Saturday, 21 November 2015

हनुमान बाहुक

गुरु वंदना सिन्धु-तरन सिय-सोच-हरन,रबी-बाल बरन-तनु| भुज बिसाल,मूरत कराल कालहुको काल जनु|| गोस्वामी तुलसी दास गहन-दहन निरदहन लंक नि:संक बंक-भुव| जातुधान-बलवान-मान मद-दवन पवंनसुव|| कह तुलसीदास सेवत सुलभ सेवक हित संतत निकट| गुनगनत,नमत,सुमिरत,जपत समन-सकल संकट-बिकट||१|| स्वर्न-सैल-संकास कोटि-रबि-तरुन तेज-धन| उर बिसाल,भुजदंड चंड नख बज्र बजतन|| पिंग नयन,भ्रकुटी कराल रसना दसनासन| कपिस केस करकस लंगूर,खल-बल भानन|| कह तुलसीदास बस जासु उर मारुतसुत मूरति बिकट| संताप पाप तेहि पुरुष पहिं सपनेहुँ नहीं आवत निकट||२|| झूलना पंचमुख-छमुख-भ्रगुमुख्य भट-असुर-सुर , सर्व-सरि-समर समरत्य सुरों| बांकुरो बीर बिरुदेत बिरुदावली , बेद बंदी बदत पैजपुरो|| जासु गुनगाथ रघुनाथ कह,जासु बल, बिपुल-जल-भरित जग-जलधि झुरो| दुवन-दल-दमनको कौन तुलसीस है, पवनको पूत राजपूत रुरो||२|| धनाक्षरी भानुसों पढ़न हनुमान गये भानु मन अनुमान ससुकेली कियो फेरफार सो| पाहिले पगनि गम गगन मगन-मन, क्रमको न भ्रम,कपि बालक-बिहार सो|| कौतुक बिलोक लोकपाल हरिहर बिधि लोचननी चकाचौधि चित्तनी खभार सो| बल कैंधों बीररस,धीरज कै,साहस कै, तुलसी सरीर धरे सबनिको सार सो||४|| भारतमें पारथके रथकेतु कपिराज, गाज्यो सुनि कुरुराज दल हलबल भो| कह्यो द्रोंन भीषम समिरसुत महाबीर बीर-रस बारि-निधि जाको बल जल भो| बानर सुभाय बालकेलि भूमि भानु लागि, फलन्ग फलान्गहुते धाती नभतल भो| नाइ –नाइ माथ जोरि-जोरि हाथ जोधा जोहें, हनुमान देखे जगजीवनको फल भो||५|| हनुमान जी गोपद पयोधि करि होलिका ज्यों लाई लंक, निपट निसंक परपुर गलबल भो| द्रोंन-सो पहार लियो ख्याल ही उखारि कर, कंदुक-ज्यों कपिखेल बेल कैसो फल भो|| साहसी समत्य तुलसीको नाह जाकी बाँह, लोकपाल पालनको फिर थिर थल भो||६|| कमठकी पीठि जाके गोडनंकी गाड़ने मानो नापके भाजन भरि जलनिधि-जल भो| जातुधान-दावन परावनको दुर्ग भयो, महामीनबास तिमी तोमानिको थल भो|| कुंभकरन-रावन-पयोधनाद-ईधनको तुलसी प्रताप जाको प्रबल अनल भो| भीषम कहत मेरे अनुमान हनुमान सरिको त्रिकाल न त्रिलोक महाबल भो||७|| दूत रामरायको,सपूत पूत पौनको,तू अंजनीको नंदन प्रताप भूरि भानु सो| सीय-सोच-समन,दुरित-दोष-दमन, सरन आये अवन,लखनप्रिय प्रान सो|| दसमुख दुसह दरिद्र दरिबेको भयो, प्रकट तिलोक ओक तुलसी निधान सो| ज्ञान-गुनवान बलवान सेवा सावधन, साहेब सुजन उर आनु हनुमान सो||८|| दवन-दुवन-दल भुवन-बिदित बल, बेद जस गावत बिबुध बंदीछोर को| पाप-ताप-तिमिर तुहिन-विघटन-पटु, सेवक-सरोरूह सुखद भानु भोरके|| रामको दुलारों दास बामदेवको निवास, नाम कलि-कामतरु केसरी-किसोरको||९|| महाबीर बिदित बरायो रघुबीरको| कुलिस-कठोरतनु जोरपरे रोर रन, करुना-कलित मन धारमिक धीरको| दुर्जनको कालसो कराल पाल सज्जनको, सुमिरे हरनहार तुलसीकी पीरको, सीय-सुखदायक दुलोरो रघुनाथको, सेवक सहायक है साहसी समीरको||१०|| रचिबेको बिधि जैसे,पालिबेको हरि,हर मीच मरिबेक.ज्याइबेको सुधापान भो, धरिबेको धरनि,तरनि तम दलिबेको, सोखिबे कृसानु,पोशिबेको हिम-भानु भो|| खल-दुख दोषिबेको,जन-परितोषिबेको, मंगिबो मलिनताको मोदक सुदान भो| आरतीकी आरति निवारिबेको तिहूँ पुर, तुलसीको साहेब हठीलो हनुमान भो||११|| सेवक स्योकाई जनि जानकीस मानें कनि. सानुकूल सूलपानि नवें नाथ नाँकको| देवी देव दानव दयावाने हैंव नाथ. बापुरे बराक कहा और राजा रांकको|| जागत सोवत बैठे बागत बिनोद मोद, ताकै जो अनर्थ सो समर्थ एक आँकको| सब दिन रूरो परे पुरो जहाँ-तहां ताहि. जाके है भरोसे हिये हनुमान हांकको||१२|| सानुग सगौरि सानुकूल सूलपानि ताहि, लोकपाल सकल लखन राम जानकी| लोक परलोकको बिसोक सो तिलोक ताहि, तुलसी तमाइ कहा काहू बीर आनकी|| केसरीकिसोर बंदीछोरके नेवाजे सब, कीरति बिमल कपि करुनानिधानकी| बालक ज्यों पलिहें कृपालु मुनि सिद्ध ताको, जाके हिये हुलसति हांक हनुमानकी||१३|| करुना निधान,बलबुद्धिके निधान मोद महिमानिधान,गुन-ज्ञानके निधान हौं | बामदेव-रूप भूप रामके सनेही,नाम लेत देत अर्थ धर्म काम निरबान हौं || आपने प्रभाव सीतानाथके सुभाव सील, लोक-बेद बिधिके बिदुष हनुमान हौं| मंकी,बचनकी करमकी तिहूँ प्रकार, तुलसी तिहारो तुम साहेब सुजन हौं||१४|| मनको अगम,तन सुगम किये कपीस, काज महाराजके समाज साज साजे हैं| देव-बंदीछोर रनरोर केसरीकिसोर, जुग-जुग जग तेरे बिरद बिराजे हैं|| बीर बरजोर,घटि जोर तुलसीकी ओर सुन सकुचाने साधु,खलगन गाजे हैं| बिगरी संवार अंजनीकुमार कीजे मोहिं, जैसे होत आये हनुमानके निवाजे हैं||१५|| सवैया जानसिरोमनि होँ हनुमान सदा जनके मन बास तिहोरो| ढारो बिगारो मैं काको कहा केहि कारन खीझत हों तो तिहारो|| साहेब सेवक नाते ते हातो कियो सो तहां तुलसी न चारो| दोष सुनाये ते आगेहुँको होशियार ह्वों हों मन टों हिय हारो||१६|| तेरे थपे उथपे न महेश,थापें थिरको कपि जे घर घाले| तेरे निवाजे गरीबनिवाज बिराजित बेरिनके साले|| संकट सोच सबै तुलसी लिये नाम फटे मकरीके से जाले| बूढ़ भये,बलि,मोरिही बार,कि हरि परे बहुतै नत पाले||१७|| सिंधु तरे,बड़े बीर दले खल,जारे जारे हैं लंकसे बंक मवा से| तेन् रन-केहरि केहरिके बिदले अरि-कुंजर छैल छवा से|| टोसों समत्थ सुसाहिब सेई सहे तुलसी दुख दोष दवासे| बानर बाज बढे खल-खेचर;लीजत क्योँ न लपेटि लवा-से||१८|| अच्छ-बिमर्दन कानन-भानि दसानन आनन भा न निहारो| बारिदनाद अकंपन कुंभकरन्न-से कुंजर केहरि-बारो|| राम प्रताप-हुतासन.कच्छ,बिपच्छ,समीर समीरदुलारों| पापतें,सापतें,ताप तिहूँते सदा तुलसी कहँ सो रखवारो||१९|| धनाक्षरी जानत जहान हनुमानको निवाज्यौ जन, मन अनुमान; बलि;बोल न बिसारिये| सेवा-जोग तुलसी कबहूँ कहा चुक परी, साहेब सुभाव कपि साहिबी संभारिये|| अपराधी जनि कीजे सासति सहस भांति, मोदक मरै जो, ताहि माहुर न मारिये| साहसी समिरके दुलारे रघुबीरजूके, बाँह पीर महाबीर बेगि ही निवारिये||२०|| बालक बिलोकि, बलि, बारेटें आपनो कियो, दीनबंधु दया कीन्ही निरुपाधि न्यारिये| रावरो भरोसो तुलसीके, रावरोई बल, आस रावरीयै, दास रावरो बिचारिये|| बड़ो बिकराल कलि, काको न बिहाल कियो, माथे पगु बालीके, निहारि सो निवारिये| केसरीकिसोर, रनरोर, बरजोर बीर, बाहुँपीर राहुमातु ज्यों पछारि मारिये||२१|| उथपे थपनिथिर थपे उथपनहार, केसरीकुमार बल आपनो संभारिये| रामके गुलामनिको कामतरु रामदूत, मोसे दीन दुबरेको तकिया तिहारिर्ये|| साहेब समर्थ तोसों तुलसीके माथे पर, सोऊ अपराध बिनु बीर, बाँधि मारिये| पोखरी बिसाल बांहु, बलि बारिचर पीर, मकरी ज्यौ पकरिके बदन बिदारिये||२२| रामको सनेह, राम साहस लखन सिय. रामकी भगति, सोच संकट निवारिये| मुद-मरकट रोग-बारिनिधि हेरि हारे, जीव-जामवंतको भरोसे तेरो भरिये|| कूदिये कृपाल तुलसी सप्रेम-पब्बयते, सुथल सुबेल भालु बेठिकें बिचारिये| महाबीर बाँकुरे बराकी बांहपीर क्योँ न, लंकिनी ज्यों लातघात ही मरोरि मारिये||२३|| लोक-परलोकहूँ तिलोक न बिलोकियत, तोसे समरथ चष चारिहूँ निहारिये| कर्म, काल लोकपाल, अग-जग जीवलाल, नाथ हाथ सब निज महिमा बिचारिये|| खास दास रावरो, निवास तेरो तासु उर, तुलसी सो देव दुखी देखियत भारिये| बात तरुमुल बांहुसूल कपिकच्छु-बेलि, उपजी सकेलि कपिकेलि ही उखारिये||२४|| करम-कराल कंस भुमिपालके भरोसे, बकी बकभगिनी काहूतें कहा डरेगी| बड़ी बिकराल बालघतिनी न जात कहि, बांहुबल बालक छबीले छोटे छारैगी| आई है बनाइ बेष आप ही बिचारि देख पाप जाय सबको गुनीके पाले परैगी| पूतना पिसाचिनी जयों कपिकान्ह तुलसीकी, बांह्पीर महाबीर, तेरे मारे मरेगी||२५|| भालकी कि कालकी कि रोषकी त्रिदोषकी है, बेदन बिषम पाप-ताप छलछान्हकी| करमन कूतकी कि जंत्रमंत्र बूटकी, पराहीं जाहि पपिनी मलीन मनमान्ह्की| पैहही सजाय नत कहत बजाय तोहि, बावरी न होहि बानि जानि कापीनान्ह्की| आन हनुमानकी दोहाई बलवानकी, सपथ महाबीरकी जो रहै पीर बान्हकी||२६|| सिंहका संहारि बल, सुरसा सुधारि छल, लंकिनी पछारि मारि बाटिका उजारी है| लंक परजारि मकरी बिदारि बारबार, जातुधान धारि धूरिधानी करि डारी है|| तोरि जमकातरी मदोदरी कढोरी आनी, रावनकी रानी मेगनाद मह्न्तारी है| भीर बान्हपीरकी निपट राखी महाबीर, कौनके सकोच तुलसीके सोच भारी है||२७|| तेरो बालकेलि बीर सुनि सहमत धीर, भूलत सरीरसुधि सक्र-रबि रहुकी| तेरी बाँह बसत बिसोंक लोकपाल सब, तेरो नाम लेट रहै आरति न कहुकि|| सैम दान भेद बिधि बेदहू लबेद सिधि, हाथ कपिनाथहीके चोटी चोर साहुकी| आलस अनख परिहासकै सिखावन है, एते दिन रही पीर तुलसीके बहुकी||२८|| तुकनिको घर-घर डोलत कंगाल बोलि, बाल जयों कृपाल नतपाल पालि पोसो है| कीन्ही है संभार सार अंजनीकुमार बीर, आपनो बिसारिहै मेरेहू भरोसो है|| इतनो परेखो सब भांति समरथ आजु, कपिराज साँची कहों को तिलोक तोसो है| सासति सहत दास कीजे पेखि परिहास, चारिको मरन खेल बालकनिको सो है||२९|| आपने ही पापते त्रितापतें कि सपतें, बढ़ी है बान्हबेदन कही न सहि जाति है| औशध अनेक तंत्र-मंत्र-टोटकादि किये, बादी भये देवता मनाये अधिकाति है|| करतार, भरतार,हरतार, कर्म, काल, को है जगजाल जो न मानत इताति है| चेरो तेरो तुलसी तू मेरो कह्यो रामदूत, ढील तेरी बीर मोहि पीरतें पिराति है||३०|| दूत रामरायको, सपूत सपूत पूत बायको, समत्थ हाथ पायको सहाय असहायको, बांकी बिरदावली बिरदवाली बिदित बेद गाइयत, रावन सो भट भयो मुठिकाके घायको|| एते बड़े साहेब समर्थकों निवाजो आज, सीदत सुसेवक बचन मन कायको| थोर्री बान्हपीरकी बड़ी गलानि तुलसीको, कौन पाप कोप, लोप प्रगट प्रभायको||३१|| देवी देव दनुज मनुज मुनि सिद्ध नाग, छोटे बड़े जीव जेते चेतन अचेत हैं| पूतना पिसाची जातुधानी जातुधान बाम, रामदूतकी रजाई माथे मानि लेट हैं, घोर जंत्र मंत्र कूट कपट करोग जोग, हनुमान आन सुनि छाडत निकेत हैं| क्रोध कीजे कर्मको प्रबोध कीजे तुलसीको, सोध कीजे तिनको जो दोष दुख देत हैं||३२|| तेरे बल बानर जिताये रन रावनसों, तेरे घाले जातुधान भये घर-घरके, तेरे बल रामराज किये सब सुरकाज, सकल समाज साज साजे रघुबरके|| तेरो गुनगान सुनि गीरबान पुलकत, सजल बिलोचन बिरंचि हरि हरके| तुलसीके माथेपर हाथ फेरो कीसनाथ, देखिये न दास दुखी तोसे कनिगरके||३३|| पालो तेरे टूकको परेहू चूक मुकिये न, कूर कौड़ी दूको हौं आपनी ओर हेरिये| भोरनाथ भोरेही सरोष होत थोरे दोष, पोषि तोषि थापि आपनो न अवड़ेरिये|| अंबु तू ह्यों अंबुचर,अंब तू ह्यों डिंभ, सो न, बूझिये बिलंब अबलंब मेरे तेरिये| बालक बिकल जानि पाहि प्रेम पहिचानि, तुलसीकी बाँह पर लामीलूम फेरिये||३४|| घेरि लियो रोगनि कूजोगनी कुलोगनि ज्यौं, बासर जलद घन घटा धुकि धाई है| बरसत बारि पीर जारिये जवासे जस, रोष बिनु दोष धूम-मूल मलिनोई है|| करूनानिधान हनुमान महाबलवान, हेरि हँसी हाँकि फुँकी फौजे तैँ उड़ाई है| खाये हुतो तुलसी कुरोग राढ़ राकसनी, केसरीकिसोर राखे बीर बरिआई है||३५|| सवैया रामगुलाम तुही हनुमान गोसांई सुसाइ सदा अनुकुलो| पाल्यो होँ बाल ज्यों आखर दू पितु मातु सों मंगल मोद समूलो|| बांहकी बेदन बन्हपगार पुकारत आरत आंनद भूलो| श्रीरघुबीर निवारिये पीर रहोँ दरबार परो लटि लूलो||३६|| घनाक्षरी कालकी करालता करम कठिनाई कीधोँ, पापके प्रभावकी सुभाय बाय बावरे| बेदन कुभांति सो सही न जाति राति दिन, सोई बाँह गही जो गही समीरदावरे|| लायो तरू तुलसी तिहारो सो निहारि बारि, सींचिये मलीन भो तयो हैं तिहूँ तावरे, भुतनिकी आपनी परायेकी कृपानिधान, जानियत सबहीकी रीति राम रावरे||३७|| पायंपीर पेटपीर बान्हपीर मुहंपीर, जरजर सकल सरीर पीरमई है| देव भूत पितर करम खल काल ग्रह, मोहिपर दवरि दमानक सी दई है|| होँ तो बिन मोलके बिकानो बलि बारेही तें, ओट रामनामकी ललाट लिखि लई है| कुंभजके किंकर बिकल बूड़े गोखुरनि, हाय रामराय ऐसी हाल कंहू भई है||३८|| बाहुक-सुबाहु नीच लीचर-मरीच मिलि, मुंहपीर-केतुजा कुरोग जातुधान हैं| राम नाम जगताप कियो चहयों सानुराग, काल कैसे दूत भूत कहा मेरे मान हैं|| सुमिरे सहाय रामलखन आखर दोऊ, जिनके समूह साके जागत जहान हैं| तुलसी संभारि ताड़का-संहारि भारी भट, बेधे बरगदसे बनाइ बागवान हैं||३९|| बालपने सूधे मन राम सनमुख भयो, रामनाम लेट मांगि खात टूकटाक हौं| परयो लोकरीतमें पुनीत प्रीति रामराय, मोहबस बैठी तोरि तरकितराक हौं|| तुलसी गोसाई भयो भोंड़े दिन भूलि गयो, ताको फल पावत निदान परिपाक हौं||४०|| असन-बसन-हीन बिषम-बिषाद-लीन. देखि दीन दूबरो करै न हाय-हाय को| तुलसी अनाथसो सनाथ रघुनाथ कियो, दियो फल सीलसिंधु आपने सुभायको|| नीच यही बीच पति पाई भरूहाईगो, बिहाई प्रभु-बचन मन कायको| तातें तनु पेषियत घोर बरतोर मिस, फुटि-फुटि निकसत लोन रामरायको||४१|| जियों जग जानकीजीवनको कहाई जन मरिबेको बारानसी बारि सुरसरिको| तुलसीके दुहूँ हाथ मोदक है ऐसे ठाउँ, जाके ज जिये मुये सोच करिहैं न लारिको|| मोको झूठो सांचो लोग रामको कहत सब, मेरे मन मान है न हरको न हरिको| भारी पीर दुसह सरीरतें बिहाल होत, सोऊ रघुबीर बिनु सकै दूर करिको||४२|| सीतापति साहेब सहाय हनुमान नित, हित उपदेसको महेस मानो गुरुकै| मानस बचन काय सरन तिहारे पांए, तुम्हारे भरोसे सुर मैं न जाने सुरकै|| ब्याधि भुतजनित उपाधि काहू खलकी, समाधि कीजे तुलसीकी जानि जन फुरकै| कपिनाथ रघुनाथ भोलानाथ भूतनाथ, रोगसिंधु क्योँ न डारियत गाय खुरकै||४३|| कहों हनुमानसों सुजान रामरायसों, कृपानिधान संकरसों सावधान सुनिये| हरष विषाद राग रोष देखियत दुनिये|| माया जीव कालके करमके सुभायके, करैया राम बेद कहैं साँची मन गुनिये| तुम्हतें कहा न होय हाह्य सो बुझैये मोहि, हाँ हूँ रहों मौन ही बयो सो जानि लुनिये||४४|| ||इतिश्री|| ----------------------------------------------------------------------------------------------------------------

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