Tuesday, 22 December 2015

जुवेनाइल एक्ट से रेप होने बंद हो जायेंगे ?

जूवेनाइल ऐक्ट से रेप होने बंद हो जाएंगे? December 23, 2015, 8:18 AM IST नरेंद्र नाथ in पावर प्ले | सोसाइटी 78 0 0 जूवेनाइल एक्ट पास हो गया। सब प्रसन्न हैं। हां,खुशी की बात है कि एक कानून का विंडो बना जिससे निर्भया का रेपिस्ट बाहर निकल नहीं सकेगा। लेकिन वह जो इस कानून बनने भर से एकदम रिलैक्स होकर प्रसन्न दिख रहे हैं मुझे उनके आशावाद से निराशा है। ऐक्ट और ऐक्शन के बीच इतना खतरनाक गैप है कि तत्काल मुझे इनमें कोई ऐसी क्रांति नजर नहीं आती है,जैसा कहा जा रहा है। 1. 60 के दशक में एक दहेज के कारण महिला की हत्या हुई। उस वक्त के लिहाज से एक आंदोलन हुआ। सरकार पर दबाव बना। तुरंत के तुरंत कानून बनाने को कहा गया। सरकार ने दहेजप्रथा पर अंकुश करने के लिए कानून बना दिया। ऐसा लगा मानो कानून बनते ही दहेज लेना रुक जाएगा आफ्टर इफेक्ट साल दर साल दहेज की दर बढ़ती रही। दहेज के नाम पर अत्याचार भी बढ़ता रहा। कानून का उपयोग उसने अधिक किया जो वास्तव में प्रभावित नहीं थे। खुद सरकार और दूसरे लोगों ने माना, कानून की आड़ में ब्लैकमेल का खेल भी चला। और जो प्रभावित थीं,वे इसका लाभ कम ले सकी। आफ्टर इफेक्ट इस कानून को अब लचीला बनाया जा रहा है जिसमें ब्लैकमेल नहीं किया जा सके, इसके लिए विंडो दिया जा रहा है 2. 2004 में पब्लिक आउटरेज के बाद रेपिस्ट धनंजय चटर्जी को फांसी दिया गया। उसने लिफ्ट में एक स्कूली लड़की के साथ रेप और मर्डर किया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने जजमेंट में जिक्र किया था कि मीडिया और लोगों ने ऐसा माहौल बना दिया जिसमें अधिक गुंजाइश नहीं बची। उसे फांसी दी गयी। लोगों ने पल भर के लिए सोचा कि धनंजय के साथ सारे रेपिस्टों को फांसी मिल गयी। फिर 2012 में निर्भया कांड हुआ। रेप के बाद फांसी की सजा नहीं थी,उसे तुरंत बदल कर नया कानून बना दिया गया। साथ ही उसके बाद ऐसे कानून बने जिसमें छेड़खानी भी रेप जैसे अपराध तक में आए। आफ्टर इफेक्ट 2004 से 2012 और तब से लेकर 2015 तक हर राज्य,हर शहर में इन घटनाओं में वृद्धि हुई। कानून का डर दिखा है,इसके कोई संकेत नहीं मिले हैं। 3. 2011 में लोकपाल के लिए आंदोलन हुआ। ऐसा लगा कि देश में बस हर मर्ज की एक दवा है, लोकपाल। लोकपाल आएगा साथ में सतयुग की वापसी होगा। देश में हर कोई ईमानदार,सिस्टम पटरी पर। सड़क पर अभी-के अभी कानून बनाने की मांग उठी। अाफ्टर इफेक्ट कानून बन गया। केंद्र में अब तक नहीं बना लोकपाल। आंदोलन के नेता अरविन्द केजरीवाल खुद इसे भूल बैठे हैं और लोकपाल आंदोलन की कमाई से सीएम बने बैठे हैं। करप्शन वहीं है। लोकपाल कहीं नहीं है। कानून और डर से अगर समाज और सामाजिक अपराध रुकते तो कम से कम पूरे विश्व में इतनी अच्छाई है कि हर देश,प्रांत कानून बनाकर इसे रोक लेता। मंगलवार को जब संसद में बालिग की उम्र को 18 से 16 साल करने के लिए बहस होने वाली थी,मैंने हर दल के एमपी से पूछा। वे सभी ऑफ रेकार्ड एक ही बात कर रहे थे- ऐसे सिनिकल और मीडिया प्रेशर से कानून को बनाना एक खतरनाक ट्रेंड है। कल जाकर रेपिस्ट की उम्र 15 साल 11 महीने होती है तो क्या फिर उम्र करने की मांग फिर उठेगी? उनकी आशंका वाजिब थी। आशंका इस कारण थी कि 1986 में राजीव गांधी की कांग्रेस ने बालिग की उम्र 16 साल तय की थी। तब से लेकर अगले दस सालों में कई ऐसे मामले बने जिसमें कानून के दुरुपयोग होने की सूचना आयी। तब अटल वाजपेयी की बीजेपी सरकार ने इसे 16 से 18 करने का फैसला लिया। दिक्कत है कि इन नेताओं की सार्वजनिक छवि इस कदर टेंटेंड हो चुकी है कि इनकी वाजिब बात भी बेकार और असंवेदनहीन सी लगती है। खुद नरेन्द्र मोदी ने पीएम उम्मीदवार के रूप में बार-बार एक डायलॉग बोला था जिसप र बहुत तालियां बजती थी-वी नीड ऐक्शन ,नॉट ऐक्ट । बात सही थी। हमें कानून नहीं,ऐक्शन चाहिए। लोगों ने उन्हें सपॉर्ट किया। लेकिन सरकारें बदली और हम अभी भी ऐक्ट में ही ऐक्शन को देख रहे हैं जो मृगमरीचिका बनती जा रही है।

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