Tuesday, 28 March 2017
नवरात्र पहला दिन - शैलपुत्री
आज चैत्र नवरात्र का पहला दिन है और इस दिन घटस्थापन के बाद मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री का पूजन, अर्चन और स्तवन किया जाता है। शैल का अर्थ है हिमालय और पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म लेने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है।
पार्वती के रूप में इन्हें भगवान शंकर की पत्नी के रूप में भी जाना जाता है। वृषभ (बैल) इनका वाहन होने के कारण इन्हें वृषभारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता है। इनके दाएं हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में इन्होंने कमल धारण किया हुआ है। इनसे जुड़ी एक कहानी का उल्लेख यहां करना आवश्यक है।
प्राचीनकाल में जब सती के पिता प्रजापति दक्ष यज्ञ कर रहे थे तो उन्होंने सारे देवताओं को इस यज्ञ में सम्मिलित होने के लिए आमंत्रित किया लेकिन अपने जामाता भगवान महादेव और अपनी पुत्री सती को आमंत्रित नहीं किया। लेकिन सती की अपने पिता के यज्ञ में जाने की बहुत इच्छा थी। उनकी व्यग्रता देख शंकर जी ने कहा कि संभवत: प्रजापति दक्ष हमसे रुष्ट हैं, इसलिए उन्होंने हमें आमंत्रित नहीं किया होगा।
शंकर जी के इस वचन से सती संतुष्ट नहीं हुई और जाने के लिए अड़ गई। उनकी जिद देखकर भगवान शंकर ने उन्हें वहां जाने की अनुमति दे दी। सती जब अपने पिता के घर पहुंचीं तो सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह दिया। बाकी सदस्यों ने उनसे ठीक से बात नहीं की और व्यंग्यात्मक छींटाकशी भी की। दक्ष ने भी शंकर के प्रति कुछ बातें कहीं जो सती को उचित नहीं लगी। अपने पति का तिरस्कार होता देख उन्होंने योगाग्नि से अपने आप को भस्म कर लिया। जब शंकर को सती के भस्म होने के बारे में पता चला तो वे क्रोधित हो गए और उन्होंने दक्ष के यज्ञ का विध्वंस करवा दिया।
यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाई। शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से हुआ और वे फिर से उनकी पत्नी बन गई। ऐसा कहा गया है कि मां दुर्गा के इस शैलपुत्री स्वरूप का पूजन करने से उपासक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और कन्याओं को मनोवांछित वर की प्राप्ति होती है और साधक का मूलाधार चक्र जागृत होने में सहायता मिलती है। इनके प्रसन्न करने के लिए पूजन में लाल फूल, नारियल, सिंदूर और घी के दीपक का प्रयोग करें। मां शैलपुत्री का पूजन और स्तवन निम्न मंत्र से करें।
वन्दे वांछितलाभाय, चंद्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढ़ां शूलधरां, शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ॥
अर्थात् मैं मनोवांछित लाभ के लिये अपने मस्तक पर अर्धचंद्र धारण करने वाली, वृष पर सवार रहने वाली, शूलधारिणी और यशस्विनी मां शैलपुत्री की वंदना करता हूं।-
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