Tuesday, 16 August 2016
हनुमान द्वारा माता सीता की खोज
माता सीता की खोज
समुद्र लांघने के बाद हनुमान जब लंका पहुंचे तो लंका के द्वार पर ही लंकिनी नामक राक्षसी से उन्हें रोक लिया। हनुमानजी ने उसे परास्त कर लंका में प्रवेश किया। हनुमानजी ने माता सीता को बहुत खोजा, लेकिन वह कहीं भी दिखाई नहीं दी। फिर भी हनुमानजी के उत्साह में कोई कमी नहीं आई।
मां सीता के न मिलने पर हनुमानजी ने सोचा कहीं रावण ने उनका वध तो नहीं कर दिया, यह सोचकर उन्हें बहुत दु:ख हुआ। लेकिन इसके बाद भी वे लंका के अन्य स्थानों पर माता सीता की खोज करने लगे। अशोक वाटिका में जब हनुमानजी ने माता सीता को देखा तो वे अति प्रसन्न हुए। इस प्रकार हनुमानजी ने यह कठिन काम भी बहुत ही सहजता से कर दिया।
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अक्षयकुमार का वध व लंका दहन
माता सीता की खोज करने के बाद हनुमानजी ने उन्हें भगवान श्रीराम का संदेश सुनाया। इसके बाद हनुमानजी ने अशोक वाटिका को तहस-नहस कर दिया। ऐसा हनुमानजी ने इसलिए किया क्योंकि वे शत्रु की शक्ति का अंदाजा लगा सकें। जब रावण के सैनिक हनुमानजी को पकड़ने आए तो उन्होंने उनका वध कर दिया।
तब रावण ने अपने पराक्रमी पुत्र अक्षयकुमार को भेजा, हनुमानजी ने उसको भी मार दिया। हनुमानजी ने अपना पराक्रम दिखाते हुए लंका में आग लगा दी। पराक्रमी राक्षसों से भरी लंका में जाकर माता सीता को खोज करना व राक्षसों का वध कर लंका को जलाने का साहस हनुमानजी ने बड़ी ही सहजता से कर दिया।
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विभीषण को अपने पक्ष में करना
श्रीरामचरित मानस के अनुसार, जब हनुमानजी लंका में माता सीता की खोज कर रहे थे, तभी उनकी मुलाकात विभीषण से हुई। रामभक्त हनुमान को देखकर विभीषण बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने पूछा कि- क्या राक्षस जाति का होने के बाद भी श्रीराम मुझे अपनी शरण में लेंगे। तब हनुमानजी ने कहा कि- भगवान श्रीराम अपने सभी सेवकों से प्रेम करते हैं।
जब विभीषण रावण को छोड़कर श्रीराम की शरण में आए तो सुग्रीव, जामवंत आदि ने कहा कि ये रावण का भाई है। इसलिए इस पर भरोसा नहीं करना चाहिए। उस स्थिति में हनुमानजी ने ही विभीषण का समर्थन किया था। अंत में, विभीषण के परामर्श से ही भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया।
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राम-लक्ष्मण के लिए पहाड़ लेकर आना
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, युद्ध के दौरान रावण के पुत्र इंद्रजीत ने ब्रह्मास्त्र चलाकर भगवान श्रीराम व लक्ष्मण को बेहोश कर दिया। तब ऋक्षराज जामवंत ने हनुमानजी से कहा कि तुम शीघ्र ही हिमालय पर्वत जाओ, वहां तुम्हें ऋषभ व कैलाश शिखर दिखाई देंगे।
उन दोनों के बीच में एक औषधियों का पर्वत है, तुम उसे ले आओ। जामवंतजी के कहने पर हनुमानजी तुरंत उस पर्वत को लेने उड़ गए। अपनी बुद्धि और पराक्रम के बल पर हनुमान औषधियों का वह पर्वत समय रहते उठा आए। उस पर्वत की औषधियों की सुगंध से ही राम-लक्ष्मण व करोड़ों घायल वानर पुन: स्वस्थ हो गए।
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