[03/11 7:57 PM] avneet bansal:
हैं साहित्य मनीषी या फिर अपने हित के आदी हैं।
राजघरानो के चमचे हैं, वैचारिक उन्मादी हैं।।
दिल्ली दानव सी लगती है, जन्नत लगे कराची है।
जिनकी कलम तवायफ़ बनकर दरबारों में नाची है।।
डेढ़ साल में जिनको लगने लगा देश दंगाई है।
पहली बार देश के अंदर नफरत दी दिखलायी है।।
पहली बार दिखी हैं लाशें पहली बार बवाल हुए।
पहली बार मरा है मोमिन पहली बार सवाल हुए।।
नेहरू से मनमोहन तक भारत में शांति अनूठी थी ।
पहली बार खुली हैं आँखे, अब तक शायद फूटी थीं।।
एक नयनतारा है जिसके नैना आज उदास हुए।
जिसके मामा लाल जवाहर, जिसके रुतबे ख़ास हुए।।
पच्चासी में पुरस्कार मिलते ही अम्बर झूल गयी।
रकम दबा सरकारी, चौरासी के दंगे भूल गयी।।
भुल्लर बड़े भुलक्कड़ निकले, व्यस्त रहे रंगरलियों में।
मरते पंडित नज़र न आये काश्मीर की गलियों में।।
अब अशोक जी शोक करे हैं,बिसहाडा के पंगो पर।
आँखे इनकी नही खुली थी भागलपुर के दंगो पर।।
आज दादरी की घटना पर सब के सब ही रोये हैं।
जली गोधरा ट्रेन मगर तब चादर ताने सोये हैं।।
छाती सारे पीट रहे हैं अखलाकों की चोटों पर।
कायर बनकर मौन रहे जो दाऊद के विस्फोटों पर।।
ना तो कवि,ना कथाकार, ना कोई शायर लगते हैं।
मुझको ये आनंद भवन के नौकर चाकर लगते हैं।।
दिनकर,प्रेमचंद,भूषण की जो चरणों की धूल नही।
इनको कह दूं कलमकार, कर सकता ऐसी भूल नही।।
चाटुकार,मौका परस्त हैं, कलम गहे खलनायक हैं।
सरस्वती के पुत्र नही हैं, साहित्यिक नालायक हैं ।।
avneet bansal:
एक पिता की युवा औलाद एकदम नकारा थी । तंग आकर
पिता ने ऐलान कर दिया की आज से खाना तभी मिलेगा
जब 100 रुपये कमाकर लायेंगा ।
माँ ने नकारे बेटे को चुपचाप 100 रुपये दे दिये और कहा शाम
को आकर बोल देना की कमाये है । शाम को लडका घर
आया तो पिता को 100 रूपये दिखायें, पिता ने कहा इस
नोट को नाली में फेँक आओं.....
लडका तुरंत नोट नाली मे फेंक आया । पिता समझ चुका
था की ये इसकी मेहनत की कमाई नही । पिता ने अपनी
पत्नी को मायके भेज दिया ताकि वो बेटे की मदद ना कर
पायें ।
आज फिर बेटे को 100 रुपये कमाकर लाने थे तो लडके के पास
मेहनत करके कमाने के अलावा कोई चारा ना बचा 1 शाम
को वो जब 100 रुपये कमाकर घर लोटा तो पिता नें फिर से
उस नोट को नाली मे डालने को कहा तौ लडके ने साफ
मना कर दिया क्यो की आज उसे इस नोट की कीमत पता
चल गयी थी !!
# पुरुस्कार लोटाने वाले लेखक और फील्मकार इस पोस्ट को
दिल पर ना लें...... मेहनत की होती तो पुरूस्कार की
कीमत पता होती पर जो चीज मिली ही तलवा चटाई
उसकी कीमत ये चाटुकार क्या जाने??
[03/11 7:57 PM] avneet bansal: जब गिरिराज हिमालय दुःख से,,
जोर जोर से रोया था ...
जब भारत का भाग्य यूँ ही,,
70 वर्षों तक सोया था ..
जब नेहरू ने बस लालच में ,,
भारत को बंटवाया था ,,
तब क्या किसी साहित्यकार ने ,,
पुरस्कार लौटाया था ??
जब बोडो का सीना छलनी ,
मुसलमान ने कर डाला ..
जब लश्कर ने कश्मीर की घाटी ,
हिन्दू रक्त से भर डाला ...
जब सलेम ने गुलशन कुमार को,,
मंदिर में मरवाया था ...
तब क्या किसी साहित्यकार ने ,,
पुरस्कार लौटाया था .....
जब नक्सलियों के हमले में ,,
बच्चे तक मर जाते थे ...
जब खालिस्तान के नारों से ,,
पत्थर तक डर जाते थे ...
जब दाऊद ने एक शहर में ,,
10 विस्फोट कराया था ...
तब क्या किसी साहित्यकार ने ,,
पुरस्कार लौटाया था ???
जब पाकिस्तान ने सीमा में घुसकर ,
फौजी का सर काटा था..
जब बंगाल के अकाल में ,
ना चावल ना आटा था ...
जब सत्ता ने प्रज्ञा ठाकुर पर ,
बेलन तक चलवाया था ...
तब क्या किसी साहित्यकार ने ,,,
पुरस्कार लौटाया था ??
जय हिन्द🚩🚩🚩
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