Wednesday, 7 November 2018

कुबेर चालीसा

ॐ यक्षराजाय विद्महे । वै श्रवणाय धिमही ।


तन्नो कुबेर प्रचोदयात ॥

ॐ श्री कुबेराय नमः धनम् देहि देहि ।


रुणा पहारं कुरु कुरु स्वाहा ।


चालीसा


दोहा


जैसे अटल हिमालय और जैसे अडिग सुमेर ।


ऐसे ही स्वर्ग द्वार पे, अविचल खडे कुबेर ।


विघ्न हरण मंगल करण, सुनो शरणागत की टेर ।


भक्त हेतु वितरण करो, धन माया के ढेर ॥

पाठ


जै जै जै श्री कुबेर भंडारी ।


धन माया के तुम अधिकारी ।।


तप तेज पुंज निर्भय भय हारी ।


पवन बेग सम तनु बलधारी ।।

स्वर्ग द्वार की करे पहरे दारी ।


सेवक इन्द्र देव के आज्ञा कारी ।।


यक्ष यक्षणी की है सेना भारी ।


सेनापती बने युद्ध में धनुधारी ।।

महा योद्धा बन शस्त्र धारै ।


युद्ध करै शत्रु को मारै ।।


सदा विजयी कभी ना हारै ।


भगत जनों के संकट टारै ।।

प्रपितामह हैं स्वयं विधाता ।


पुलिस्त वंश के जन्म विख्याता ।।


विश्रवा पिता इडापिडा जी माता ।


विभिषण भगत आपके भ्राता ।।

शिव चरणों में जब ध्यान लगाया ।


घोर तपस्या करी तन को सुखाया ।।


शिव वरदान मिले देवत्व पाया ।


अम्रूत पान करी अमर हुई काया ।।

धर्म ध्वजा सदा लिए हाथ में ।


देवी देवता सब फिरैं साख में ।।


पीताम्बर वस्त्र पहरे गात में ।


बल शक्ति पुरी यक्ष जात में ।।

स्वर्ण सिंघासन आप विराजैं ।


त्रशुल गदा हाथ में साजैं ।।


शंख म्रुदंग नगारे बाजैं ।


गंधर्व राग मधुर स्वर गाजैं ।।

चौंसठ योगनी मंगल गावैं ।


रिद्धी सिद्धी नित भोग लगावैं ।।


दास दासनी सिर छत्र फिरावैं ।


यक्ष यक्षणी मिल चंवर ढुलावैं ।।

रिषियों में जैसे परशुराम बली हैं ।


देवन्ह में जैसे हनुमान बली हैं ।।


पुरुषों में जैसे भीम बली हैं ।


यक्षों में ऐसे ही कुबेर बली हैं ।।

भगतों में जैसे प्रल्हाद बडे हैं ।


पक्षियो में जैसे गरुड बडे हैं ।।


नागो मे जैसे शेष बडे हैं ।


वैसे ही भगत कुबेर बडे हैं ।।

कांधे धनुष हा में भाला ।


गल फुलो की पहरी माला ।।


स्वर्ण मुकुट अरु देह विशाला ।


दुर दुर तक होए उजाला ।।

कुबेर देव को जो मन में धारे ।


सदा विजय हो कभी ना हारे ।।


बिगडे काम बन जाए सारे ।


अन्न धन के रहे भरे भन्डारे ।।

कुबेर गरीब को आप उभारैं ।


कुबेर कर्ज को शीघ्र उतारैं ।।


कुबेर भगत के संकट टारैं ।


कुबेर शत्रु को क्षण में मारैं ।।

शीघ्र धनी जो होना चाहए ।


क्युं नही यक्ष कुबेर मनाए ।।


यह पाठ जो पढे पढाए ।


दिन दुगना व्यापार बढाए ।।

भूत प्रेत को कुबेर भगावैं ।


अडे काम को कुबेर बनावैं ।।


रोग शोक को कुबेर नशावैं ।


कलंक कोढ को कुबेर हटावैं ।।

कुबेर चढे को और चढादे ।


कुबेर गिरे को पुनः उठादे ।।


कुबेर भाग्य को तुरन्त जगादे ।


कुबेर भुले को राह बतादे ।।

प्यासे की प्यास कुबेर बुझादे ।


भुखे की भुख कुबेर मिटादे ।।


रोगी का रोग कुबेर घटादे ।


दुखिया क दुख कुबेर छुटादे ।।

बांझ की गोद कुबेर भरादे ।


कारोबार को कुबेर बढादे ।।


कारागार से कुबेर छुडादे ।


चोर ठगों से कुबेर बचादे ।।

कोर्ट केस में कुबेर जितावैं ।


जो कुबेर को मन में ध्यावै ।।


चुनाव में जीत कुबेर करावै ।


मंत्री पद पर कुबेर बिठावैं ।।

पाठ करे जो नित मन लाई ।


उसकी कला हो सदा सवाई ।।


जिसपे प्रसन्न कुबेर की माई ।


उसका जीवन चले सुखदाई ।।

जो कुबेर का पाठ करावै ।


उसका बेडा पार लगावै ।।


उजडे घर को पुनः बसावै ।


शत्रु को भी मित्र बनावै ।।

सहस्त्र पुस्तक जो दान कराई ।


सब सुख भोग पदार्थ पाई ।।


प्राण त्याग कर स्वर्ग में जाई ।


क्रुष्णदत्त कुबेर कीर्ती गाई ।।

दोहा

शिव भक्तों में अग्रणी, श्री यक्षराज कुबेर ।


हिरदे मे ज्ञान प्रकाश भर, करदो दूर अंधेर ।।


करदो दूर अंधेर अब, जरा करो ना देर ।


शरण पडा हुं आपकी, दया की द्रुष्टी फेर ।।


हरी ॐ दया की द्रुष्टी फेर


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