Sunday, 23 August 2015

हनुमान अष्टक -बाल समय रवि भक्ष लियो

बाल समय रवि भक्ष लियो
तब तीनहु लोक भयो अंधियारो  l
ताही सो त्रास भयो जग में
यह संकट काहूँ सो जात न टारो l
देवन आनि  करी बिनति तब
छोड़ी दीयों रवी कष्ट निवारो  l
कॊ नाहि जानत है जग मे कपि
संकट मोचन नाम तिहारो  ll 1 ll

बालि की त्रास कपीस बसै गिरि
जात महाप्रभू पंथ निहारो
चौकी महामुनीं श्राप दीयों  l
तब चाहिये कौन विचार विचारों
कै द्विज रुप लियाय महाप्रभू  l
के तुम दास के सोक निवारो l कॊ नही जानत... l

अंगद के संग लेन गये  सिय
खोज कपीस यह बैन उचारो  l
जीवित ना बचिहौ हमसो जु
बिना सुधि लाये इहं पगु धाराे l
हारि थके तट सिंधु सबै तब ,
लाये सिया सुधि प्राण उबारो l को नही जानत... l

रावण त्रास दई सिय को जब
राक्षसि सो कहि सोक निवारो  l
ताहि समय हनुमान महाप्रभु
जाय महा रजनीचर मारो l
चाहत सिय अशोक सो आगिसु
दै प्रभु मुद्रिका सोक निवारो  l को नही जानत... l

बाण लग्यो उर लछिमन के तब
प्राण तजे सुत रावण मारो l
लै गृह वैद्य सुखेन समेत
तबै गिरि द्रौन सुबीर उपारो  l
आनि संजीवन हाथ दई तब
लछिमन के तुम प्राण उबारो  l को नही जानत ... l

रावण यु्द्ध अजान  कियो तब
नागा कि फांस सबै सिर डारो  l
श्री रघुनाथ समैत सबै दल
मोह भयो यह संकट भारो  l
आनि खगेश तबै हनुमान जु
बंधन काटि सुत्रास निवारो  l को नही जानत ... l

बंधु समेत जबै अहिरावण
लै रघुनाथ पाताल सिधारो  l
देवीहिं पूजि भली विधि साें
बलि देन सबै मिलि मंत्र विचारो l
जाय सहाय भयो तब ही
अहिरावण सैन्य समेत संहारो ल को नहीँ जानत... l

काज किये बड़े देवन के तुम
वीर महाप्रभू देखि विचारों  l
कौन सो संकट मोर गरीब को
जो तुमसाें नहिं जात है टारो  l
बेगि हरो हनुमान महाप्रभू
जो कछु संकट होय हमारो l  को नही जानत... l

दोहा :लाल देह लाली लसे.अरु धर लाल लंगुर l
   वज्र देह दानव दलन.जय जय जय कपि सूर l



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