Thursday, 24 December 2015
दत्त जयंती कथा l
जयंती कथा
प्राचीन ग्रंथों के अनुसार एक बार तीनों देवियों पार्वती, लक्ष्मी और सावित्री को अपने पतिव्रत धर्म पर घमंड होने लगा। देवऋर्षि नारद को जब इसके बारे में पता चला तो वह उनका घमंड चूर करने के लिए बारी-बारी से तीनों देवियों के पास पहुंचे और अत्रि ऋषि की पत्नी देवी अनुसूया के पतिव्रत धर्म का गुणगान करने लगे। देवियों को अनुसूया की प्रशंसा रास नहीं आयी। नारद जी के जाने के बाद वह देवी अनुसूया के पतिव्रत धर्म को भंग करने की बात करने लगीं। ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों को अपनी पत्नियों के सामने हार माननी पड़ी और वह तीनों ही देवी अनुसूया की कुटिया के सामने एक साथ भिखारी के वेश में जाकर खड़े हो गए।
जब देवी अनुसूया इन्हें भिक्षा देने लगी तब इन्होंने भिक्षा लेने से मना कर दिया और भोजन करने की इच्छा प्रकट की। देवी अनुसूया ने अतिथि सत्कार को अपना धर्म मानते हुए उनकी बात मान ली और उनके लिए प्रेम भाव से भोजन की थाली परोस लाईं। लेकिन तीनों देवों ने भोजन करने से इंकार करते हुए कहा कि जब तक आप नग्न होकर भोजन नहीं परोसेगी तब तक हम भोजन नहीं करेंगे। देवी अनुसूया यह सुनते ही पहले तो स्तब्ध रह गई और गुस्से से भर उठीं। लेकिन अपने पतिव्रत धर्म के बल पर उन्होंने तीनो की मंशा जान ली।
उसके बाद देवी ने ऋषि अत्रि के चरणों का जल तीनों देवों पर छिड़क दिया। जल छिड़कते ही तीनों ने बालरुप धारण कर लिया। बालरुप में तीनों को भरपेट भोजन कराया। देवी अनुसूया उन्हें पालने में लिटाकर अपने प्रेम तथा वात्सल्य से उन्हें पालने लगीं। धीरे-धीरे दिन बीतने लगे। जब काफी दिन बीतने पर भी ब्रह्मा, विष्णु और महेश घर नहीं लौटे तब तीनों देवियों को अपने पतियों की चिंता होने लगी। देवियों को अपनी भूल पर पछतावा होने लगा।
वह तीनों ही माता अनुसूया से क्षमा मांगने लगी। तीनों ने उनके पतिव्रत धर्म के समक्ष अपना सिर झुकाया। माता अनुसूया ने कहा कि इन तीनों ने मेरा दूध पीया है, इसलिए इन्हें बालरुप में ही रहना होगा। यह सुनकर तीनों देवों ने अपने-अपने अंश को मिलाकर एक नया अंश पैदा किया। इसका नाम दत्तात्रेय रखा गया। तीनों देवों को एकसाथ बालरुप में दत्तात्रेय के अंश में पाने के बाद माता अनुसूया ने अपने पति अत्रि ऋषि के चरणों का जल तीनों देवो पर छिड़का और उन्हें पूर्ववत रूप प्रदान कर दिया।
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