सुख दीजै।।


जैसे कूदि सिन्धु बहि पारा। सुरसा बदन पैठि विस्तारा।।


आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुर लोका।।


जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परम पद लीन्हा।।


बाग उजारि सिन्धु मंह बोरा। अति आतुर यम कातर तोरा।।


अक्षय कुमार को मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा।।


लाह समान लंक जरि गई। जै जै धुनि सुर पुर में भई।।


अब विलंब केहि कारण स्वामी। कृपा करहु प्रभु अन्तर्यामी।। जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता। आतुर होई दुख करहु निपाता।।


जै गिरधर जै जै सुख सागर। सुर समूह समरथ भट नागर।। ॐ हनु-हनु-हनु हनुमंत हठीले। वैरहिं मारु बज्र सम कीलै।।


गदा बज्र तै बैरिहीं मारौ। महाराज निज दास उबारों।। सुनि हंकार हुंकार दै धावो। बज्र गदा हनु विलंब न लावो।।


ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुँ हुँ हुँ हनु अरि-उर शीसा।। सत्य होहु हरि सत्य पाय कै। राम दूत धरु मारु धाई कै।।


जै हनुमंत अनन्त अगाधा। दुःख पावत जन केहि अपराधा।। पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत कछु दास तुम्हारा।।


वन उपवन मग गिरि गृह माही। तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं।। पॉय परौं कर जोरि मनावौं। अपने काज लागि गुण गावौं।।


जै अंजनी कुमार बलवंता। शंकर सुवन वीर हनुमंता।। बदन कराल दनुज कुल घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक।।


भूत प्रेत पिशाच निशाचर। अग्नि बैताल काल मारी मर।। इन्हहिं मारु, तोहिं शपथ राम की। राखु नाथ मर्याद नाम की।।


जनक सुता पति दास कहाओ। ताकि शपथ विलंब न लाओ।। जय जय जय धुनि होत अकाशा। सुमिरत होत दुसह दुःख नाशा।।


चरन पकरि कर जोरि मनावौ। यहि अवसर अब केहि गोहरावौ।। उठु उठु चल तोहि राम दोहाई। पॉय परों कर जोरि मनाई।।


ॐ चं चं चं चं चपल चलंता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनु हनुमंता।। ॐ हं हं हांक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल दल।।


अपने जन को तुरत उबारौ। सुमिरत होत आनंद हमारौ।। ताते विनती करौं पुकारी। हरहु सकल दुःख विपति हमारी।।


ऐसौ बल प्रभाव प्रभु तोरा। कस न हरहु दुःख संकट मोरा।। हे बजरंग, बाण सम धावौ। मेटि सकल दुःख दरस दिखावौ।।


हे कपिराज काज कब ऐहौ। अवसर चूकि अंत पछतैहौ।। जनकी लाज जात ऐहि बारा। धावहु हे कपि पवन कुमारा।।


जयति जयति जै जै हनुमाना। जयति जयति गुण ज्ञान निधाना।। जयति जयति जै जै कपिराई। जयति जयति जै जै सुखदाई।।


जयति जयति जै राम पियारे। जयति जयति जै सिया दुलारे।। जयति जयति मुद मंगलदाता। जयति जयति जय त्रिभुवन विख्याता।।


ऐहि प्रकार गावत गुण शेषा। पावत पार नहीं लवलेशा।। राम रुप सर्वत्र समाना। देखत रहत सदा हर्षाना।।


विधि शारदा सहित दिन राति। गावत कपि के गुन बहु भॅाति।। तुम सम नहीं जगत बलवाना। करि विचार देखउं विधि नाना।।


यह जिय जानि शरण तब आई। ताते विनय करौं चित लाई।। सुनि कपि आरत वचन हमारे। मेटहु सकल दुःख भ्रम सारे।।


ऐहि प्रकार विनती कपि केरी। जो जन करे लहै सुख ढेरि।। याके पढ़त वीर हनुमाना। धावत बांण तुल्य बलवाना।।


मेटत आए दुःख क्षण माहीं। दै दर्शन रघुपति ढिग जाहीं।। पाठ करै बजरंग बाण की। हनुमत रक्षा करै प्राण की।।


डीठ, मूठ, टोनादिक नासै। पर - कृत यंत्र मंत्र नहिं त्रासे।। भैरवादि सुर करै मिताई। आयुस मानि करै सेवकाई।।


प्रण कर पाठ करें मन लाई। अल्प - मृत्युग्रह दोष नसाई।। आवृत ग्यारह प्रति दिन जापै। ताकि छाह काल नहिं चापै।।


दै गूगुल की धूप हमेशा। करै पाठ तन मिटै कलेषा।। यह बजरंग बाण जेहि मारे। ताहि कहौ फिर कौन उबारै।।


शत्रु समूह मिटै सब आपै। देखत ताहि सुरासुर कॉपै।। तेज प्रताप बुद्धि अधिकाई। रहै सदा कपिराज सहाई।।


(दोहा) प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै, सदा धरैं उर ध्यान। तेहि के कारज तुरत ही, सिद्ध करैं हनुमान।।


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