Wednesday, 23 December 2015

श्री दत्तात्रेयाची जन्मकथा l

अत्रीमऋषि की पत्नी के सतीत्व का चर्चा तीनो लोको में था। एक दिन नारद जी ने त्रिदेवो गैरमौजूदगी में उनके निवास पे जाके उनकी पटरानियों से अनुसूया की जो प्रसन्नसा की के तीनो देवियाँ ईर्ष्या से जल उठी। तीनो स्त्री स्वाभाव के कारण केवल वाही बात सोचने लगी के अनुसूया ने ऐसा क्या किया जो हम भी न कर पाई। तीनो ईर्ष्याग्नि में इतना जलने लगी की वो हर हाल में सती का मान भंग करने का पाप करने को तैयार हो गई। इस काम के लिए उन्होंने अपने पति देवो को ही आगे किया। तीनों देवों के लाख समझावण पर भी देवियाँ न मानी और त्रिदेव पापार्थ तैयार हुए। त्रिदेव मजबूर में ब्राह्मण रूप में अत्रि ऋषि के आश्रम पर उस समय पहुंचे जब सती निवास पर अकेली थी, अनुसूया ने ब्राह्मणो को द्वार पर देख कर अनुसूईया ने भोजन ग्रहण करने का आग्रह किया। त्रिदेवो ने ऐसी शर्मनाक शर्त रख दी कि हम आपका भोजन अवश्य ग्रहण करेंगे, परंतु तब जब आप नग्न होकर हमें भोज कराये। अतिथि तिरस्कार और श्राप के भय से पाप के भय से परमात्मा से प्रार्थना की कि हे परमेश्वर ! इन तीनों को छः-छः महीने के बच्चे की आयु के शिशु बनाओ। जिससे मेरा पतिव्रत धर्म भी खण्ड न हो तथा साधुओं को आहार भी प्राप्त हो व अतिथि सेवा न करने का पाप भी न लगे। परमेश्वर की कृपा से तीनों देवता छः-छः महीने के बच्चे बन गए तथा अनुसूईया ने तीनों को निःवस्त्र होकर दूध पिलाया तथा पालने में लेटा दिया। जब तीनों देव अपने स्थान पर नहीं लौटे तो देवियां व्याकुल हो गईं। तब नारद ने वहां आकर सारी बात बताई की तीनो देवो को तो अनुसुइया ने अपने सतीत्व से बालक बना दिया है। यह सुनकर तीनों देवियां ने अत्रि ऋषि के आश्रम पर पहुंचकर माता अनुसुइया से माफ़ी मांगी और कहाँ की हमसे ईर्ष्यावश यह गलती हुई है। इनके लाख मना करने पर भी हमने इन्हे यह घृणित कार्य करने भेजा। कृप्या आप इन्हें पुनः उसी अवस्था में कीजिए, आपकी हम आभारी होंगी। इतना सुनकर अत्री ऋषि की पत्नी अनुसूईया ने तीनो बालक को वापस उनके वास्तविक रूप में ला दिया। अत्री ऋषि व अनुसूईया से तीनों भगवानों ने वर मांगने को कहा। तब अनुसूईया ने कहा कि आप तीनों हमारे घर बालक बन कर पुत्र रूप में आएँ। हम निःसंतान हैं। तीनों भगवानों ने तथास्तु कहा तथा अपनी-अपनी पत्नियों के साथ अपने-अपने लोक को प्रस्थान कर गए। बाद में दतात्रोय रूप में नारायण, चन्द्र के रूप में श्रिष्टि रचयिता जबकि दुर्वासा रूद्र रूप में सती के गर्भ से जन्मे।

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