Sunday, 27 December 2015

जब भी चाहे नई दुनिया बसा लेते है लोग

जब भी चाहे नई दुनिया बसा लेते हैं लोग एक चेहरे पे कई चेहरे पे कई चेहरे लगा लेते हैं लोग याद रहता हैं किसे ग़ुज़रे ज़माने का चलन सर्द पड जाती है चाहत , हार जाती हैलगन अब मोहब्बत भी है कया एक तिजारत के सिवा हम ही नादां थे जो ओढा बीती यादों का कफ़न वरना जीने के लिए सब कुछ भुला हैं लोग जाने वो क्या लोग थे जिन को वफ़ा का पास था दुसरे के दिल पे क्या गुज़रेगी ये अहसास था अब हैं पत्थर के सनम जिन को अह्सास ना ग़म वह ज़माना अब कहां जो अहले दिल को रास था अब तो मतलब के लिए नामे-वफ़ा हैं लोग

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